बिहार में जातीय समीकरणों की नई चाल, तेजस्वी यादव की खास रणनीति !

बिहार की राजनीति में जाति का बोलबाला हमेशा से रहा है। ऐसे में बिहार में कौन सा वर्ग किसके साथ है और राजनीतिक दलों का समीकरण क्या है? आइए समझते हैं ये पूरा गणित।

बिहार की राजनीति में एक बार फिर जातीय समीकरणों की नई गूंज सुनाई देने लगी है। 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में संभावित विधानसभा चुनावों को देखते हुए राज्य के प्रमुख दलों ने रणनीतिक पैंतरेबाज़ी तेज़ कर दी है। इस कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पूरी ताकत से जातीय समीकरणों को साधने में जुटे हुए हैं। उनकी रणनीति स्पष्ट है – ‘माय’ (Yadav-Muslim) समीकरण से आगे बढ़कर पिछड़ों, अति पिछड़ों और सवर्णों को भी एकजुट करना।

बिहार में जातीय समीकरणों की नई चाल, तेजस्वी यादव की खास रणनीति !
बिहार में जातीय समीकरणों की नई चाल, तेजस्वी यादव की खास रणनीति !

तेजस्वी की नई सोच: ‘MY+X फैक्टर’

राजद लंबे समय से मुस्लिम और यादव वोटबैंक पर निर्भर रहा है, लेकिन इस बार तेजस्वी यादव ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने अब ‘MY’ समीकरण में ‘X फैक्टर’ जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अति पिछड़ा वर्ग (EBC), दलित और कुछ हद तक सवर्ण जातियों को भी शामिल करने की योजना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि तेजस्वी यादव यह समझ चुके हैं कि केवल मुस्लिम और यादव वोटों के सहारे सत्ता में वापसी संभव नहीं है, खासकर जब बीजेपी और जेडीयू जैसी पार्टियां एकजुट होकर सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में हैं।

गांव-गांव जाकर भरोसा जीतने की कोशिश

तेजस्वी यादव ने हाल ही में ‘जनसम्पर्क यात्रा’ की शुरुआत की है, जिसके तहत वह बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर सीधे जनता से संवाद कर रहे हैं। इस यात्रा का उद्देश्य अति पिछड़ी जातियों और दलितों के बीच राजद के प्रति विश्वास बढ़ाना है।

पश्चिम चंपारण, सहरसा, वैशाली, समस्तीपुर, औरंगाबाद और कटिहार जैसे जिलों में उन्होंने अति पिछड़े वर्ग के नेताओं के साथ बैठकें कीं और उनकी समस्याएं सुनीं। इसके साथ ही तेजस्वी यादव ने स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों, शिक्षकों, छात्र संगठनों और महिला समूहों से भी मुलाकात की।

सवर्णों को भी साधने की कोशिश

राजद की छवि अब तक एक विशेष वर्ग-आधारित पार्टी की रही है, लेकिन अब पार्टी नेतृत्व इसे बदलने की कोशिश कर रहा है। तेजस्वी यादव ने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा है कि वे सभी वर्गों की बात करते हैं, चाहे वह ब्राह्मण हों, भूमिहार हों या कायस्थ। हाल ही में उन्होंने पटना में एक सवर्ण प्रतिनिधि सम्मेलन में हिस्सा लिया और कहा,
“राजद अब सिर्फ एक जाति की पार्टी नहीं, बल्कि बिहार के हर नागरिक की पार्टी है। हम सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की भी बात करते हैं।”

महिला और युवा मतदाताओं पर भी फोकस

तेजस्वी यादव ने युवाओं और महिलाओं को भी अपने पाले में लाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाए हैं। ‘बेरोजगारी हटाओ यात्रा’, महिला सुरक्षा और शिक्षा पर आधारित घोषणाएं, और नौकरी देने के पुराने वादों को दोहराकर वे इन वर्गों को आकर्षित करने में लगे हैं।

बीजेपी-जेडीयू की टेंशन बढ़ी

तेजस्वी की बढ़ती सक्रियता और व्यापक जातीय रणनीति ने बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की नींद उड़ा दी है। दोनों दलों ने भी हाल के दिनों में अपने-अपने जातीय सम्मेलन शुरू किए हैं और पिछड़ा वर्ग, दलितों व महिलाओं को जोड़ने की कोशिशों में लग गए हैं।

बीजेपी ने ‘पसमांदा मुस्लिम’ समाज को अपने साथ जोड़ने की कोशिश शुरू की है, वहीं जेडीयू अपने पुराने कुशवाहा, कुर्मी और दलित वोट बैंक को फिर से सक्रिय करने में जुट गई है।

निष्कर्ष

बिहार की राजनीति एक बार फिर जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है। तेजस्वी यादव की रणनीति न केवल पुराने वोटबैंक को मजबूत करने की है, बल्कि नए वर्गों को साथ लाकर एक व्यापक सामाजिक गठबंधन खड़ा करने की है। अगर वे इसमें सफल होते हैं तो 2025 के चुनाव में सत्ता की चाबी एक बार फिर उनके हाथ में हो सकती है। लेकिन यह राह आसान नहीं है, क्योंकि विपक्ष भी कमर कस चुका है। चुनावी बिसात पर अब हर चाल बहुत मायने रखेगी।

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