‘उदयपुर फाइल्स’ पर दिल्ली HC सख्त – प्रमाणन तक नहीं होगी रिलीज !

फिल्म उदयपुर फाइल्स की रिलीज मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले में कोर्ट ने कहा कि जब तक प्रमाणन नहीं हो जाता, फिल्म प्रदर्शित नहीं की जा सकती।

दिल्ली हाईकोर्ट ने बहुचर्चित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ की रिलीज पर फिलहाल रोक लगाने का संकेत देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि जब तक फिल्म को सेंसर बोर्ड (CBFC) से विधिवत प्रमाणन नहीं मिल जाता, तब तक इसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए कहा कि इस तरह की संवेदनशील फिल्मों के प्रदर्शन से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।

'उदयपुर फाइल्स' पर दिल्ली HC सख्त – प्रमाणन तक नहीं होगी रिलीज !
‘उदयपुर फाइल्स’ पर दिल्ली HC सख्त – प्रमाणन तक नहीं होगी रिलीज !

कोर्ट की सख्ती और टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को ‘उदयपुर फाइल्स’ के रिलीज से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई। अदालत ने फिल्म के निर्माताओं से पूछा कि क्या उन्होंने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से वैध प्रमाणपत्र प्राप्त किया है। जब निर्माताओं की ओर से इस संबंध में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई, तब अदालत ने कहा:
“जब तक CBFC से प्रमाणन प्राप्त नहीं हो जाता, फिल्म का प्रदर्शन — चाहे वह थिएटर में हो या ओटीटी पर — कानून के खिलाफ होगा।”

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार की एकल पीठ ने यह भी कहा कि फिल्म की विषयवस्तु अत्यधिक संवेदनशील है और इससे समाज में तनाव फैलने की आशंका हो सकती है, इसलिए सभी कानूनी औपचारिकताओं का पालन अनिवार्य है।

क्या है ‘उदयपुर फाइल्स’?

उदयपुर फाइल्स एक आगामी फिल्म है, जो राजस्थान के उदयपुर में वर्ष 2022 में हुई कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित बताई जा रही है। फिल्म के ट्रेलर और कथित कथानक को लेकर सोशल मीडिया पर पहले से ही काफी विवाद है। निर्माताओं का दावा है कि फिल्म “सच्चाई पर आधारित है”, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाला कंटेंट प्रस्तुत कर सकती है।

याचिका क्यों दायर हुई?

याचिका क्यों दायर हुई?
याचिका क्यों दायर हुई?

दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका एक सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से दाखिल की गई थी, जिसमें फिल्म पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि फिल्म की विषयवस्तु सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ सकती है और इससे कानून-व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। याचिका में यह भी कहा गया कि ट्रेलर और पोस्टरों के आधार पर प्रतीत होता है कि फिल्म में एक विशेष समुदाय को लक्षित किया गया है।

फिल्म निर्माताओं का पक्ष

फिल्म के निर्माताओं ने कोर्ट में कहा कि उन्होंने CBFC से प्रमाणन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही प्रमाणपत्र मिल जाएगा। उन्होंने यह भी दलील दी कि फिल्म का उद्देश्य “जन जागरूकता” है और यह किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है।

हालांकि, कोर्ट ने निर्माताओं को चेताया कि बिना सेंसर बोर्ड की अनुमति के किसी भी तरह का प्रचार या प्रदर्शन नियमों का उल्लंघन होगा और इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

सेंसर बोर्ड की प्रक्रिया

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के नियमों के अनुसार, कोई भी फिल्म तब तक प्रदर्शित नहीं की जा सकती जब तक कि उसे उपयुक्त श्रेणी में प्रमाणपत्र न मिल जाए। इसमें फिल्म की स्क्रिप्ट, दृश्य, संवाद और संदेश की समीक्षा की जाती है। विवादित विषयों वाली फिल्मों के लिए प्रक्रिया और भी कठोर होती है।

अगली सुनवाई और संभावित कार्रवाई

कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख दो सप्ताह बाद तय की है और निर्देश दिया है कि तब तक फिल्म का कोई सार्वजनिक प्रदर्शन या प्रचार नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने CBFC को भी निर्देश दिया है कि वह प्रमाणन प्रक्रिया को प्राथमिकता दे और अदालत को स्थिति से अवगत कराए।

निष्कर्ष

‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर उत्पन्न विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि रचनात्मक अभिव्यक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाए। दिल्ली हाईकोर्ट की सख्ती यह दर्शाती है कि कानून से ऊपर कोई नहीं, चाहे वह कला के नाम पर कुछ भी दिखाने का दावा करे।

अब सभी की नजर CBFC के फैसले और कोर्ट की अगली सुनवाई पर है, जिससे तय होगा कि फिल्म दर्शकों तक पहुंचेगी या नहीं।

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