Aja Ekadashi Vrat Katha: अजा एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी मानी जाती है। कहते हैं जो कोई इस दिन व्रत रखता है उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है। मान्यता है अजा एकादशी की व्रत कथा सुनने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति हो जाती है।
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है। वर्षभर आने वाली 24 एकादशियों में से अजा एकादशी विशेष पुण्यदायिनी मानी जाती है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली यह एकादशी केवल साधारण व्रत ही नहीं, बल्कि मोक्ष प्रदान करने वाली मानी गई है। धर्मग्रंथों में इसका महत्व इस प्रकार बताया गया है कि इस दिन व्रत-उपवास करने वाला व्यक्ति अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त करता है और उसके समस्त पाप नष्ट होकर उसे स्वर्ग के द्वार तक पहुंचाते हैं।

अजा एकादशी का महत्व
भविष्य पुराण और पद्म पुराण में वर्णित है कि अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसे ‘पाप विमोचिनी एकादशी’ भी कहा गया है। भगवान विष्णु की कृपा से व्रती को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से न केवल भोग बल्कि मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

इस दिन भक्त उपवास रखकर श्रीहरि विष्णु की पूजा करते हैं और रातभर जागरण कर भजन-कीर्तन करते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु के प्रिय इस दिन व्रत-पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ जितना पुण्य मिलता है, जो कि स्वयं राजाओं और महाराजाओं का सर्वोच्च यज्ञ माना जाता था।
अजा एकादशी व्रत कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में महिष्मति नगरी पर हरिश्चंद्र नामक राजा का शासन था। वे सत्यवादी और धर्मप्रिय राजा थे, लेकिन भाग्यवश उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। एक समय उन्हें अपने सत्य व्रत की रक्षा हेतु राज्य, धन और पत्नी-पुत्र सब खोना पड़ा। राजा हरिश्चंद्र श्मशान में डोम के सेवक बनकर रहने लगे।
दुख और विपत्ति से घिरे राजा एक दिन महर्षि गौतम के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। ऋषि ने उन्हें अजा एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया। राजा ने श्रद्धा पूर्वक यह व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप मिट गए, विपत्तियां दूर हो गईं और उन्हें पुनः राज्य, परिवार और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हुई। यही नहीं, इस व्रत के पुण्य से उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति भी हुई।
यह कथा स्पष्ट करती है कि अजा एकादशी का व्रत कितना प्रभावशाली और पापमोचक है।
व्रत विधि
अजा एकादशी का व्रत सूर्योदय से पहले स्नान करके आरंभ किया जाता है। व्रती को संकल्प लेकर पूरे दिन उपवास करना चाहिए। इस दिन सात्विक भोजन करना श्रेष्ठ माना जाता है और अन्न-भोजन का त्याग कर फलाहार करना उत्तम रहता है।
- प्रातःकाल गंगाजल या पवित्र जल से स्नान करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करें।
- तुलसी दल, पीले फूल, पंचामृत, धूप-दीप आदि से पूजन करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ या भगवद्गीता का पाठ विशेष फलदायी होता है।
- रात्रि में जागरण कर हरि नाम संकीर्तन करें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण किया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व
धार्मिक मान्यता के अलावा अजा एकादशी का व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है। उपवास से शरीर की पाचन शक्ति को विश्राम मिलता है, साथ ही विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। फलाहार और जल का सेवन शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाता है।
निष्कर्ष
अजा एकादशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है। जिस प्रकार राजा हरिश्चंद्र ने इस व्रत से अपने जीवन की कठिनाइयों को समाप्त किया, उसी प्रकार आज भी श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया व्रत मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर सकता है। इस दिन उपवास, पूजा और भजन-कीर्तन से व्यक्ति को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और उसे मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
इस प्रकार अजा एकादशी व्रत को अश्वमेध यज्ञ के समकक्ष फल देने वाला और स्वर्ग के द्वार खोलने वाला व्रत माना गया है। श्रद्धालु भक्तों के लिए यह अवसर अपने जीवन को पवित्र और सफल बनाने का एक अमूल्य अवसर है।
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