“आंबेडकर के नाम पर बीजेपी का ‘दलित मिशन’, अखिलेश के PDA फॉर्मूले को दी सीधी चुनौती”

बीजेपी ने 2027 यूपी चुनाव को देखते हुए दलित वोटरों को लुभाने के लिए बाबा साहब आंबेडकर के नाम पर कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू की है। योग दिवस पर आंबेडकर पार्क में बड़ा आयोजन कर पार्टी ने नई रणनीति का संकेत दिया।

उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दलित वोटरों को लुभाने के लिए एक नई रणनीति अपनाई है। पार्टी ने बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों और प्रतीकों को केंद्र में रखकर कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें योग दिवस पर लखनऊ के आंबेडकर पार्क में आयोजित एक बड़ा आयोजन भी शामिल है, जिसमें लगभग 5,000 दलितों को आमंत्रित किया गया था,

"आंबेडकर के नाम पर बीजेपी का 'दलित मिशन', अखिलेश के PDA फॉर्मूले को दी सीधी चुनौती"
“आंबेडकर के नाम पर बीजेपी का ‘दलित मिशन’, अखिलेश के PDA फॉर्मूले को दी सीधी चुनौती”

इस कार्यक्रम में खास बात यह रही कि प्रतिभागियों को दी गई टी-शर्ट्स पर किसी बीजेपी नेता की नहीं, बल्कि सिर्फ आंबेडकर की तस्वीर थी। शहर भर में लगे होर्डिंग्स में भी बाबा साहब की तस्वीरें प्रमुखता से दिखाई दीं। इसके अलावा, पार्टी ने आंबेडकर मैराथन और विचार गोष्ठियों जैसे आयोजन भी किए हैं, जिनका नेतृत्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे नीरज सिंह कर रहे हैं1।

यह रणनीति समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) राजनीति की काट के रूप में देखी जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में 26 सीटों का नुकसान हुआ था, और इसका एक बड़ा कारण दलित वोटों का खिसकना माना गया।

बीजेपी अब बाबा साहब के नाम और विचारों के सहारे दलित समुदाय का विश्वास फिर से जीतने की कोशिश कर रही है। राजनीति में प्रतीकों और विचारों की यह लड़ाई दिलचस्प मोड़ ले रही है—और 2027 का चुनावी मैदान पहले से ही गर्म हो चुका है।

अगर चाहो तो मैं PDA बनाम BJP की रणनीतियों का तुलनात्मक विश्लेषण भी कर सकता हूँ।

बीजेपी ने आंबेडकर के नाम पर कई कार्यक्रम किए हैं आयोजित

बीजेपी ने आंबेडकर के नाम पर कई कार्यक्रम किए हैं आयोजित
बीजेपी ने आंबेडकर के नाम पर कई कार्यक्रम किए हैं आयोजित

बता दें कि सभी प्रतिभागियों को पार्टी की ओर से सफेद टी-शर्ट दी गई, जिन पर किसी बीजेपी नेता की तस्वीर नहीं, बल्कि बाबासाहेब आंबेडकर की तस्वीर छपी थी। शहर में लगे होर्डिंग्स में भी आधे से अधिक पर बाबा साहब की तस्वीरें नजर आईं, जो बीजेपी की इस रणनीति को और स्पष्ट करती हैं। बता दें कि पिछले दो महीनों में बीजेपी ने लखनऊ में आंबेडकर के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं। इनमें आंबेडकर मैराथन और कई विचार गोष्ठियां शामिल हैं। इन आयोजनों का नेतृत्व रक्षा मंत्री और लखनऊ से बीजेपी सांसद राजनाथ सिंह के बेटे नीरज सिंह कर रहे हैं।

दलित वोटों के छिटकने से बीजेपी को हुआ था भारी नुकसान!

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में 8.50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जिसके चलते पार्टी को यूपी में 26 सीटों का नुकसान हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 49.98 फीसदी वोट मिले थे, जो 2024 में घटकर 41.37 फीसदी रह गए। इसका एक बड़ा कारण दलित वोटों का खिसकना माना गया। एक सर्वे के मुताबिक, 2024 के चुनाव में इंडिया ब्लॉक को गैर-जाटव दलितों के 56 फीसदी और जाटव दलितों के 25 फीसदी वोट मिले, जबकि 2019 में बीजेपी को लगभग 50 फीसदी दलित वोट हासिल हुए थे। यूपी में दलित मतदाता कुल मतदाताओं का 21 फीसदी हैं, जो किसी भी पार्टी की जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

संविधान को लेकर विपक्ष के नारे ने बिगाड़ा था पार्टी का खेल

बीजेपी का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के ‘संविधान बदला जाएगा’ नारे ने दलित मतदाताओं को प्रभावित किया और इसका पार्टी को भारी नुकसान हुआ। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश में दलितों की प्रमुख नेता मानी जाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता मायावती का प्रभाव कमजोर हुआ है। बीजेपी इस स्थिति का फायदा उठाकर बाबा साहब के नाम और उनके विचारों के सहारे दलित वोटों को अपनी ओर करने की कोशिश में है।

अखिलेश के PDA के मुकाबले में बीजेपी की खास रणनीति

अखिलेश के PDA के मुकाबले में बीजेपी की खास रणनीति
अखिलेश के PDA के मुकाबले में बीजेपी की खास रणनीति

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के सहारे 2027 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी की कोशिश में हैं। दूसरी ओर, बीजेपी ने दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए आंबेडकर के नाम पर कार्यक्रमों की शुरुआत की है। पार्टी का यह कदम न केवल दलित मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति है, बल्कि विपक्ष के संविधान से जुड़े दुष्प्रचार का जवाब देने का भी प्रयास है। अब यूपी में दलित वोटों की निर्णायक भूमिका को देखते हुए बीजेपी की यह रणनीति 2027 के विधानसभा चुनाव में कितना असर दिखाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

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