घर में जला हुआ कैश मिलने के मामले में आरोपों से घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका देते हुए उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कैश कांड के मामले में उनके खिलाफ चल रही जांच और कार्रवाई को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
क्या है कैश कांड?
कैश कांड एक बहुचर्चित मामला है जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने कुछ बड़े कॉरपोरेट मामलों में फैसला सुनाने के बदले कथित रूप से करोड़ों रुपये की नकद रिश्वत ली थी। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने एक गुप्त ऑपरेशन के दौरान इस घोटाले का पर्दाफाश किया।

जांच में यह सामने आया कि कई लॉ फर्म और कॉरपोरेट लॉबिस्ट के जरिए कथित तौर पर रिश्वत की रकम वर्मा तक पहुंचाई गई थी। छापेमारी के दौरान कई बैंकों के लॉकर, अघोषित संपत्ति, और नकदी भी बरामद हुई थी।
क्या थी याचिका में दलील?
जस्टिस (रिटायर्ड) यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में दलील दी थी कि:
- उनके खिलाफ चल रही जांच न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला है।
- यह कार्रवाई राजनीति से प्रेरित और बदनाम करने की कोशिश है।
- बिना पर्याप्त सबूतों के सिर्फ “मीडिया ट्रायल” के आधार पर उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
उन्होंने यह भी मांग की थी कि जांच एजेंसियों की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए और उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा :
“न्यायिक पद पर रह चुके व्यक्ति को और अधिक संयम, पारदर्शिता और जवाबदेही का पालन करना चाहिए। कानून सभी के लिए समान है – चाहे वह आम नागरिक हो या पूर्व न्यायाधीश।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि जांच एजेंसियों के पास प्रारंभिक प्रमाण हैं, तो वह अपने कर्तव्यों के तहत जांच करने के लिए स्वतंत्र हैं। न्यायालय जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि कोई गंभीर संवैधानिक उल्लंघन न हो।
सरकार और एजेंसियों की दलील
CBI और ED ने सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर स्पष्ट किया कि इस केस में पुख्ता सबूत और दस्तावेजी रिकॉर्ड हैं। एजेंसियों ने बताया कि जांच के दौरान बैंकिंग लेनदेन, मोबाइल कॉल डाटा, लॉ फर्म की फीस रिकॉर्ड और गवाहों के बयान उनके दावों को पुष्ट करते हैं।
राजनीतिक और कानूनी हलकों में हलचल
इस फैसले के बाद न्यायपालिका के भीतर और बाहर चर्चा तेज हो गई है। कुछ वरिष्ठ वकीलों और पूर्व न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह न्यायिक जवाबदेही की मिसाल है।
वहीं, कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने यह सवाल भी उठाया कि क्या यह मामला एक बड़ा रैकेट है जिसमें और भी नाम सामने आ सकते हैं?
अगले कदम क्या होंगे?
अब CBI और ED इस मामले में अपनी जांच को तेज करेंगे। माना जा रहा है कि जल्द ही चार्जशीट दाखिल की जा सकती है। कुछ और वकीलों और लॉ फर्म्स से भी पूछताछ की जा सकती है।
निष्कर्ष
जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायिक पदों पर बैठे लोगों को भी कानून के तहत जवाबदेह रहना होगा। कैश कांड की परतें अभी और खुलनी बाकी हैं, लेकिन यह घटना भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और विश्वास को बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा संकेत मानी जा रही है।