
उत्तराखंड के नैनीताल को झीलों का शहर कहा जाता है और नैनीताल की सुंदरता का केंद्र बिंदु नैनीझील है , सूर्य की रोशनी में यहॉ की सात पहाडियों पर स्थित भवनों एवं वनस्पति को प्र्तिबिम्बित करती यह झील बहुत मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है जबकि रात्रि में पहाडों के ऊपर ढलानों पर जलते बल्बों तथा झील के किनारे लगे हुए अनेक बल्बों की रोशनी तालाब के पानी में जादूयी अहसास प्रस्तुत करती है। जिसका दीदार करने देश-विदेश से पर्यटक बड़ी तादाद में पहुंचते हैं। लेकिन नैनीझील पर अब संकट के बादल भी मंडरा रहे हैं । नैनीताल समेत पहाड़ों में लंबे समय से बारिश नहीं होने से विश्व प्रसिद्ध नैनीझील और नदियों का जलस्तर तेजी से घट रहा है। नैनीझील का जलस्तर कम होने से झील की सुंदरता पर ग्रहण लग रहा है। झील के चारों तरफ बड़े-बड़े डेल्टा उभरने लगे हैं। झील का जलस्तर केवल 4 फीट रह गया है, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे कम है। यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। बीते अक्टूबर से अब तक नैनीताल में बारिश और बर्फबारी औसत से 90 प्रतिशत कम हुई है, जिसके चलते झील और आसपास की नदियों का जलस्तर तेजी से घट रहा है। पानी की कमी के कारण झील के चारों ओर डेल्टा उभरने लगे हैं, जो इस गंभीर स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं। अगर यही हालात रहे तो आने वाले दिनों में नैनीताल में स्थानीय लोगों के सामने पेयजल संकट खड़ा हो जाएगा. इतना ही नहीं मई जून में गर्मियों के दौरान पर्यटन सीजन में पर्यटकों को भी पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ सकता है।
जल संस्थान ने लागू की रोस्टिंग व्यवस्था
नैनीताल जल संस्थान ने झील के जलस्तर को संतुलित बनाए रखने के लिए रोस्टिंग व्यवस्था लागू की है। अब प्रतिदिन केवल 12 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) पानी की आपूर्ति की जा रही है, जिससे जल का अत्यधिक दोहन रोका जा सके लेकिन यदि बारिश जल्द नहीं होती, तो यह व्यवस्था भी अधिक दिनों तक टिकाऊ नहीं रहेगी. वहीं विशेषज्ञों के अनुसार, नैनीझील का जलस्तर गिरने का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन और अनियमित बारिश है। ऐसे में झील के जलस्तर को बनाए रखने के लिए वर्षा जल संचयन, झील में बाहरी जल स्रोतों से पानी लाने और पानी के विवेकपूर्ण उपयोग जैसी योजनाओं को लागू करना जरूरी है।