‘उदयपुर फाइल्स’ पर मचा सियासी घमासान: बैन की उठी मांग, विधानसभा में गूंजा मुद्दा !

विजय राज स्टारर ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर शुरू हुआ विरोध दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। पहले जमाअत ए इस्लामी ने फिल्म की रिलीज पर रोक की मांग उठाई और अब महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य अबू आजमी ने भी ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर नाराजगी व्यक्त की है।

उदयपुर में हुए कन्हैयालाल हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर देशभर में राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भारी विवाद छिड़ गया है। फिल्म के ट्रेलर के रिलीज़ होते ही यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई, वहीं कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने इसके विरोध में स्वर बुलंद किए हैं। विवाद इतना गहराता जा रहा है कि अब इसकी गूंज राजस्थान विधानसभा तक पहुंच गई है और फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग तेज हो गई है।

'उदयपुर फाइल्स' पर मचा सियासी घमासान: बैन की उठी मांग, विधानसभा में गूंजा मुद्दा !
‘उदयपुर फाइल्स’ पर मचा सियासी घमासान: बैन की उठी मांग, विधानसभा में गूंजा मुद्दा !

फिल्म को लेकर बढ़ता विरोध

फिल्म को लेकर बढ़ता विरोध
फिल्म को लेकर बढ़ता विरोध

‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर विरोध के स्वर विभिन्न सामाजिक संगठनों, मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों और विपक्षी दलों से उठ रहे हैं। इनका कहना है कि फिल्म में एक विशेष समुदाय को लक्षित करके नफरत फैलाने की कोशिश की गई है और यह समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ सकती है।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और कुछ मुस्लिम सामाजिक संगठनों ने फिल्म के ट्रेलर को “उकसाने वाला” बताते हुए सरकार से तत्काल बैन लगाने की मांग की है। इनका तर्क है कि यह फिल्म एकतरफा दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है और इससे लोगों में भय और घृणा का माहौल बन सकता है।

विधानसभा में उठा मुद्दा

राजस्थान विधानसभा में भी यह मामला गरमा गया। कांग्रेस विधायक और कुछ निर्दलीय जनप्रतिनिधियों ने फिल्म के कंटेंट को “साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने वाला” करार देते हुए कहा कि सरकार को इस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। विपक्ष ने भी फिल्म को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है, लेकिन उनका आरोप है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है।

विधानसभा में कांग्रेस नेता ने कहा,
“हम किसी भी प्रकार की हिंसा के खिलाफ हैं, लेकिन एक फिल्म के माध्यम से पूरे समुदाय को कठघरे में खड़ा करना उचित नहीं है। इससे शांति भंग हो सकती है। सरकार को चाहिए कि सेंसर बोर्ड और कानून व्यवस्था के लिहाज से इस पर गंभीरता से विचार करे।”

वहीं भाजपा विधायक ने कहा,
“यह फिल्म सच्चाई पर आधारित है। यदि कन्हैयालाल हत्याकांड को फिल्माया गया है, तो इसमें गलत क्या है? जो हुआ, वह देश को दिखाना जरूरी है ताकि लोग सच जानें।”

फिल्म निर्माता का पक्ष

फिल्म के निर्देशक ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्होंने कोई गलत या मनगढंत कहानी नहीं दिखाई है।
“हमने वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्म बनाई है। इसमें कोई काल्पनिक दृश्य नहीं है। हमने पीड़ित पक्ष की आवाज़ को सामने लाने का प्रयास किया है। जो लोग विरोध कर रहे हैं, वे शायद फिल्म की पूरी कहानी को देखे बिना ही पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं,” उन्होंने कहा।

निर्देशक ने यह भी स्पष्ट किया कि फिल्म का उद्देश्य किसी समुदाय को निशाना बनाना नहीं है, बल्कि समाज में हो रही कट्टरता के खिलाफ एक चेतावनी देना है।

सेंसर बोर्ड और प्रशासन की स्थिति

फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से ‘ए’ सर्टिफिकेट मिल चुका है, जिससे यह वयस्कों के लिए अनुमत है। वहीं, राजस्थान प्रशासन अब स्थिति की समीक्षा कर रहा है। राज्य के गृह विभाग ने संबंधित जिला अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है कि फिल्म के प्रदर्शन से कहीं साम्प्रदायिक तनाव तो नहीं बढ़ेगा।

निष्कर्ष

‘उदयपुर फाइल्स’ ने एक बार फिर फिल्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक शांति के बीच बहस को जन्म दे दिया है। एक ओर जहां इसके समर्थक इसे “सच दिखाने की कोशिश” बता रहे हैं, वहीं विरोधी इसे “सांप्रदायिक उकसावे का माध्यम” मान रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या राज्य सरकार इस फिल्म पर रोक लगाती है या यह विवाद और गहराता है।

फिलहाल, यह साफ है कि ‘उदयपुर फाइल्स’ सिर्फ एक फिल्म नहीं रही, बल्कि यह एक ऐसा मुद्दा बन चुकी है, जिस पर देश का सामाजिक और राजनीतिक विमर्श केंद्रित हो चुका है।

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