बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ने जा रही है। इसे लेकर केजरीवाल ने कहा है कि उनकी पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी।
बिहार की सियासत में एक नई हलचल पैदा हो गई है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट कहा कि AAP अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी।
केजरीवाल का बड़ा बयान

दिल्ली में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में केजरीवाल ने कहा:
“बिहार बदलाव चाहता है। लोग भ्रष्टाचार और जातिवाद की राजनीति से थक चुके हैं। दिल्ली और पंजाब में हमारे काम ने यह साबित किया है कि ईमानदारी और विकास की राजनीति भी संभव है। हम बिहार में भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी और रोजगार के मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे – अपने दम पर।”
इस ऐलान के साथ ही AAP ने आगामी बिहार चुनावों को लेकर सियासी तापमान बढ़ा दिया है।
किन मुद्दों पर लड़ेगी AAP बिहार चुनाव?

केजरीवाल ने स्पष्ट किया कि AAP बिहार में दिल्ली मॉडल के आधार पर चुनाव लड़ेगी। प्रमुख मुद्दे होंगे:
- सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की बेहतरी
- बेरोजगारी पर ठोस नीति
- बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की गारंटी
- भ्रष्टाचार मुक्त शासन
- महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष योजनाएं
पार्टी की राज्य इकाई जल्द ही इन बिंदुओं को लेकर मैनिफेस्टो (घोषणापत्र) जारी करेगी।
संगठन विस्तार की तैयारी
AAP पिछले कुछ वर्षों से बिहार में संगठन को मजबूत कर रही है। पटना, भागलपुर, दरभंगा, गया और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में पार्टी ने ब्लॉक और जिला स्तर पर संगठनात्मक ढांचा खड़ा किया है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह और गोपाल राय पहले ही बिहार का कई बार दौरा कर चुके हैं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने का अभियान चला चुके हैं।
गठबंधन से दूरी क्यों?
जब पत्रकारों ने AAP से पूछा कि क्या वे विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ का हिस्सा नहीं बनेंगे, तो केजरीवाल ने साफ कहा:
“हम किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। हमने देखा है कि गठबंधन में अक्सर विचारधाराएं और प्राथमिकताएं बिखर जाती हैं। हम साफ नीयत और स्पष्ट नीति के साथ अकेले चुनाव लड़ना बेहतर समझते हैं।”
यह बयान विपक्षी दलों, खासकर राजद और कांग्रेस के लिए एक चुनौती की तरह देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि AAP का बिहार में मैदान में उतरना वोटों के बंटवारे का कारण बन सकता है, खासकर उन शहरी और युवा वोटरों के बीच जो परंपरागत दलों से निराश हैं।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. राजीव झा कहते हैं:
“भले ही AAP को पहले चुनाव में बहुत सीटें न मिलें, लेकिन यह पार्टी विपक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन दोनों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। इसका सबसे बड़ा असर विपक्षी एकता पर पड़ेगा।”
अन्य दलों की प्रतिक्रिया
- राजद ने AAP की एंट्री पर कहा कि बिहार की राजनीति अलग किस्म की है, और दिल्ली मॉडल यहां कारगर नहीं होगा।
- जेडीयू ने AAP के फैसले को लोकतंत्र का हिस्सा बताया लेकिन सवाल उठाया कि क्या यह केवल प्रचार स्टंट है या ज़मीनी स्तर पर तैयारी भी है।
- बीजेपी ने AAP पर तंज कसते हुए कहा कि “बिहार की जनता समझदार है, केवल वादों से नहीं काम से वोट देती है।”
निष्कर्ष
AAP की बिहार विधानसभा चुनाव में एंट्री ने सियासी समीकरणों को नई दिशा दे दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पार्टी दिल्ली और पंजाब जैसी सफलता यहां दोहरा पाएगी, या फिर यह केवल चुनावी शोर तक ही सीमित रहेगी।
बिहार की जनता इस बार किन मुद्दों को प्राथमिकता देती है – यह आने वाले महीनों में चुनाव प्रचार और जनसंपर्क अभियानों से स्पष्ट होगा। लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति में अब आम आदमी पार्टी भी एक नई धुरी बनने की कोशिश में है।