बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र किया, जिन्होंने देश में कानून का राज कायम किया। उन्होंने अपने ऐसे ही फैसले को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत कानून से चलता है, बुलडोजर से नहीं।
देश की न्यायपालिका ने एक बार फिर कानून के शासन की सर्वोच्चता पर जोर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि “भारत कानून से चलता है, बुलडोजर से नहीं।” यह बयान सीधे तौर पर हाल के वर्षों में प्रशासनिक कार्रवाई में बुलडोजर के बढ़ते इस्तेमाल और उससे जुड़े विवादों की ओर इशारा करता है।

पृष्ठभूमि
पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली समेत कई राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई को लेकर बहस तेज रही है। सरकारें इसे अवैध निर्माण और अतिक्रमण हटाने का प्रभावी तरीका बताती रही हैं, जबकि आलोचक इसे राजनीतिक प्रतिशोध और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का उपकरण मानते हैं। अक्सर देखा गया है कि किसी दंगे, उपद्रव या विवाद के बाद प्रशासन संबंधित आरोपियों के घर या दुकानों पर बुलडोजर चला देता है।
इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं, जिनमें तर्क दिया गया कि ऐसी कार्रवाइयां बिना विधिक प्रक्रिया के की जा रही हैं और यह नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। इन्हीं मामलों की सुनवाई के दौरान CJI गवई ने यह सख्त टिप्पणी की।
अदालत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां हर कार्रवाई कानून और संविधान के दायरे में रहकर होनी चाहिए। CJI गवई ने साफ शब्दों में कहा, “कोई भी व्यक्ति कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न हो, उसे सजा देने का तरीका केवल और केवल कानून है। यह देश कानून से चलता है, बुलडोजर से नहीं।”
उन्होंने आगे कहा कि यदि कोई नागरिक दोषी है तो अदालतें और कानून प्रवर्तन एजेंसियां उसे सजा देंगी, लेकिन किसी का घर या दुकान बिना कानूनी प्रक्रिया के तोड़ना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि कई बार प्रशासन केवल संदेह या राजनीतिक दबाव में आकर बुलडोजर कार्रवाई करता है। ऐसे मामलों में न तो पर्याप्त नोटिस दिया जाता है और न ही प्रभावित पक्ष को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलता है। इससे न केवल लोगों का जीवन प्रभावित होता है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन होता है।
सरकार का पक्ष
वहीं, राज्य सरकारों का तर्क रहा कि बुलडोजर कार्रवाई केवल उन्हीं मामलों में की जाती है, जहां निर्माण अवैध पाया जाता है और नोटिस देने के बाद भी अवैध ढांचा नहीं हटाया जाता। अधिकारियों का कहना है कि यह प्रशासनिक कार्रवाई है, जिसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चाहे अवैध निर्माण हो या अतिक्रमण, कार्रवाई हमेशा कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही की जानी चाहिए।
राजनीतिक और सामाजिक असर
CJI गवई की इस टिप्पणी का राजनीतिक हलकों में बड़ा असर देखने को मिला है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार के लिए नसीहत बताया और कहा कि अब न्यायपालिका ने भी बुलडोजर राजनीति पर सवाल खड़ा कर दिया है। कांग्रेस और अन्य दलों ने कहा कि यह फैसला लोकतंत्र की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण है।
वहीं, सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि बुलडोजर कार्रवाई ने अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त संदेश दिया है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि CJI गवई का बयान नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम है। संविधान के मुताबिक, किसी भी नागरिक को सजा देने का अधिकार केवल अदालतों और कानून को है। बुलडोजर कार्रवाई जैसी तात्कालिक व्यवस्थाएं न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करती हैं और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा साबित हो सकती हैं।
निष्कर्ष
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की यह टिप्पणी केवल एक मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक संदेश है। भारत में न्यायपालिका बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि “Rule of Law” यानी कानून का राज ही सर्वोपरि है। बुलडोजर जैसी कार्रवाई अगर कानूनी प्रक्रिया के बगैर होती है, तो यह लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।
अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी के बाद राज्य सरकारें अपने प्रशासनिक तौर-तरीकों में कितना बदलाव करती हैं। लेकिन इतना तय है कि यह बयान आने वाले समय में बुलडोजर राजनीति पर गहरा असर डालेगा।