“EC पर भड़के तेजस्वी-राहुल, बोले: हमसे हलफनामा, अनुराग से क्यों नहीं?”

बिहार के औरंगाबाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर करारा हमला बोला है और एक बार फिर सवाल उठाए हैं। राहुल ने चुनाव आयोग को लेकर कहा कि वो मुझसे हलफनामा मांगते हैं लेकिन अनुराग ठाकुर से नहीं मांगते हैं।

भारतीय राजनीति में इन दिनों चुनाव आयोग (EC) की भूमिका को लेकर विपक्ष का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव ने एक संयुक्त सुर में EC पर गंभीर आरोप लगाए। दोनों नेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग विपक्षी नेताओं से तो सख्ती से हलफनामा और जवाब मांगता है, लेकिन जब बात भाजपा नेताओं की आती है तो वही संस्था चुप्पी साध लेती है। राहुल गांधी ने विशेष रूप से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का नाम लेते हुए सवाल उठाया कि आखिर उनसे हलफनामा क्यों नहीं लिया जा रहा, जबकि विपक्ष के छोटे-से-छोटे बयान पर तुरंत नोटिस थमा दिया जाता है।

"EC पर भड़के तेजस्वी-राहुल, बोले: हमसे हलफनामा, अनुराग से क्यों नहीं?"
“EC पर भड़के तेजस्वी-राहुल, बोले: हमसे हलफनामा, अनुराग से क्यों नहीं?”

राहुल गांधी का सीधा हमला

राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “चुनाव आयोग का काम संविधान के मुताबिक सभी दलों के साथ समान व्यवहार करना है। लेकिन आज हालत यह है कि हमसे हलफनामा मांगा जाता है, हमारी रैलियों और बयानों पर नजर रखी जाती है, जबकि भाजपा नेताओं के विवादित और भड़काऊ भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। अनुराग ठाकुर ने चुनावी मंच से जिस तरह के बयान दिए, वह सबके सामने हैं। ऐसे में क्या चुनाव आयोग की जिम्मेदारी नहीं बनती कि उनसे भी जवाब मांगे? या फिर आयोग अब सिर्फ भाजपा का ‘सहयोग आयोग’ बनकर रह गया है?”

राहुल का इशारा अनुराग ठाकुर के उस विवादित बयान की ओर था, जिसमें उन्होंने चुनावी जनसभा में भड़काऊ नारे लगवाए थे। विपक्ष का आरोप है कि इस तरह के बयान समाज में तनाव फैलाते हैं और चुनावी आचार संहिता का खुला उल्लंघन हैं।

तेजस्वी यादव की तल्खी

तेजस्वी यादव की तल्खी
तेजस्वी यादव की तल्खी

तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि चुनाव आयोग अब जनता का भरोसा खोता जा रहा है। उन्होंने कहा, “अगर लोकतंत्र को बचाना है तो संस्थाओं को निष्पक्ष होना पड़ेगा। आज स्थिति यह है कि हमारे भाषणों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है और आयोग तुरंत नोटिस भेज देता है, लेकिन सत्ता पक्ष के मंत्रियों और नेताओं की भड़काऊ राजनीति पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यह दोहरे मापदंड देश की राजनीति के लिए खतरनाक हैं।”

तेजस्वी ने यह भी जोड़ा कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विपक्षी दलों की रैलियों पर प्रशासनिक दबाव डाला जाता है, अनुमति देने में देर की जाती है, जबकि भाजपा नेताओं के कार्यक्रमों को पूरा सहयोग मिलता है।

विपक्ष का बड़ा आरोप – पक्षपातपूर्ण रुख

कांग्रेस और राजद के अलावा कई अन्य विपक्षी दल भी लंबे समय से आरोप लगाते रहे हैं कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के प्रति नरम रवैया अपनाता है। पश्चिम बंगाल और दिल्ली के चुनावों में भी इसी तरह के सवाल उठाए गए थे। विपक्ष का कहना है कि भाजपा नेताओं के विवादित बयान, धार्मिक ध्रुवीकरण और चुनावी खर्च के मामलों पर EC की चुप्पी लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात है।

भाजपा का पलटवार

हालांकि भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि विपक्ष अपने हारने के डर से चुनाव आयोग पर हमला कर रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि EC पूरी तरह स्वतंत्र संस्था है और उसकी कार्रवाई सबके सामने पारदर्शी तरीके से होती है। प्रवक्ता ने यह भी कहा कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव खुद अपनी बयानबाजी से विवाद पैदा करते हैं और फिर जिम्मेदारी से बचने के लिए EC को कठघरे में खड़ा कर देते हैं।

लोकतंत्र और चुनाव आयोग की भूमिका पर बहस

इस पूरे विवाद ने एक बार फिर देश में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर बहस छेड़ दी है। चुनाव आयोग भारत के लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है, जिसकी जिम्मेदारी है कि वह सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर और निष्पक्ष माहौल उपलब्ध कराए। अगर विपक्ष के आरोप सही हैं तो यह लोकतंत्र की नींव को हिला देने वाली बात होगी। वहीं अगर भाजपा का दावा सही है तो इसका मतलब है कि विपक्ष केवल राजनीतिक लाभ के लिए संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रहा है।

निष्कर्ष

विवाद चाहे जो भी हो, एक बात साफ है कि चुनाव आयोग की भूमिका और उसके निर्णयों की निष्पक्षता पर जनता की नजरें टिकी रहती हैं। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे बड़े नेताओं का हमला इस बहस को और तेज कर गया है। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग इन आरोपों का कैसे जवाब देता है और क्या वाकई अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं के खिलाफ कोई कदम उठाया जाता है या नहीं। क्योंकि अगर संस्थाओं पर भरोसा कमजोर हुआ तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होगी।

Also Read :

सपा से निष्कासित विधायक पूजा पाल की CM योगी संग मुलाकात !