संसद परिसर में विपक्षी सांसदों ने बिहार में SIR के मुद्दे पर आज भी विरोध प्रदर्शन किया।
संसद का मानसून सत्र शुक्रवार को एक बार फिर विपक्षी दलों के भारी हंगामे की भेंट चढ़ गया। दोनों सदनों में तीखी नोकझोंक और आरोप-प्रत्यारोप के बीच राज्यसभा की कार्यवाही को 11 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। विपक्ष ने सरकार के खिलाफ कई मुद्दों को लेकर प्रदर्शन किया, जिनमें मणिपुर हिंसा, महंगाई, बेरोजगारी, और कथित संस्थागत दुरुपयोग जैसे विषय प्रमुख रहे।

क्या हुआ आज संसद में?
सत्र की शुरुआत से ही विपक्षी सांसदों ने हंगामा करना शुरू कर दिया। जैसे ही राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्षी दलों ने ‘मणिपुर जल रहा है’, ‘लोकतंत्र खतरे में है’, और ‘प्रधानमंत्री जवाब दें’ जैसे नारे लगाना शुरू कर दिए। सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष से बार-बार आग्रह किया कि वे अपनी सीट पर लौटें और नियमों के तहत चर्चा करें, लेकिन शोर-शराबा थमता नहीं दिखा।

राज्यसभा में शून्यकाल और प्रश्नकाल पूरी तरह बाधित रहा। बार-बार व्यवस्था बनाए रखने की कोशिशों के बावजूद विपक्षी सांसदों के विरोध के चलते कार्यवाही को पहले दो बार के स्थगन के बाद अंततः 11 अगस्त तक स्थगित कर दिया गया।
लोकसभा में भी हंगामा
राज्यसभा ही नहीं, लोकसभा में भी विपक्षी दलों ने जमकर हंगामा किया। कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी और डीएमके समेत कई दलों ने मिलकर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए और मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री से सीधा बयान मांगा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सदन को सुचारु रूप से चलाने की अपील की, लेकिन बेअसर रही।
विपक्ष का आरोप
विपक्षी नेताओं का कहना है कि सरकार संवेदनशील मुद्दों पर जवाब देने से बच रही है। खासतौर पर मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों और राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर संसद में चर्चा कराने की मांग लंबे समय से की जा रही है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार सिर्फ “एकतरफा प्रचार” में लगी है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की अनदेखी कर रही है।
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “हम सिर्फ मणिपुर पर बहस नहीं चाहते, हम प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर जवाब चाहते हैं। देश जानना चाहता है कि सरकार क्या कर रही है।” वहीं टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करके सरकार जवाबदेही से भाग रही है।
सरकार का पक्ष
सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर सदन की कार्यवाही बाधित कर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन संसद को हंगामे का मंच नहीं बनने दिया जा सकता।
जोशी ने यह भी कहा कि बार-बार नियमों को ताक पर रखकर प्रदर्शन करना संसदीय परंपराओं का उल्लंघन है और इससे जनता का समय व संसाधन दोनों बर्बाद होते हैं।
लोकतंत्र बनाम गतिरोध
संसद का कामकाज बाधित होना अब एक नियमित स्थिति बनती जा रही है। हर सत्र में महत्त्वपूर्ण विधेयक अटक जाते हैं, और नीतिगत चर्चाएं शोर-शराबे में खो जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि संसद को संवाद और सहमति का मंच होना चाहिए, न कि सिर्फ टकराव का।
आगे क्या?
राज्यसभा की कार्यवाही अब 11 अगस्त को फिर से शुरू होगी, लेकिन अगर गतिरोध बरकरार रहता है तो मानसून सत्र के बाकी दिन भी बेकार जा सकते हैं। विपक्षी दल ‘इंडिया’ गठबंधन के तहत और ज्यादा समन्वय के साथ विरोध करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उधर सरकार को भी यह तय करना है कि वह किस हद तक संवाद के लिए तैयार है।
वर्तमान परिदृश्य में संसद के सुचारु संचालन के लिए दोनों पक्षों को संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाना ही होगा, वरना लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत महज एक मंच बनकर रह जाएगी – जहां न चर्चा होती है, न समाधान।