मधुबनी में एक अनोखा मामला सामने आया है। अदालत ने मधुबनी समाहरणालय को नीलाम करने का आदेश दिया है।
बिहार से हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां जिला प्रशासन के सबसे अहम कार्यालय—डीएम (जिलाधिकारी) और एसपी (पुलिस अधीक्षक) के दफ्तर की नीलामी का नोटिस चस्पा कर दिया गया है। यह नोटिस किसी अफवाह का हिस्सा नहीं, बल्कि अदालत के आदेश के बाद जारी किया गया है, जिसने पूरे प्रशासनिक तंत्र को हिलाकर रख दिया है।
मामला दरअसल एक लंबे समय से लंबित मुआवजा भुगतान से जुड़ा है। जानकारी के अनुसार, जिला प्रशासन द्वारा एक व्यक्ति की जमीन अधिग्रहित की गई थी, लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी उसे उचित मुआवजा नहीं मिला। पीड़ित ने इसको लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहां से उसे अपने हक में फैसला मिला। कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि यदि तय समय में मुआवजा राशि का भुगतान नहीं होता है, तो प्रशासन की संपत्तियों की नीलामी की जा सकती है।

अदालत के निर्देश पर अब कलेक्ट्रेट परिसर के बाहर बाकायदा नीलामी का नोटिस चस्पा कर दिया गया है। इसमें डीएम और एसपी कार्यालय की सरकारी संपत्ति को जब्त कर उसकी नीलामी की चेतावनी दी गई है। इस घटनाक्रम के बाद प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मचा हुआ है।
सूत्रों के मुताबिक, जिला प्रशासन अब आपात बैठक कर इस मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहा है और उच्च अधिकारियों से सलाह ली जा रही है कि नीलामी की प्रक्रिया को कैसे रोका जाए। वहीं, कोर्ट के आदेश का पालन करने को लेकर अधिकारी कानूनसम्मत रास्ता तलाश रहे हैं।
यह मामला न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि आम नागरिक न्याय के लिए कोर्ट की शरण में जाकर भी सरकारी तंत्र को जवाबदेह बना सकता है। फिलहाल पूरे जिले में यह मामला चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
पूरा मामला क्या है?
अधिवक्ता वरुण कुमार झा एवं हरिशंकर श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1996-97 में बंद हुई पंडौल कोऑपरेटिव सूत मिल के पुनः संचालन के लिए रतन कुमार केडिया की कंपनी और मिल के पदाधिकारियों के बीच करार हुआ था। केडिया की कंपनी ने पूंजी और कच्चा माल उपलब्ध कराया, जबकि संचालन का जिम्मा सरकार और मिल प्रशासन पर था। एडवांस राशि देने के बाद जब कंपनी ने बिल मांगा, तो इनकार कर दिया गया। इसके बाद कंपनी ने भुगतान बंद कर दिया और मिल फिर से बंद हो गया। 1999 में कंपनी ने कोर्ट में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, जो खारिज होने के बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा।

प्रशासन की चुप्पी और तैयारी
आज जब कोर्ट का नोटिस समाहरणालय परिसर में चिपकाया गया, उस समय मधुबनी डीएम अपने कार्यालय में ही मौजूद थे। बावजूद इसके किसी अधिकारी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सूत्रों की मानें तो जिला प्रशासन ने इस मामले की सूचना वरीय अधिकारियों को भेज दी है और अब कानूनी विकल्पों की तलाश शुरू हो गई है।
हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी बनी मुसीबत
मधुबनी के डीएम और एसपी कार्यालय में कोर्ट का नोटिस चस्पा कर दिया गया है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि 15 दिनों में ₹4.17 करोड़ की राशि नहीं चुकाई गई तो पूरा समाहरणालय नीलाम कर दिया जाएगा। यह आदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस घनश्याम प्रसाद की ओर से 20 अगस्त 2014 को पारित आदेश के अनुपालन में दिया गया है। यह मामला रतन कुमार केडिया, निदेशक – मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्रा. लि., बनाम पंडौल कोऑपरेटिव सूत मिल, बिहार सरकार एवं अन्य के बीच चल रहा है।
कंपनी ने 2016 में दर्ज कराया था मामला
आदेश का पालन नहीं होने पर कंपनी ने अनुपालन कराने के लिए 2016 में मधुबनी कोर्ट में मामला दर्ज कराया था। सहकारी कताई मिल सरकारी प्रबंधन के अधीन थी और 1997 में बंद हो गई थी। उस समय कंपनी व मिल अधिकारियों के बीच समझौता हुआ था कि सरकार मिल का संचालन करेगी और कंपनी पूंजी व कच्चा माल उपलब्ध कराएगी। अगर 2014 में 33.44 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया होता तो यह राशि बढ़कर 4.17 करोड़ रुपए नहीं होती और कलेक्ट्रेट की नीलामी से बचा जा सकता था। हालांकि, अधिकारी इस मामले पर टिप्पणी करने से बच रहे हैं।
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