उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा मोड़ आया है। बसपा विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता बहाल हो गई है। इस फैसले के साथ ही मऊ विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव अब नहीं होगा। चुनावी माहौल में यह घटनाक्रम न केवल मऊ बल्कि पूरे पूर्वांचल की राजनीति को प्रभावित करने वाला माना जा रहा है।

मामला क्या था?
अब्बास अंसारी 2022 में मऊ से बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे। इसके बाद उनके खिलाफ अवैध हथियारों और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े कई मामले सामने आए। ईडी और यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की थी। गिरफ्तारी के बाद विधानसभा सदस्यता स्वतः समाप्त हो गई थी, जिसके चलते मऊ सीट खाली घोषित हुई और उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी गई थी।
विधानसभा सदस्यता बहाल कैसे हुई?
सूत्रों के मुताबिक, अदालत से मिली राहत और तकनीकी कारणों की वजह से अब्बास अंसारी की सदस्यता बहाल कर दी गई है। विधानसभा सचिवालय ने इस संबंध में औपचारिक आदेश जारी किया। आदेश जारी होते ही मऊ सीट पर प्रस्तावित उपचुनाव की संभावना खत्म हो गई है। चुनाव आयोग भी अब इस सीट पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं करेगा।
मऊ की राजनीति पर असर
मऊ विधानसभा सीट पूर्वांचल की राजनीति में बेहद अहम मानी जाती है। मुख्तार अंसारी के परिवार का यहां दशकों से वर्चस्व रहा है। अब्बास अंसारी की सदस्यता बहाल होने से बसपा कार्यकर्ताओं में उत्साह है। वहीं, सपा और भाजपा के स्थानीय नेताओं की रणनीति पर भी इसका असर पड़ेगा।
बीजेपी मऊ सीट को जीतने के लिए जोर-शोर से तैयारी कर रही थी, लेकिन अब उपचुनाव न होने से उसकी रणनीति पर पानी फिर गया है। दूसरी ओर, बसपा को इससे बड़ी राहत मिली है क्योंकि उसे सीट बचाने की जद्दोजहद से नहीं गुजरना पड़ेगा।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
सपा और कांग्रेस नेताओं ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सरकार और सिस्टम की मजबूरी का नतीजा है। विपक्ष का आरोप है कि बसपा और भाजपा के बीच अंदरूनी समझौते के चलते ही अब्बास अंसारी को राहत मिली है। हालांकि, बसपा नेताओं ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ है।
बसपा की स्थिति
बसपा सुप्रीमो मायावती लंबे समय से अंसारी परिवार को बचाने के लिए प्रयासरत रही हैं। अब्बास अंसारी की सदस्यता बहाल होना पार्टी के लिए बड़ी राहत है। बसपा संगठन अब इस फैसले को अपने समर्थकों के बीच बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करने की तैयारी कर रहा है। पार्टी का मानना है कि इससे पूर्वांचल में उसका जनाधार मजबूत होगा।
जनता की राय
स्थानीय स्तर पर इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। मुख्तार अंसारी समर्थक गुट इस फैसले को जीत मान रहे हैं और जश्न मना रहे हैं। दूसरी ओर, विरोधियों का कहना है कि यह कानून व्यवस्था और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
चुनावी समीकरण
अगले विधानसभा चुनाव की दिशा में यह फैसला बेहद अहम हो सकता है। मऊ सीट पर बसपा की पकड़ एक बार फिर मजबूत होती दिख रही है। वहीं, भाजपा और सपा को अब अपनी रणनीति दोबारा तय करनी होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपचुनाव न होने से भाजपा को तात्कालिक झटका लगा है, लेकिन लंबे समय में यह मुद्दा उसे अंसारी परिवार के खिलाफ माहौल बनाने का मौका देगा।
निष्कर्ष
अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता बहाल होना उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा मोड़ है। इस फैसले ने जहां बसपा को बड़ी राहत दी है, वहीं विपक्ष को सरकार और सिस्टम पर सवाल उठाने का नया मुद्दा मिल गया है। मऊ में अब उपचुनाव नहीं होगा, लेकिन इस घटनाक्रम का असर 2027 के विधानसभा चुनाव तक महसूस किया जाएगा।
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