“बिहार चुनाव से पहले ‘बुर्का’ पर बवाल: BJP की मांग से गरमाई सियासत, विपक्ष ने साधा निशाना”

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अब बुर्के को लेकर सियासत शुरू हो गई है। बीजेपी नेताओं ने चुनाव आयोग से खास मांग की है। इस पर आरजेडी ने आपत्ति जताई है।

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे सियासी हलचल तेज होती जा रही है। अब चुनावी माहौल में एक नया विवाद खड़ा हो गया है — ‘बुर्का’ को लेकर। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चुनाव आयोग के साथ हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में यह मुद्दा उठाया कि मतदान के दौरान बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं की पहचान की उचित जांच होनी चाहिए, ताकि “फर्जी मतदान” पर रोक लगाई जा सके। बीजेपी की इस मांग ने राज्य की सियासत में तूफान खड़ा कर दिया है, क्योंकि विपक्षी दलों ने इसे “धार्मिक भावनाओं से छेड़छाड़” करार दिया है।

"बिहार चुनाव से पहले 'बुर्का' पर बवाल: BJP की मांग से गरमाई सियासत, विपक्ष ने साधा निशाना"
“बिहार चुनाव से पहले ‘बुर्का’ पर बवाल: BJP की मांग से गरमाई सियासत, विपक्ष ने साधा निशाना”

बीजेपी की दलील: फर्जी वोटिंग रोकने के लिए जरूरी कदम


बीजेपी प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से मुलाकात की थी। बैठक के दौरान पार्टी नेताओं ने यह मुद्दा उठाया कि मतदान केंद्रों पर अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती हैं कि बुर्का पहनकर आईं कुछ महिलाएं असली मतदाता नहीं होतीं, बल्कि किसी और के नाम पर वोट डाल देती हैं। पार्टी ने कहा कि इस तरह के मामलों से चुनाव की पारदर्शिता प्रभावित होती है।

बीजेपी नेताओं ने मांग की कि मतदान केंद्रों पर महिला सुरक्षा कर्मियों की पर्याप्त तैनाती की जाए, ताकि बुर्का पहनी महिलाओं की पहचान की गुप्त और सम्मानजनक तरीके से पुष्टि की जा सके। पार्टी का कहना है कि यह मांग किसी धार्मिक कारण से नहीं, बल्कि चुनाव की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए की जा रही है।

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, “हम किसी की आस्था या पहनावे के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन मतदान एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसमें हर मतदाता की पहचान सुनिश्चित करना जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति किसी और की जगह वोट डालता है, तो यह लोकतंत्र के साथ धोखा है।”

आरजेडी और विपक्ष ने जताई कड़ी आपत्ति


बीजेपी की इस मांग का राष्ट्रीय जनता दल (RJD) समेत अन्य विपक्षी दलों ने तीखा विरोध किया है। आरजेडी के प्रवक्ता ने इसे “धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश” बताया और कहा कि बीजेपी चुनाव से पहले माहौल को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश कर रही है।

आरजेडी ने कहा, “बीजेपी को महिलाओं की सुरक्षा की नहीं, बल्कि वोटों की चिंता है। उन्हें डर है कि अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं उनके खिलाफ वोट देंगी, इसलिए यह मुद्दा जानबूझकर उठाया जा रहा है।” कांग्रेस और जेडीयू के कुछ नेताओं ने भी इसे “मतदान की स्वतंत्रता में दखल” बताया है।

चुनाव आयोग का रुख


विवाद के बीच, चुनाव आयोग ने कहा है कि मतदान के दौरान हर मतदाता की पहचान सुनिश्चित करना उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मतदान केंद्रों पर पहले से ही महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है ताकि बुर्का पहनी महिलाएं पहचान के लिए गुप्त रूप से अपना चेहरा दिखा सकें।

अधिकारी ने यह भी कहा कि आयोग किसी भी समुदाय या धर्म के खिलाफ नहीं है। “पहचान की जांच का उद्देश्य सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि सही व्यक्ति ही मतदान करे,” उन्होंने कहा।

चुनाव से पहले बढ़ी सियासी गर्मी


बिहार में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं, और तमाम राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंक चुके हैं। ऐसे में ‘बुर्का’ जैसे संवेदनशील मुद्दे का उठना चुनावी माहौल को और गरमा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी की यह मांग तकनीकी रूप से उचित हो सकती है, लेकिन समय और तरीके को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। चुनाव से ठीक पहले ऐसे मुद्दे अक्सर राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं।

सोशल मीडिया पर भी मचा बवाल


यह मुद्दा सोशल मीडिया पर भी छा गया है। ट्विटर (अब X) और फेसबुक पर लोग इस पर अपनी राय दे रहे हैं। कुछ लोगों ने बीजेपी की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि “वोट डालने से पहले पहचान जरूरी है”, वहीं कई अन्य लोगों ने इसे “महिलाओं की निजी स्वतंत्रता पर हमला” बताया।

सरकार ने दी सफाई


राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र रूप से काम करने की पूरी छूट है। उन्होंने कहा, “चुनाव की पारदर्शिता और मतदाता की सुरक्षा दोनों जरूरी हैं। सरकार किसी भी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप का समर्थन नहीं करती।”

निष्कर्ष


बिहार चुनाव से पहले “बुर्का” का मुद्दा अब सियासी बहस का केंद्र बन गया है। एक तरफ बीजेपी इसे चुनाव की पारदर्शिता से जोड़ रही है, तो दूसरी ओर विपक्ष इसे धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति बता रहा है। फिलहाल, चुनाव आयोग को इस विवाद के बीच संतुलन साधना होगा — ताकि न तो मतदाता की पहचान पर सवाल उठे और न ही किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचे।

बिहार की सियासत में जहां पहले से ही जाति, रोजगार और विकास जैसे मुद्दे चर्चा में थे, वहीं अब ‘बुर्का विवाद’ ने चुनावी पारा और बढ़ा दिया है।

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