महाराष्ट्र में जारी हिंदी Vs मराठी विवाद संसद की लॉबी तक पहुंच गया है। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड ने दावा किया है कि मराठी सांसदों ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को संसद की लॉबी में घेरा था।
संसद के मानसून सत्र में उस वक्त अप्रत्याशित तनाव देखने को मिला जब झारखंड से भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे और कुछ मराठी भाषी सांसदों के बीच तीखी बहस हो गई। यह बहस संसद की कार्यवाही से आगे बढ़ते हुए संसद भवन की लॉबी तक पहुंच गई, और यह हिंदी बनाम मराठी भाषा विवाद का रूप लेने लगी।

घटना की शुरुआत कहां से हुई?
सूत्रों के मुताबिक, मामला उस समय शुरू हुआ जब निशिकांत दुबे ने एक समिति की बैठक के दौरान मराठी भाषा को लेकर एक टिप्पणी कर दी, जिसे महाराष्ट्र के कुछ सांसदों ने “अपमानजनक और भ्रामक” बताया। बैठक के बाद जब सांसद लॉबी में पहुंचे, तब शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस के मराठी सांसदों ने दुबे को घेर लिया और उनके बयान पर आपत्ति जताई।
दुबे ने कथित रूप से यह कहा था कि “हिंदी ही देश की असली संपर्क भाषा है और क्षेत्रीय भाषाओं को अनावश्यक रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है।” मराठी सांसदों का आरोप है कि यह बयान मराठी भाषा और संस्कृति के प्रति असम्मान दर्शाता है।
मराठी सांसदों का तीखा विरोध
शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा, “मराठी हमारी अस्मिता है, हमारी संस्कृति की पहचान है। किसी को भी यह हक नहीं कि वह हमारी भाषा को छोटा समझे या तिरस्कार करे। हम संसद में इस मुद्दे को गंभीरता से उठाएंगे।”
एनसीपी की सुप्रिया सुले और कांग्रेस की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी निशिकांत दुबे के खिलाफ तीखा रुख अपनाते हुए स्पीकर से इस बयान की जांच और कार्रवाई की मांग की है।
निशिकांत दुबे की सफाई
विवाद बढ़ने पर निशिकांत दुबे ने सफाई देते हुए कहा कि उनकी बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “मैंने केवल यह कहा था कि हिंदी एक व्यापक संपर्क भाषा है, न कि किसी अन्य भाषा को नीचा दिखाने की बात की। मेरा मराठी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा से कोई विरोध नहीं है।”
हालांकि, मराठी सांसद इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं और उनका कहना है कि यह केवल “राजनीतिक बचाव” है।
राजनीतिक असर और प्रतिक्रिया
यह विवाद सिर्फ भाषाई मुद्दा न रहकर अब राजनीतिक रंग भी लेने लगा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से भी बयान आया है कि “महाराष्ट्र की भाषा और सम्मान के खिलाफ कोई भी बयान अस्वीकार्य है। यह राज्य का मुद्दा है, न कि केवल कुछ सांसदों का।”
विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि भाजपा सांसद जानबूझकर भाषाई विभाजन को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बयान में कहा कि “भाषाएं भारत की विविधता का प्रतीक हैं, न कि प्रतिस्पर्धा का आधार। भाजपा की मानसिकता भाषा और संस्कृति को भी राजनीतिक हथियार बना रही है।”
लोकसभा स्पीकर का रुख

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पूरे विवाद पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि यदि किसी सांसद द्वारा अनुचित भाषा का प्रयोग किया गया है, तो उसकी समीक्षा की जाएगी। स्पीकर ने सभी सदस्यों से आग्रह किया है कि वे भाषा और संस्कृति के मुद्दों पर संवेदनशीलता बरतें और सदन की गरिमा बनाए रखें।
निष्कर्ष
हिंदी बनाम मराठी विवाद ने संसद के भीतर एक बार फिर भाषा आधारित असहमति की जटिलता को उजागर कर दिया है। भारत की बहुभाषी संरचना में सभी भाषाओं का सम्मान अनिवार्य है, और किसी भी सार्वजनिक मंच, विशेष रूप से संसद जैसे उच्चतम लोकतांत्रिक संस्थान में, जिम्मेदार भाषण अपेक्षित होता है। यह विवाद आने वाले दिनों में महाराष्ट्र और केंद्र की राजनीति में भी एक अहम मुद्दा बन सकता है।