दिल्ली में शिक्षा विभाग से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसमें करीब 2000 करोड़ रुपये के घपले का आरोप लगाया गया है। इस कथित क्लासरूम घोटाले में दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग पर स्कूलों में कमरे निर्माण के नाम पर बजट से कई गुना अधिक खर्च दिखाने और ठेके में भारी गड़बड़ी करने का आरोप है। जांच एजेंसियों की रिपोर्ट और दस्तावेजी सबूतों से इस घोटाले की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं।

कैसे सामने आया यह घोटाला?
केंद्रीय जांच एजेंसियों को शिकायत मिली थी कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त क्लासरूम निर्माण के नाम पर अनुचित तरीके से टेंडर पास किए गए, और ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों की अनदेखी की गई। इसके बाद प्रारंभिक जांच में सामने आया कि क्लासरूम निर्माण की वास्तविक लागत की तुलना में 3 से 5 गुना अधिक खर्च दिखाया गया।
बताया जा रहा है कि 2020 से 2023 के बीच दिल्ली में करीब 12,000 नए क्लासरूम बनाने के लिए प्रोजेक्ट पास किया गया था, जिसकी अनुमानित लागत करीब 800 करोड़ रुपये थी, लेकिन फाइलों में यह राशि बढ़कर लगभग 2000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
कहां-कहां हुई गड़बड़ियां?
- कई स्कूलों में पुराने कमरों की मरम्मत को भी नए निर्माण के तौर पर दिखाया गया।
- एक कमरे की लागत 10-15 लाख रुपये तक होनी चाहिए थी, जबकि फाइलों में यह लागत 30 से 40 लाख रुपये प्रति कमरा दिखाई गई।
- फर्जी बिल, दोहराए गए भुगतान और बिना काम किए रकम जारी करने जैसे कई मामले सामने आए हैं।
- निर्माण सामग्री की कीमतें बाजार दर से 2-3 गुना अधिक दिखाई गईं।
किन नेताओं पर लगा आरोप?

ACB द्वारा दर्ज FIR में दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व PWD मंत्री सत्येंद्र जैन और अन्य के खिलाफ ₹2,000 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी का आरोप है। दरअसल, साल 2015 से 2023 के बीच 2405 क्लासरूम की जरूरत थी, लेकिन इसे 12748 क्लासरूम तक बढ़ाया गया था, वो भी बिना मंजूरी के।
किसने उठाई आवाज?
यह मामला सबसे पहले वित्तीय ऑडिट के दौरान उजागर हुआ, जिसमें केंद्र सरकार के अधीन एजेंसियों और CVC (Central Vigilance Commission) ने अनियमितताओं पर सवाल उठाए। इसके बाद इस पूरे मामले की CBI और ED से जांच कराने की मांग भी तेज हो गई है।
विपक्षी पार्टियों ने भी इस मुद्दे को जमकर उठाया है और दिल्ली सरकार पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। भाजपा नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि “दिल्ली में शिक्षा के नाम पर घोटाले का पाठ पढ़ाया जा रहा है।”
सरकार का पक्ष
दिल्ली सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह मामला राजनीतिक बदले की भावना से उठाया गया है। सरकार ने कहा कि क्लासरूम निर्माण का उद्देश्य सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाना था और सब कुछ नियमों के तहत हुआ है।
आगे क्या?
जांच एजेंसियां अब टेंडर प्रक्रिया, फाइल नोटिंग, भुगतान की प्रक्रिया और निर्माण स्थल का भौतिक सत्यापन कर रही हैं। यदि आरोप सही साबित होते हैं तो कई अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर और गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
यह कथित क्लासरूम घोटाला न केवल आर्थिक अपराध है, बल्कि शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में विश्वास की बड़ी चोट भी है। आने वाले दिनों में यह केस दिल्ली की राजनीति और शिक्षा व्यवस्था, दोनों के लिए अहम मोड़ साबित हो सकता है।
ED को सर्च में क्या मिला?
निजी ठेकेदारों के ठिकानों से सरकारी विभाग की मूल फाइलें और PWD अधिकारियों की नकली मुहरें बरामद हुईं। 322 बैंक पासबुक मिलीं, जो मजदूरों के नाम पर फर्जी खाते खोलकर सरकारी पैसे की हेराफेरी के लिए इस्तेमाल हुई थीं। नकली लेटरहेड, फर्जी बिल, और शेल कंपनियों से जुड़े दस्तावेज भी बरामद हुए। फर्जी कम्पनियों के नाम पर बड़े भुगतान दिखाए गए।
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