“‘कुली’ रिव्यू: रजनीकांत का धमाकेदार एक्शन, नागार्जुन संग दमदार परफॉर्मेंस ने बांधा दर्शकों को”

लोकेश कनगराज के डायरेक्शन में बनी रजनीकांत स्टारर ‘कुली’ स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। सोशल मीडिया पर नागार्जुन और आमिर खान की खूब तारीफ हो रही है तो ऐसे में चलिए जानते हैं कि फिल्म में कितना दम है।

लाखों प्रशंसकों की बेसब्री से प्रतीक्षा के बाद आखिरकार निर्देशक लोकेश कनगराज की फिल्म कुली रिलीज़ हो गई — और रजनीकांत ने एक बार फिर दर्शकों को अपनी ऊर्जा और ठाठ के साथ मंत्रमुग्ध कर दिया। लेकिन क्या केवल रजनीकांत ही फिल्म की जान थे, या नागार्जुन और अन्य सितारों ने भी अपनी छाप छोड़ी? आइए विस्तार से जानते हैं:

"‘कुली’ रिव्यू: रजनीकांत का धमाकेदार एक्शन, नागार्जुन संग दमदार परफॉर्मेंस ने बांधा दर्शकों को"
“‘कुली’ रिव्यू: रजनीकांत का धमाकेदार एक्शन, नागार्जुन संग दमदार परफॉर्मेंस ने बांधा दर्शकों को”

रजनीकांत का “फैंटमएंट्री” प्रदर्शन

रजनीकांत का “फैंटमएंट्री” प्रदर्शन
रजनीकांत का “फैंटमएंट्री” प्रदर्शन

फिल्म की शुरुआत में थोड़ी धीमी रफ्तार ज़रूर है, लेकिन जैसे ही रजनीकांत “देवा” के रूप में स्क्रीन पर आते हैं, माहौल गरमा जाता है। उनकी एंट्री क्लासिक रजनी अंदाज़ के साथ — स्वैग, बीड़ी, स्टालिंग शॉट्स — पूरी तरह से दर्शकों के लिए उत्सव जैसा पल बन जाता है।

युवा दर्शकों के लिए, उनके दौर के कुछ रीमिक्स और AI-आधारित फ्लैशबैक दृश्य 30 साल पहले के “विंटेज रजनी” याद दिलाते हैं और गले लगते हैं।

नागार्जुन का धमाकेदार विलन

नागार्जुन ने “साइमन” नामक क्रूर अपराधी की भूमिका निभाई है — कम लेकिन प्रभावशाली स्क्रीन टाइम में उन्होंने पूरी तरह से अपना स्थान बना लिया। उनकी शांत लेकिन खौफनाक मौजूदगी, स्टाइलिश अंदाज़ और संकल्प से भरपूर किरदार ने दर्शकों के बीच सकल प्रभाव छोड़ा।

सामने वाले दृश्य जैसे कि “डेयाल” (सौबिन शाहिर) और प्रीथी (श्रुति हासन) की भूमिकाएं भी प्रभावी रहीं, लेकिन नागार्जुन की छाप सबसे गहरी रही।

कुली की धांसू कहानी

कहानी की शुरुआत होती है साइमन जेवियर (अक्किनेनी नागार्जुन) से जो एक तस्करी नेटवर्क चलाता है। इसमें साइमन का साथ उसका भरोसेमंद आदमी दयाल (सोबिन शाहिर) देता है जो अंडरकवर पुलिस कांस्टेबल है। वह उसकी मदद से सोने की घड़ियों और लोगों के अंगों की तस्करी करता है। वहीं, साइमन का बेटा अर्जुन कस्टम अधिकारी बन जाता है और अपने पिता के बुरे कामों से दूर रहने की कोशिश करता है।

फिल्म में देखने को मिलता है कि एक पुलिस अधिकारी बंदरगाह के कुली के रूप में अंडरकवर होकर साइमन के कामों की जानकारी निकालने की कोशिश करता है, लेकिन दयाल उसे खोज लेता है और मार डालता है। कुछ ही समय बाद दयाल घोषणा करता है कि कुलियों में पुलिस का एक और अंडरकवर अधिकारी भी शामिल है और उसकी पहचान बताने वाले को 2 करोड़ रुपये का इनाम मिलेगा।

दूसरी तरफ, देवराज ‘देवा’ (रजनीकांत) एक मेसन चलाता है, जहां स्टूडेंट्स को कम पैसों में रहने को जगह दी जाती हैं। उस मेसन में उन स्टूडेंट्स के अलावा देवा को मिलकर कुल 19 कुली भी रहते हैं। वहां पर रहने वालों के लिए एक नियम भी था कि धूम्रपान और शराब पीना मना है। कहानी में नया मोड़ तब आता है जब देवा को पता चलता है कि उसके दोस्त राजशेखर (सत्यराज) की मौत हो गई है। यहीं से शुरू होता है खूनी खेल का वो तमाशा, जिसके बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है।

निर्देशक की शैली, कहानी और तकनीकी पक्ष

लोकेश कनगराज ने इस फिल्म में अपनी मार्क शैली — तेज़ एक्शन, बड़े दृश्य, स्नाज़ी विज़ुअल्स — का भरपूर उपयोग किया है। लेकिन पटकथा और कहानी की मजबूती अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही — कई पात्र अधूरे रहे, और कुछ सबप्लॉट प्रभावहीन लगे।

Also Read :

कौन हैं रजनीकांत को ‘कुली’ बनाने वाले डायरेक्टर?