दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि भारतीय मौसम विभाग ने वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से क्लाउड सीडिंग पर दिल्ली की पायलट परियोजना को मंजूरी दे दी है और सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। पहली बार दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश (कृत्रिम वर्षा) कराई जाएगी, जिसकी मंजूरी भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दे दी है। यह फैसला लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता, स्मॉग और प्रदूषण से राहत दिलाने के उद्देश्य से लिया गया है।
दिल्ली सरकार और IIT कानपुर की संयुक्त पहल पर यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ाया जा रहा है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली में सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता “गंभीर” श्रेणी में पहुंच जाती है। इसी को देखते हुए वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने सुझाव दिया था कि कृत्रिम बारिश से प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सकता है।

कहां और कैसे कराई जाएगी आर्टिफिशियल बारिश?

IMD और IIT कानपुर की योजना के अनुसार, सबसे ज्यादा प्रदूषित इलाकों — जैसे कि आनंद विहार, द्वारका, ओखला और नरेला — में प्राथमिकता के आधार पर क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के जरिए बारिश कराई जाएगी। क्लाउड सीडिंग एक तकनीक है जिसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों को विमानों या ड्रोन की मदद से बादलों में छोड़ा जाता है, जिससे बारिश की प्रक्रिया तेज होती है।
यह कार्य वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के आधार पर तय किया जाएगा कि किस क्षेत्र में यह प्रयोग पहले करना है।
कितना आएगा खर्च?
आर्टिफिशियल बारिश के इस प्रोजेक्ट की कुल लागत करीब 15 से 20 करोड़ रुपये बताई जा रही है। दिल्ली सरकार ने इसके लिए बजट स्वीकृत कर दिया है। खर्च का एक बड़ा हिस्सा विमान, तकनीकी उपकरणों और रसायनों पर होगा, जबकि IIT कानपुर को तकनीकी सहयोगी के रूप में चुना गया है।
कब होगा प्रयोग?
यह प्रयोग नवंबर-दिसंबर की समय सीमा में किया जा सकता है, जब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक होता है और हवा की गति भी धीमी रहती है। अगर मौसम अनुकूल रहा और बादल मौजूद रहे, तो यह तकनीक सफलतापूर्वक कार्य कर सकती है।
क्या मिलेगा फायदा?
विशेषज्ञों का मानना है कि आर्टिफिशियल बारिश से वायु में मौजूद जहरीले कण (PM2.5 और PM10) नीचे बैठ जाते हैं, जिससे हवा साफ होती है। हालांकि यह स्थायी समाधान नहीं है, लेकिन प्रदूषण के चरम समय में यह एक आपातकालीन राहत का विकल्प बन सकता है।
इस पहल को दिल्ली में वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो भविष्य में इसे NCR के अन्य हिस्सों में भी दोहराया जा सकता है।
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