बिहार से एक बड़ी खबर सामने आई है। मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन योजना एवं मुख्यमंत्री गुरु शिष्य परंपरा योजना को आज कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है।
बिहार सरकार ने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और कलाकारों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दो बड़ी योजनाओं को मंजूरी दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिपरिषद (कैबिनेट) की बैठक में ‘मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन स्कीम’ और ‘सीएम गुरु-शिष्य परंपरा योजना’ को स्वीकृति दी गई है। इन योजनाओं को राज्य के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन स्कीम: कला को मिलेगा सम्मान

इस योजना के अंतर्गत राज्य के पारंपरिक, लोक और सांस्कृतिक कलाओं से जुड़े बुजुर्ग और जरूरतमंद कलाकारों को मासिक पेंशन दी जाएगी। इससे उन कलाकारों को सहारा मिलेगा, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी कला की सेवा में समर्पित कर दी, लेकिन अब आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
योजना की मुख्य बातें:
- 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के कलाकार पात्र होंगे।
- कलाकार को प्रमाणित लोक/सांस्कृतिक कला में कम से कम 20 वर्षों का अनुभव होना आवश्यक है।
- पात्र कलाकारों को मासिक ₹3,000 से ₹5,000 तक की पेंशन दी जाएगी।
- आवेदकों को एक सत्यापन प्रक्रिया से गुजरना होगा जिसमें उनके कला कार्य, योगदान और आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन होगा।
सीएम गुरु-शिष्य परंपरा योजना: कला के ज्ञान को मिलेगा नया जीवन
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की सांस्कृतिक पहचान का मूल स्तंभ रही है। इस योजना के तहत सरकार राज्य के अनुभवी कलाकारों (गुरुओं) और उनके शिष्यों के बीच ज्ञान के स्थानांतरण को औपचारिक रूप से समर्थन देगी।
योजना की मुख्य बातें:
- पारंपरिक कलाओं जैसे लोक संगीत, नृत्य, कठपुतली, पेंटिंग, शिल्प, मल्ल युद्ध, नाट्य कला आदि को शामिल किया जाएगा।
- हर गुरु को प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने के लिए मासिक मानदेय और शिष्यवृत्ति राशि मिलेगी।
- प्रशिक्षुओं को 6 से 12 महीने की अवधि तक गुरु के साथ सीखने का अवसर मिलेगा।
- इस योजना से कला के लुप्तप्राय रूपों को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य है।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर बिहार
राज्य सरकार का यह कदम न केवल कला और कलाकारों के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया है, बल्कि इसका उद्देश्य बिहार की विलुप्त होती पारंपरिक कला शैलियों को जीवित रखना भी है।
बिहार जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य में:
- मधुबनी पेंटिंग, भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत, लौंडा नृत्य, सत्तू गीत, छऊ नृत्य, आदि कलाएं धीरे-धीरे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं।
- इन योजनाओं से ऐसी लोक कलाओं को संस्थागत संरक्षण और युवाओं की भागीदारी मिलेगी।
सरकार की मंशा और बयान
राज्य के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री ने कहा:
“बिहार की आत्मा उसकी कला और संस्कृति में बसती है। हमने इन योजनाओं के माध्यम से उन हजारों कलाकारों को सम्मान और सुरक्षा देने का संकल्प लिया है, जिनकी कला ने राज्य की पहचान को आकार दिया।”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस पहल को ‘संस्कृति के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता’ बताया और कहा कि अब आने वाली पीढ़ियों को कला का विरासत रूप से हस्तांतरण सुनिश्चित होगा।
कलाकारों और समाज का स्वागत
बिहार के विभिन्न जिलों के कलाकारों, लोकसंस्कृति संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय का भव्य स्वागत किया है। मधुबनी, वैशाली, भागलपुर, दरभंगा और गया जैसे जिलों से कलाकारों ने इसे “ऐतिहासिक कदम” बताया।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि, विपक्षी दलों ने सरकार की इस योजना की समयबद्धता और निष्पादन क्षमता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि योजनाएँ तभी सार्थक होंगी जब उनका क्रियान्वयन भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी ढंग से किया जाए।
निष्कर्ष:
बिहार सरकार की मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन स्कीम और गुरु-शिष्य परंपरा योजना राज्य में सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक पहल हैं। यह न केवल कलाकारों को सामाजिक सुरक्षा देती हैं, बल्कि परंपरागत कलाओं के पुनर्जीवन में भी एक निर्णायक भूमिका निभाएंगी। यदि इनका क्रियान्वयन ईमानदारी और प्रभावशीलता से किया गया, तो यह योजनाएँ बिहार को सांस्कृतिक मानचित्र पर एक नई पहचान दिला सकती हैं।
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