लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव घर और पार्टी से निकाले जाने के बाद पहली बार जनता के बीच पहुंचे। उन्होंने महुआ सीट से चुनाव लड़ने का संकेत भी दे दिया।
बिहार की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार कारण हैं राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव, जिन्होंने एक बार फिर अपने अनोखे अंदाज़ में सबको चौंका दिया है। हाल ही में तेज प्रताप यादव ने न केवल पार्टी के झंडे में बदलाव किया, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर एक नई सीट से चुनाव लड़ने के संकेत भी दिए हैं। उनके इस सियासी दांव को लेकर बिहार की राजनीति में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।

पार्टी झंडे में बदलाव – नई शुरुआत की ओर संकेत?
तेज प्रताप यादव ने अपने राजनीतिक संगठन ‘छात्र जनशक्ति परिषद’ के झंडे में बड़ा बदलाव किया है। पहले यह झंडा पारंपरिक हरे और लाल रंग के संयोजन में था, जो कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की पहचान रहा है। अब इस झंडे में उन्होंने ‘भगवा’ रंग का प्रयोग किया है, जो एक बड़ा राजनीतिक संकेत माना जा रहा है।
तेज प्रताप ने इस नए झंडे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं और कहा,
“यह झंडा युवाओं की नई सोच, संस्कृति और संघर्ष का प्रतीक है। यह बदलाव केवल रंगों का नहीं, विचारों और दिशा का भी है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप यादव अपनी राजनीतिक पहचान को अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। जहां तेजस्वी को राजद का उत्तराधिकारी माना जा रहा है, वहीं तेज प्रताप अब खुद को एक वैकल्पिक जन नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।
नई सीट से चुनाव लड़ने के संकेत
तेज प्रताप यादव अभी हसनपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं, लेकिन हालिया बयानों और सोशल मीडिया पोस्ट्स से यह संकेत मिला है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में किसी नई सीट से मैदान में उतर सकते हैं। उन्होंने पटना, मोकामा और आरा जैसे शहरी क्षेत्रों का नाम लिया है, जहाँ वे “युवा शक्ति को संगठित करना” चाहते हैं।
एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा:
“हमें शहरी युवाओं को जोड़ना होगा, वहाँ से बदलाव की लहर उठेगी। अगला चुनाव मैं ऐसी जगह से लड़ूंगा, जहाँ युवा शक्ति की पुकार सबसे तेज़ है।”
इस बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है, खासकर उन सीटों पर जहां राजद का पारंपरिक जनाधार नहीं रहा है।
तेजस्वी बनाम तेज प्रताप – अंतर्विरोध या रणनीति?
तेज प्रताप और तेजस्वी यादव के बीच मतभेद की खबरें नई नहीं हैं। हालांकि सार्वजनिक मंचों पर दोनों भाई एकता दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तेज प्रताप कई बार अपनी पार्टी और नेतृत्व से असहमति जताते रहे हैं। चाहे वह मंत्री पद से इस्तीफा देना हो, या पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बनाना — तेज प्रताप हमेशा एक “बागी नेता” की छवि में दिखे हैं।
अब पार्टी झंडे में बदलाव और नई सीट से चुनाव लड़ने की बात को उसी असंतोष का परिणाम माना जा रहा है। कुछ विश्लेषक इसे “नरम विद्रोह” कह रहे हैं, तो कुछ इसे आने वाले समय में नई राजनीतिक पार्टी या अलग धड़े के गठन की भूमिका बता रहे हैं।
राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाएं
तेज प्रताप के इस कदम पर भाजपा, जदयू और कांग्रेस के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा,
“राजद परिवार में सत्ता की लड़ाई अब खुलकर सामने आ चुकी है। तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच संघर्ष बिहार की जनता के लिए नुकसानदेह है।”
वहीं राजद के भीतर भी इस मुद्दे पर चुप्पी छाई हुई है। पार्टी नेतृत्व अभी कोई टिप्पणी करने से बच रहा है, जिससे अटकलें और तेज हो गई हैं।
निष्कर्ष
तेज प्रताप यादव का झंडा बदलना और नई सीट से चुनाव लड़ने का संकेत देना केवल प्रतीकात्मक कदम नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में एक संभावित नई धारा की ओर इशारा कर रहा है। वे खुद को अब लालू यादव के पुत्र की छवि से निकालकर एक स्वतंत्र राजनीतिक चेहरा बनाना चाहते हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह सियासी प्रयोग उन्हें नया मुकाम दिलाता है, या पारिवारिक राजनीति की उलझनों में उलझकर रह जाता है।
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