‘रंगीन’ वेब सीरीज आज रिलीज हो गई है। कहानी कई गहरी बातों को कहने की कोशिश करती है, लेकिन अपने मकसद को पूरा करने से चूक रही है। विनीत कुमार सिंह का काम अच्छा है। जानें पूरा रिव्यू।
विनीत कुमार सिंह की फिल्म ‘रंगीन’ हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुई है, और इस फिल्म ने अपने अनोखे विषय और विनीत के दमदार अभिनय के कारण दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया है। फिल्म एक जिगोलो (पुरुष एस्कॉर्ट) की कहानी के माध्यम से समाज, वर्जनाओं, रिश्तों और पहचान जैसे गंभीर मुद्दों को उठाने की कोशिश करती है, लेकिन कहानी कहने के तरीके में फिल्म कहीं न कहीं भटकती नजर आती है।

कहानी का सार
‘रंगीन’ की कहानी विराज (विनीत कुमार सिंह) नाम के युवक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो दिन में एक सामान्य आदमी की ज़िंदगी जीता है और रात में एक जिगोलो के रूप में अमीर महिलाओं को “संतुष्टि” देने का काम करता है। वह मजबूरी में इस काम को करता है, लेकिन समय के साथ यह उसकी पहचान बन जाती है।
विराज का सामना होता है ऐसे कई किरदारों से जो या तो उसकी ज़िंदगी में भावनाओं की जगह बनाते हैं या फिर उसे और अधिक अंधेरे में धकेलते हैं। फिल्म में विराज की आंतरिक पीड़ा, समाज द्वारा जिगोलो को देखे जाने का नजरिया और खुद से लड़ते रहने की जद्दोजहद को दिखाने का प्रयास किया गया है।
अभिनय और निर्देशन
विनीत कुमार सिंह ने एक बार फिर साबित किया है कि वे चुनौतीपूर्ण किरदारों को निभाने में कितने सक्षम हैं। विराज के किरदार में उनका आत्मविश्वास, गहराई और संवेदनशीलता साफ झलकती है। उन्होंने जिगोलो जैसे विषय को बिना अश्लीलता के, पूरी गरिमा और ईमानदारी से निभाया है।
फिल्म का निर्देशन किया है प्रवेश सिंह ने, जो अपने करियर की शुरुआती पंक्तियों में हैं। उन्होंने विषय को संवेदनशीलता से छूने की कोशिश की है, लेकिन कहानी के बहाव और स्क्रीनप्ले में मजबूती की कमी रह गई। कई दृश्यों में भावनात्मक जुड़ाव की कमी महसूस होती है, जिससे दर्शक पूरी तरह कनेक्ट नहीं कर पाते।
स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले
‘रंगीन’ का विचार और विषय निश्चित ही साहसी और अलग है, लेकिन फिल्म का स्क्रीनप्ले कमजोर है। फिल्म की गति अनियमित है – कुछ हिस्से बेहद धीमे हैं, तो कुछ अचानक ही तेज। कई सबप्लॉट्स शुरू होकर अधूरे रह जाते हैं, जिससे फिल्म की गहराई में जाने का मौका नहीं मिलता। जिगोलो की सामाजिक स्वीकार्यता, क्लाइंट्स के साथ भावनात्मक संबंध, और आत्म-ग्लानि जैसे मुद्दे छूए तो गए हैं, लेकिन परिपक्वता से नहीं निपटाए गए।
संगीत और तकनीकी पक्ष
फिल्म का साउंडट्रैक औसत है। दो-तीन गाने फिल्म के मूड से मेल खाते हैं लेकिन याद रह जाने वाले नहीं हैं। बैकग्राउंड स्कोर कुछ दृश्यों में प्रभावशाली है, खासकर जब विराज अपने अतीत के बारे में सोचता है।
सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो फिल्म में दिल्ली और मुंबई की रात्रिकालीन दुनिया को अच्छी तरह से कैमरे में कैद किया गया है। लाइटिंग और फ्रेमिंग में वास्तविकता और बनावटीपन का संतुलन बना है।
क्या अच्छा है?
- विनीत कुमार सिंह का दमदार अभिनय
- समाज के अनदेखे पक्ष को उजागर करने का प्रयास
- कुछ संवाद और दृश्य जो भावनात्मक रूप से प्रभावशाली हैं
क्या खटकता है?
- कमजोर स्क्रीनप्ले और पटकथा
- अधूरे छूटे सबप्लॉट्स
- सामाजिक संदेशों की स्पष्टता की कमी
- धीमी रफ्तार और भावनात्मक गहराई का अभाव
निष्कर्ष
‘रंगीन’ एक अच्छे विचार पर बनी अधूरी कोशिश है। यह फिल्म एक जिगोलो की जिंदगी को संवेदनशीलता के साथ पेश करने का साहस करती है, लेकिन अपने मकसद को पूरी तरह साध नहीं पाती।
विनीत कुमार सिंह का अभिनय फिल्म को देखने लायक बनाता है, लेकिन अगर आप एक ठोस कहानी, स्पष्ट मैसेज और भावनात्मक गहराई की तलाश में हैं, तो ‘रंगीन’ अधूरी लगेगी। यह फिल्म कला और विषय चयन के मामले में रंगीन जरूर है, लेकिन कहानी के रंग फीके पड़ जाते हैं।
रेटिंग: ⭐⭐½ (2.5/5)
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