अखिलेश यादव के 50 लाख वाले बयान पर बाबा बागेश्वर ने बिना नाम लिए कहा, हाथी चले बाजार… हम तो अपने हिसाब से कार्य करते रहेंगे, सेवा करते रहेंगे।
धर्म और राजनीति के मिलन-बिंदु पर अक्सर बहस होती रही है, और इसी क्रम में चर्चित कथावाचक बाबा बागेश्वर उर्फ धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने एक अहम बयान देकर एक बार फिर से सुर्खियां बटोरी हैं। उन्होंने हाल ही में अपने एक सार्वजनिक प्रवचन में स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके प्रिय जरूर हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि वे किसी राजनीतिक दल के सदस्य हैं या किसी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं।
🔹 क्या कहा बाबा बागेश्वर ने?

धीरेंद्र शास्त्री ने अपने बयान में कहा:
“प्रधानमंत्री मोदी मेरे हृदय के प्रिय हैं, क्योंकि वे भारत माता के सच्चे सपूत हैं। वे देश के लिए काम कर रहे हैं, इसलिए सम्मान है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि मैं किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हूं या प्रचार कर रहा हूं।”
उन्होंने आगे कहा कि वे केवल ‘सनातन धर्म और संस्कृति’ के प्रचार-प्रसार में विश्वास रखते हैं, न कि किसी दल विशेष के लिए जनमत बनाने में।
🔹 क्यों आया ये बयान?

हाल के महीनों में बाबा बागेश्वर को लेकर राजनीतिक चर्चाएं तेज़ हो गई थीं:
- कई मंचों पर उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेताओं के प्रति सार्वजनिक समर्थन जैसे बयानों को लेकर चर्चा बनी।
- विपक्षी दलों और कई धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लोगों ने उन्हें “राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा” तक कह दिया।
- इसके अलावा, सोशल मीडिया पर भी उन्हें एक “हिंदुत्व आधारित राजनीतिक प्रवक्ता” के रूप में पेश किया जाने लगा।
इन सबके चलते बाबा ने स्वयं को इस राजनीतिक पहचान से अलग करने की जरूरत महसूस की और यह साफ-सुथरा बयान दिया।
🔹 भगवा और राजनीति का भ्रम
बाबा बागेश्वर ने विशेष रूप से भगवा वस्त्रों को लेकर कहा:
“मैं भगवा पहनता हूं क्योंकि यह सनातन का रंग है। लेकिन कुछ लोग इसे देखकर तुरंत राजनीतिक झंडा समझ लेते हैं। भगवा का संबंध आत्मज्ञान, त्याग और तपस्या से है, न कि किसी पार्टी से।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि सनातन धर्म को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए, क्योंकि धर्म सभी के लिए है, जबकि राजनीति विभाजन की रेखाएं खींचती है।
🔹 भक्तों और समर्थकों की प्रतिक्रिया
बाबा बागेश्वर के इस बयान को लेकर उनके अनुयायियों में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली:
- कुछ लोगों ने इसे “संतुलित और समयोचित बयान” बताया।
- वहीं, कुछ समर्थकों ने कहा कि “सनातन धर्म का पक्ष लेने वाले स्वाभाविक रूप से राष्ट्रवादी नेताओं के निकट हो जाते हैं, इसमें गलत क्या है?”
🔹 विपक्षियों की राय
विपक्षी नेताओं ने बाबा के इस बयान को “राजनीतिक दबाव की प्रतिक्रिया” बताया। उनका मानना है कि बाबा बागेश्वर लगातार भाजपा के पक्ष में बोलते रहे हैं, और अब जब आलोचना तेज़ हुई तो उन्होंने खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश की।
🔹 निष्कर्ष:
बाबा बागेश्वर का यह बयान स्पष्ट करता है कि वे धर्म और राष्ट्रभक्ति को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन राजनीतिक दलों की पहचान से खुद को दूर रखना चाहते हैं। यह रुख शायद उनके बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता के चलते आया है, क्योंकि अब वे सिर्फ एक कथावाचक नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय धार्मिक-सांस्कृतिक चेहरा बन चुके हैं।
धर्म और राजनीति के बीच संतुलन बनाए रखना आज के भारत में कठिन होता जा रहा है, और बाबा बागेश्वर का यह बयान उसी संतुलन की एक कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।
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