नेपाल में हालात बिगड़े हुए हैं। इस बीच खबर आई है कि नेपाल की 18 जिलों की जेल से करीब 6 हजार कैदी फरार हो गए हैं। किस जेल से कितने कैदी फरार हुए हैं, इसकी भी लिस्ट सामने आई है।
नेपाल इस समय भीषण राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। सरकार के खिलाफ जेन-जी (Gen-Z) की अगुवाई में शुरू हुए प्रदर्शनों ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। राजधानी काठमांडू से लेकर कई जिलों तक विरोध की आग फैल गई है। अब तक की घटनाओं में 20 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि सैकड़ों लोग घायल बताए जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बावजूद प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ है और वे अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर डटे हुए हैं।

जेन-जी के आंदोलन ने पकड़ा जोर

नेपाल में यह आंदोलन शुरुआत में युवाओं द्वारा बेरोजगारी, महंगाई और पारदर्शिता की कमी के खिलाफ किया गया था। सोशल मीडिया के माध्यम से जेन-जी वर्ग ने बड़ी संख्या में लोगों को जोड़कर सरकार के खिलाफ माहौल तैयार किया। छात्रों और युवाओं ने काठमांडू की सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू किया था, लेकिन पुलिस के सख्त रवैये और प्रशासन की अनदेखी ने इस आंदोलन को और उग्र बना दिया।
हिंसा और आगजनी से बिगड़े हालात

पिछले 48 घंटों में हालात बेकाबू हो गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने कई सरकारी भवनों, थानों और वाहनों में आग लगा दी। पुलिस और सुरक्षाबलों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, लेकिन इसके बाद हालात और बिगड़ गए। कई जगहों पर सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच सीधी झड़प हुई। इसी दौरान गोलियां चलने से 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए।
जेलों से कैदी फरार
हिंसा और अफरातफरी का सबसे बड़ा असर जेलों पर पड़ा है। नेपाल के 18 जिलों की जेलों से करीब 6 हजार कैदी फरार हो गए हैं। प्रशासन के लिए यह स्थिति बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि फरार हुए कैदियों में कुख्यात अपराधी भी शामिल हैं। जेल प्रशासन का कहना है कि भीड़ ने जेलों पर हमला कर दरवाजे तोड़े और कैदियों को भागने का मौका मिल गया।
इस्तीफा भी नहीं बुझा पाया आग

लगातार बढ़ते दबाव और हिंसा को देखते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील भी की, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने साफ कर दिया है कि केवल इस्तीफा उनकी मांगों का समाधान नहीं है। उनका कहना है कि वे तब तक आंदोलन जारी रखेंगे जब तक एक नई पारदर्शी और जवाबदेह सरकार का गठन नहीं होता और युवाओं से जुड़े मुद्दों पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
अंतरराष्ट्रीय चिंता
नेपाल की इस बिगड़ती स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने चिंता जताई है। भारत, चीन और संयुक्त राष्ट्र ने हिंसा रोकने और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की अपील की है। नेपाल का राजनीतिक अस्थिरता भरा इतिहास पहले से ही देश की विकास यात्रा में बड़ी बाधा रहा है। अब यह नया संकट वहां की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को गहरा आघात पहुंचा सकता है।
आगे की राह मुश्किल
नेपाल में मौजूदा हालात बताते हैं कि केवल राजनीतिक बदलाव से स्थिति सामान्य नहीं होगी। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और युवाओं की नाराजगी जैसे बुनियादी मुद्दों पर ठोस पहल करना ही समाधान का रास्ता खोल सकता है। अगर सरकार और आंदोलनकारी जल्द ही संवाद की ओर नहीं बढ़े, तो यह हिंसा नेपाल के लिए लंबे समय तक अशांति और असुरक्षा का कारण बन सकती है।
नेपाल इस समय ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे सिर्फ राजनीतिक स्थिरता ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक सुधारों की भी सख्त जरूरत है। वरना यह संकट देश को और गहरे अंधकार में धकेल सकता है।
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