नवरात्रि का आज चौथा दिन है। इस दिन मां कुष्मांडा की पूजा होती है।
इस बार चैत्र नवरात्रि 9 दिनों के बजाय 8 दिनों की है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है और इस दिन विधि-विधान से मां दुर्गा की आराधना होती है। भक्त उन्हें भोग में मिठाई, फल और मालपुआ अर्पित करते हैं। मान्यता है कि मां कुष्मांडा की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
मां कुष्मांडा आठ भुजाओं वाली दिव्य शक्ति हैं, उन्हें परमेश्वरी का रूप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं और जिन काम में रुकावट आती है, वे भी बिना किसी बाधा के पूरे हो जाते हैं। मां कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को सुख और सौभाग्य मिलता है। देवी पुराण में बताया गया है कि विद्यार्थियों को नवरात्रि में मां कुष्मांडा की पूजा जरूर करनी चाहिए। मां दुर्गा उनकी बुद्धि का विकास करने में सहायक होती हैं।
पूजा का महत्व
विशेष रूप से माना जाता है कि मां की कृपा से भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। देवी कुष्मांडा रोगों का नाश करने वाली और आयु में वृद्धि करने वाली मानी जाती हैं। मां कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों के सभी रोग, दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। इनकी पूजा से आयु, यश, बल और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इनके पूजन से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य की आरोग्यता बनी रहती है। मां कुष्मांडा की आराधना से जीवन में सभी प्रकार की समृद्धि और सुख-शांति का प्रवेश होता है।नवरात्र उपासना में चौथेदिन इन्ही के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है।
कूष्मांडा का अर्थ क्या है?
कूष्मांडा के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका मतलब है छोटा और अंडाकार ऊर्जा पिंड. यह हमारे हृदयस्थ स्थिति का प्रतीक भी है. वहीं कुछ लोगों का मत है कि कूष्मांडा का अर्थ कुम्हड़े से है. मां को कुम्हड़े की बलि सबसे ज्यादा प्रिय है, इसलिए इन्हें कूष्मांडा माता कहा जाता है. देवी कुष्मांडा को प्रकाश और ऊर्जा की देवी माना जाता है. देवी कुष्मांडा के पास सूर्य के मूल में रहने की शक्ति और ताकत है. ऐसा कहा जाता है कि देवी कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से ही ब्रह्मांड की रचना की थी. दुर्गा सप्तशती के कवच में लिखा है कुत्सित कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत संसार, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या सा कूष्मांडा.

मां कुष्मांडा की पूजा विधि
स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अपने पूजन स्थल को शुद्ध करें। मां कुष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें। मां का ध्यान कर उन्हें आमंत्रित करें। यह ध्यान करते समय मां के दिव्य स्वरूप की कल्पना करें। इसके बाद जल और पंचामृत से स्नान कराएं। फिर मां को सुंदर वस्त्र, फूल, माला और आभूषण अर्पित करें। विशेष रूप से, कुम्हड़ा (कद्दू) का भोग मां को अर्पित करना शुभ माना जाता है। मां को भोग में मिष्ठान्न, फल, नारियल और विशेष भोग अर्पित करें। मां कुष्मांडा को सफेद चीजों का भोग लगाना शुभ होता है। अंत में मां की आरती उतारें और उन्हें दीपक, धूप और गंध अर्पित करें।
मां कूष्मांडा का भोग
माता कूष्मांडा को आटे और घी से बने मालपुआ का भोग लगाना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इससे भक्त को बल-बुद्धि का आशीर्वाद मिलता है. माता को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी मंदिर में इसका प्रसाद देना चाहिए, ऐसा करने से भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है, बुद्धि और कौशल का विकास होता है. इसके अलावा आप माता को पेठे, दही या हलवे का भोग भी लगा सकते हैं.

मां कूष्मांडा की कथा
प्राचीन ग्रंथों को देखने पर देवी कूष्मांडा माता का विवरण मार्कण्डेय पुराण में मिलता है. इसके अनुसार कूष्मांडा माता ने जब ब्रह्माजी द्वारा दिए गए शक्ति स्वरूप अवतार को धारण किया तब उन्हें कूष्मांडा कहा गया. इस कथा के मुताबिक देवी कूष्मांडा देवी ब्रह्माजी की शक्ति से दुर्गा रूप में प्रकट हुईं और भक्तों को रक्षा की. वहीं एक कथा यह भी है कि वर्णित है कि जब त्रिदेवों (ब्रह्म, विष्णु और महेश) ने चिरकाल में सृष्टि की रचना करने की कल्पना की थी. उस वक्त समस्त ब्रह्मांड में घोर अंधेरा छाया हुआ था. न राग, न ध्वनि, केवल सन्नाटा था. त्रिदेवों ने जगत जननी माता आदिशक्ति दुर्गा से सहायता मांगी. तब मां दुर्गा के चौथे स्वरूप यानी मां कूष्मांडा ने तत्क्षण अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की. उनके मुखमंडल से निकले प्रकाश ने समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशमान कर दिया. इसी कारण उन्हें मां कूष्मांडा कहा जाता है.
इन मंत्रों का करें जाप
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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