आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कैग की रिपोर्ट का हवाला देकर दावा किया कि 80000 करोड़ का हिसाब बिहार सरकार नहीं दे पायी है।
बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। इस बार मामला है नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की उस रिपोर्ट का, जिसमें राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल खड़े किए गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार सरकार लगभग 80,000 करोड़ रुपये की रकम का उचित हिसाब देने में विफल रही है। इसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर सीधा हमला बोला है।

तेजस्वी यादव का आरोप

पटना में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में तेजस्वी यादव ने CAG रिपोर्ट को लहराते हुए कहा:
“यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि जनता के पैसे की लूट का मामला है। नीतीश कुमार की सरकार बताए कि 80,000 करोड़ रुपये कहां गए? किसके पास गए? और इसका कोई ऑडिट क्यों नहीं हुआ?“
तेजस्वी ने आगे कहा कि अगर यही काम किसी विपक्षी सरकार ने किया होता तो अब तक CBI, ED और IT विभाग की टीम सक्रिय हो गई होती।
“नीतीश कुमार खुद को सुशासन बाबू कहते हैं, लेकिन ये ‘साइलेंट स्कैम’ उनकी असली पहचान है।“
“जो पैसे स्कूलों, अस्पतालों, किसानों और युवाओं की भलाई में लगने थे, वे गायब हैं और सरकार जवाब देने से बच रही है।“
क्या कहती है CAG रिपोर्ट?
CAG की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि वर्ष 2022-23 के दौरान बिहार सरकार ने करीब 80,000 करोड़ रुपये की राशि के खर्च का उपयोगिता प्रमाणपत्र (यूसी) संबंधित विभागों से प्राप्त नहीं किया।
- यह राशि विभिन्न विकासात्मक योजनाओं और विभागीय खर्चों से जुड़ी थी।
- बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र के यह नहीं कहा जा सकता कि यह रकम सही जगह खर्च हुई या नहीं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की वित्तीय लापरवाही से पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों पर असर पड़ता है।
नीतीश सरकार की सफाई
राज्य के वित्त मंत्री विजय चौधरी ने तेजस्वी के आरोपों को “राजनीतिक नाटक” बताते हुए कहा कि:
“हर वर्ष हजारों करोड़ की योजनाएं चलती हैं और कुछ मामलों में तकनीकी कारणों से उपयोगिता प्रमाणपत्रों में देर हो जाती है। इसका मतलब यह नहीं कि पैसे की हेराफेरी हुई है।“
सरकार का तर्क है कि अधिकांश विभागों से उपयोगिता प्रमाणपत्र एकत्र किए जा रहे हैं और प्रक्रिया में देरी का मतलब भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता।
विपक्ष का तीखा हमला
राजद के साथ-साथ कांग्रेस और वामपंथी दलों ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि:
“जब आम जनता को बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है, तब सरकार का 80,000 करोड़ रुपये का हिसाब न देना निंदनीय है।“
वाम दलों ने इसे “नीतीश सरकार का वित्तीय दिवालियापन” बताया है और विधानसभा सत्र में इस पर विस्तृत बहस की मांग की है।
राजनीतिक मायने
CAG रिपोर्ट और तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया का राजनीतिक महत्व भी है। बिहार में आगामी चुनावों की आहट महसूस की जा रही है, और ऐसे में यह मुद्दा विपक्ष के लिए सरकार को घेरने का एक बड़ा हथियार बन सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस मुद्दे को सही ढंग से उठाया गया और जनता के बीच ले जाया गया, तो यह “सुशासन” की छवि पर बड़ा धब्बा साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
CAG की रिपोर्ट ने बिहार सरकार के वित्तीय प्रबंधन को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। तेजस्वी यादव ने इस मौके को भुनाते हुए नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला है। हालांकि सरकार इसे तकनीकी देरी का मामला बता रही है, लेकिन विपक्ष इस मुद्दे को छोड़ने के मूड में नहीं है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी दिनों में यह मामला और कितना राजनीतिक तूल पकड़ता है और क्या नीतीश सरकार जनता के सामने अपने पक्ष को प्रभावी ढंग से रख पाती है या नहीं।
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