“ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चुप्पी क्यों? मनीष तिवारी का बड़ा खुलासा”

संसद के मानसून सत्र में पहलगाम हमले और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी और शशि थरूर को बोलने का मौका नहीं मिला था.

राजनीतिक हलकों में इन दिनों एक बड़ा सवाल गूंज रहा है—आखिरकार ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चर्चा क्यों नहीं होने दी गई? यह वही सवाल है जिसे लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने सरकार पर सीधा निशाना साधा है। उन्होंने दावा किया कि उन्हें संसद में इस विषय पर बोलने की अनुमति नहीं दी गई, जबकि यह मुद्दा देश की सुरक्षा और पारदर्शिता से जुड़ा हुआ है। उनके इस बयान के बाद से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।

"ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चुप्पी क्यों? मनीष तिवारी का बड़ा खुलासा"
“ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में चुप्पी क्यों? मनीष तिवारी का बड़ा खुलासा”

ऑपरेशन सिंदूर क्या है?

ऑपरेशन सिंदूर क्या है?
ऑपरेशन सिंदूर क्या है?

ऑपरेशन सिंदूर दरअसल भारतीय सुरक्षा एजेंसियों और सेना से जुड़ा एक संवेदनशील अभियान माना जा रहा है। आधिकारिक तौर पर इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और राजनीतिक बयानबाजी से संकेत मिलता है कि यह अभियान सीमा पार की गतिविधियों और आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने से जुड़ा हो सकता है। चूंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, इसलिए इस पर गोपनीयता बरती जा रही है।

मनीष तिवारी का आरोप

मनीष तिवारी का आरोप
मनीष तिवारी का आरोप

मनीष तिवारी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने संसद में इस मुद्दे को उठाने का प्रयास किया था। उनका कहना था कि लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च संस्था है और यहां पर देश की सुरक्षा, विदेश नीति और महत्वपूर्ण ऑपरेशनों पर चर्चा होना जरूरी है। लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा—“ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल पूछना और सरकार से जवाब मांगना मेरा संवैधानिक अधिकार है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि जब मैंने इस विषय को सदन में उठाने की कोशिश की तो मुझे बोलने की अनुमति ही नहीं मिली। आखिर सरकार किस बात से डर रही है?”

विपक्ष का हमला

कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस मामले को हाथों-हाथ लिया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बच रही है। विपक्ष का कहना है कि सरकार पारदर्शिता की बात तो करती है, लेकिन जब राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सवाल आते हैं तो जवाब देने से कतराती है।

कांग्रेस प्रवक्ताओं ने यह भी कहा कि अगर ऑपरेशन सिंदूर देश की सुरक्षा के लिए बड़ी उपलब्धि है, तो सरकार को गर्व से संसद में इसका ब्यौरा देना चाहिए था। वहीं, अगर इसमें कोई गंभीर प्रश्नचिह्न हैं, तो उन पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए थी।

सरकार की दलील

हालांकि, सत्ता पक्ष ने विपक्ष के इन आरोपों को खारिज किया है। सरकार के करीबी सूत्रों का कहना है कि संसद में हर बात सार्वजनिक रूप से नहीं रखी जा सकती, खासकर तब जब मामला सुरक्षा अभियानों और खुफिया गतिविधियों से जुड़ा हो। उनका कहना है कि इससे सुरक्षा एजेंसियों के ऑपरेशनों पर असर पड़ सकता है और दुश्मन देश सतर्क हो सकते हैं।

सत्ता पक्ष का तर्क है कि इस तरह की जानकारी केवल सुरक्षा मामलों की स्थायी समिति या बंद-द्वार वाली बैठकों में साझा की जाती है, ताकि गोपनीयता बनी रहे।

लोकतंत्र बनाम गोपनीयता की बहस

इस पूरे विवाद ने एक बार फिर लोकतंत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन की बहस छेड़ दी है। एक ओर विपक्ष का कहना है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को सच्चाई जानने का अधिकार है, वहीं दूसरी ओर सरकार यह तर्क दे रही है कि ज्यादा खुलासे से सुरक्षा खतरे में पड़ सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों पक्षों की दलीलों में दम है। संसद में हर संवेदनशील बात को सार्वजनिक करना व्यावहारिक नहीं है, लेकिन दूसरी ओर विपक्ष को यह आश्वासन भी मिलना चाहिए कि ऐसे अभियानों की सही निगरानी हो रही है और उसका दुरुपयोग नहीं हो रहा।

तिवारी का सख्त रुख

मनीष तिवारी ने यह भी कहा कि यह केवल ऑपरेशन सिंदूर की बात नहीं है, बल्कि एक बड़े सवाल का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार सांसदों को ही जानकारी देने से कतराती है, तो फिर पारदर्शिता और जवाबदेही का क्या मतलब रह जाता है?

उन्होंने संसद में बोलने न दिए जाने को लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बताया और कहा कि विपक्ष की आवाज दबाने की यह कोशिश सरकार की अधिनायकवादी प्रवृत्ति को दिखाती है।

आगे क्या?

अब देखना यह होगा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से आगे बढ़ाते हैं। संसद का अगला सत्र इस विवाद के कारण और भी गर्म रहने की संभावना है। अगर विपक्ष दबाव बनाए रखता है, तो सरकार को या तो बंद-द्वार बैठक बुलानी पड़ सकती है या फिर किसी रूप में विपक्ष को भरोसे में लेना होगा।

निष्कर्ष

ऑपरेशन सिंदूर पर मचा यह बवाल केवल एक ऑपरेशन की पारदर्शिता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच सही संतुलन की बहस को भी सामने लाता है। मनीष तिवारी का आरोप न केवल सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संसद में आवाज उठाने की आज़ादी कितनी महत्वपूर्ण है।

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