चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन आज मां चंद्रघंटा की पूजा !

 चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की आराधना का विशेष महत्व है। मां दुर्गा का यह स्वरूप बेहद सौम्य और ममतामयी है, जो लोग इस दिन कठिन व्रत का पालन करते हैं, उन्हें सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में शुभता आती है। वहीं, यह व्रत मां चंद्रघंटा की कथा के बिना अधूरा माना जाता है, मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. इनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, मां के दस हाथ हैं, जिनमें अलग-अलग अस्त्र और शस्त्र होते हैं. वहीं, मां चंद्रघंटा का वाहन सिंह है. मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की सच्ची निष्ठा से पूजा-अर्चना करने से जीवन में शांति, समृद्धि और मानसिक संतुलन आता है |

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन आज मां चंद्रघंटा की पूजा !
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन आज मां चंद्रघंटा की पूजा !
  • देवी चंद्रघंटा की आराधना करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद साफ कपड़े धारण कर लें.
  • मंदिर को साफ कर पूजा स्थान पर देवी की मूर्ति की स्थापना करें. 
  • मां की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कराएं. 
  • इसके बाद धूप-दीप, पुष्प, रोली, चंदन अर्पित करें.
  • मां को भोग लगाकर उनके मंत्रों का जाप करें.
  • इसके बाद, मां के चरणों में पुष्प अर्पित कर आरती गाएं.

मां चंद्रघंटा का मंत्र  

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

मां चंद्रघंटा का भोग

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को दूध और दूध से बनी मिठाइयों का भोग समर्पित किया जाता है. 

मां चंद्रघंटा शुभ रंग

चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन का शुभ रंग लाल होता है.

मां चंद्रघंटा की कथा

मां चंद्रघंटा की कथा
मां चंद्रघंटा की कथा


प्रचलित कथा के अनुसार, माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर का लक्ष्य देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना था और वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा से युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस मंशा का ज्ञान हुआ, तो वे चिंतित हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की व्यथा सुनकर क्रोध प्रकट किया, जिससे उनके मुख से ऊर्जा निकली। इस ऊर्जा से एक देवी प्रकट हुईं। भगवान शंकर ने उन्हें अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज और तलवार तथा सिंह प्रदान किया। इसके पश्चात मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।

मां का प्रिय फूल

मां का प्रिय फूल
मां का प्रिय फूल

मां चंद्रघंटा को लाल रंग के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं। आप उन्हें गुलाब या लाल गुड़हल अर्पित कर सकते हैं। इसके अलावा, पीले रंग के फूल भी मां को चढ़ाए जा सकते हैं।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।

चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।

क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।

मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।

सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।

शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।

कांची पुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटू महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्.
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्.
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

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