‘कंतारा: चैप्टर 1’ रिव्यू – आस्था, परंपरा और लालच का विस्फोटक संगम !

ऋषभ शेट्टी के निर्देशन में बनी ‘कांतारा चैप्टर 1’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म की कहानी और कलाकारों का अभिनय कितना प्रभावी है, जानने के लिए नीचे स्क्रोल करें।

‘कंतारा’ के पहले भाग ने जबरदस्त सफलता हासिल की थी — इसकी कहानी, सिनेमैटोग्राफी और रिषभ शेट्टी के अभिनय ने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया था। अब ‘कंतारा: चैप्टर 1’ उस दुनिया की जड़ों में उतरती है, जहां धर्म, परंपरा और लालच की टक्कर होती है। यह फिल्म न सिर्फ विजुअल अनुभव है बल्कि एक ऐसी सांस्कृतिक यात्रा भी है, जो भारतीय जनजातीय जीवन की गहराई और आध्यात्मिकता को परदे पर बखूबी उकेरती है।

‘कंतारा: चैप्टर 1’ रिव्यू – आस्था, परंपरा और लालच का विस्फोटक संगम !
‘कंतारा: चैप्टर 1’ रिव्यू – आस्था, परंपरा और लालच का विस्फोटक संगम !

कहानी: देवता, धरती और इंसान के बीच संघर्ष

‘कंतारा: चैप्टर 1’ की कहानी पहले भाग से कई सौ साल पहले की है — यह एक प्रीक्वल है, जो देवता ‘पणजुरली’ की उत्पत्ति और उस समाज की पृष्ठभूमि बताती है जो उनसे आस्था रखता है। फिल्म की शुरुआत होती है दक्षिण भारत के एक सघन जंगल से, जहां एक राजा अपनी जमीन का बड़ा हिस्सा स्थानीय आदिवासियों को दान देता है, लेकिन धीरे-धीरे सत्ता, लालच और अहंकार इस दान को शाप में बदल देते हैं।
यहां कहानी सिर्फ एक संघर्ष की नहीं, बल्कि उस विश्वास की है जो इंसान और प्रकृति के बीच संबंधों को परिभाषित करता है। फिल्म में दिखाया गया है कि जब लालच पवित्रता को निगलने लगता है, तो देवता खुद न्याय के लिए अवतरित होते हैं।

रिषभ शेट्टी का निर्देशन और अभिनय

रिषभ शेट्टी का निर्देशन और अभिनय
रिषभ शेट्टी का निर्देशन और अभिनय

रिषभ शेट्टी ने इस बार भी निर्देशन और अभिनय दोनों की जिम्मेदारी निभाई है। उन्होंने कहानी को गहराई और संवेदनशीलता से गढ़ा है। उनका निर्देशन दर्शकों को एक रहस्यमय और आध्यात्मिक संसार में खींच ले जाता है। उन्होंने लोककथाओं, अनुष्ठानों और देवताओं के प्रति आस्था को इतने वास्तविक ढंग से दिखाया है कि दर्शक खुद को उस दुनिया का हिस्सा महसूस करते हैं।
अभिनय की बात करें तो रिषभ शेट्टी ने ‘कंतारा’ के इस अध्याय में भी दमदार परफॉर्मेंस दी है। उनकी आंखों की तीव्रता, संवादों की गूंज और भावनाओं की गहराई हर फ्रेम में झलकती है।

तकनीकी पक्ष: सिनेमैटोग्राफी और संगीत

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी इसकी आत्मा है। जंगलों, नदियों, मंदिरों और अनुष्ठानों को कैमरे ने इस तरह कैद किया है कि हर दृश्य एक पेंटिंग जैसा लगता है। अजय वेंकटेश की सिनेमैटोग्राफी दर्शक को प्रकृति की गोद में ले जाती है।
संगीत और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को और ऊंचाई पर ले जाते हैं। लोकवाद्यों की धुन, मंत्रोच्चारण और ड्रम्स की गूंज – यह सब मिलकर एक दिव्य अनुभव रचते हैं। विशेष रूप से क्लाइमेक्स में संगीत और दृश्य का संगम दर्शकों को सिहरन तक महसूस कराता है।

कहानी की गहराई और प्रतीकात्मकता

‘कंतारा: चैप्टर 1’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक कथा है। यह दिखाती है कि जब इंसान अपनी सीमाएं पार करता है, तो प्रकृति और धर्म मिलकर उसे रोकने की कोशिश करते हैं। फिल्म लालच, सत्ता, वफादारी और धर्म के बीच के संघर्ष को बारीकी से उजागर करती है।
हर किरदार अपनी जगह कुछ न कुछ कहता है — कोई देवता की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है तो कोई उस मानवीय कमजोरी का, जो हर बार विनाश का कारण बनती है।

कमजोरियां और गति

फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा लगता है, खासकर जब यह जनजातीय जीवन की पृष्ठभूमि और पात्रों को विस्तार से दिखाता है। कुछ दर्शकों को कहानी का धार्मिक प्रतीकवाद जटिल लग सकता है। लेकिन धीरे-धीरे जब कथा अपनी गहराई में उतरती है, तो यह हर फ्रेम के साथ बांध लेती है।

क्यों देखें ‘कंतारा: चैप्टर 1’

अगर आपने ‘कंतारा’ देखी है, तो यह फिल्म उस अनुभव को और समृद्ध बनाती है। यह भारतीय सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर है, जहां मनोरंजन से ज्यादा आत्मा को झकझोरने वाली कहानी सुनाई जाती है।
‘कंतारा: चैप्टर 1’ उन दुर्लभ फिल्मों में से है जो दर्शक को सोचने पर मजबूर कर देती हैं — कि आस्था और लालच की जंग में आखिर जीत किसकी होती है।

अंतिम फैसला

रिषभ शेट्टी ने एक बार फिर साबित किया है कि लोककथाओं और भारतीय परंपरा को आधुनिक सिनेमाई भाषा में पिरोना किसी कला से कम नहीं है। ‘कंतारा: चैप्टर 1’ अपने रहस्यमय वातावरण, शक्तिशाली अभिनय और सांस्कृतिक गहराई के कारण जरूर देखी जानी चाहिए।

रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐☆ (4/5)

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