मराठी मुद्दे पर फिर एक्टिव हुई मनसे: महाराष्ट्र में अचानक तेवर क्यों तीखे हुए?

BMC चुनावों से पहले मनसे मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के मुद्दों पर फिर सक्रिय हो गई है। पार्टी अपनी खोई राजनीतिक जमीन वापस पाना चाहती है और शिवसेना (UBT) से संभावित गठबंधन के जरिये सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है।

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी अस्मिता एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गई है। इस बार इस मुद्दे को हवा देने का काम किया है राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने, जो अचानक सक्रिय हो गई है और प्रदेशभर में मराठी भाषा और स्थानीय अधिकारों को लेकर आक्रामक रुख अपना रही है।

हाल के दिनों में मनसे ने मुंबई, ठाणे, पुणे और नासिक जैसे शहरी इलाकों में कई मराठी बोर्ड न होने वाले दुकानों, रेस्टोरेंट्स और ऑफिसों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है। साथ ही, पार्टी कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर हिंसात्मक प्रदर्शन और बोर्ड हटाने की कार्रवाई भी की है, जिससे प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है।

अब सवाल यह है कि मनसे अचानक मराठी भाषा और स्थानीय मुद्दों को लेकर इतनी आक्रामक क्यों हो गई है? क्या इसके पीछे चुनावी रणनीति है या मराठी वोटबैंक को फिर से संगठित करने की कोशिश?

मराठी मुद्दे पर फिर एक्टिव हुई मनसे: महाराष्ट्र में अचानक तेवर क्यों तीखे हुए?
मराठी मुद्दे पर फिर एक्टिव हुई मनसे: महाराष्ट्र में अचानक तेवर क्यों तीखे हुए?

मराठी बोर्ड को लेकर बढ़ा विवाद

मनसे ने हाल ही में एक बयान जारी कर कहा कि मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में चल रहे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को मराठी में बोर्ड लगाना अनिवार्य करना चाहिए। पार्टी के अनुसार, जो संस्थान केवल अंग्रेजी या हिंदी में बोर्ड लगाते हैं, वे स्थानीय संस्कृति और भाषा का अपमान कर रहे हैं।

राज ठाकरे ने साफ शब्दों में कहा:
“अगर आप महाराष्ट्र में व्यापार करते हैं, तो मराठी को सम्मान देना ही होगा। यह न केवल भाषा का सवाल है, बल्कि हमारी अस्मिता और आत्मसम्मान से जुड़ा मुद्दा है।”

मनसे ने बीएमसी और राज्य सरकार से भी मांग की है कि वे मराठी बोर्डों को लेकर सख्त कानून लागू करें और उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना या लाइसेंस रद्द करने जैसी कार्रवाई करें।

क्यों हुआ मनसे अचानक एक्टिव?

विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं:

  1. राजनीतिक पुनरुद्धार की कोशिश:
    पिछले कुछ वर्षों में मनसे का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है। अब पार्टी मराठी अस्मिता जैसे भावनात्मक मुद्दों को उठाकर जनता के बीच फिर से अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
  2. शिवसेना (ठाकरे गुट) और शिंदे गुट के बीच विभाजन:
    शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद मनसे को लगता है कि वह मराठी राजनीति के केंद्र में लौट सकती है। ऐसे में भाषा और स्थानीयता जैसे मुद्दे उसे फायदा पहुंचा सकते हैं।
  3. आगामी चुनावों की तैयारी:
    महाराष्ट्र में आगामी नगरपालिका और विधानसभा चुनावों को देखते हुए मनसे अपने कोर वोटबैंक—मराठी माणूस—को संगठित करने की कोशिश कर रही है।
  4. हिंदी-भाषी और बाहरी प्रवासियों को निशाना बनाना:
    पार्टी ने पहले भी यूपी-बिहार के प्रवासियों को लेकर आंदोलन किए थे। अब मराठी भाषा का मुद्दा उठा कर “स्थानीय बनाम बाहरी” की बहस को फिर से हवा दी जा रही है।

सरकार और अन्य दलों की प्रतिक्रिया

राज्य सरकार ने मनसे की गतिविधियों पर अभी तक कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया है, लेकिन एनसीपी और कांग्रेस जैसी सहयोगी पार्टियों ने इस तरह के “भड़काऊ भाषणों और जबरदस्ती” पर चिंता जताई है।

कांग्रेस नेता ने कहा,
“मराठी भाषा का सम्मान जरूरी है, लेकिन इसके नाम पर धमकी देना और जबरन बोर्ड बदलवाना लोकतांत्रिक तरीके से ठीक नहीं है।”

भाजपा ने भी इस मुद्दे पर संयमित प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि सरकार पहले ही मराठी भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है।

नागरिकों और कारोबारियों की राय

बाजारों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बीच इस मुद्दे को लेकर चिंता का माहौल है। कई दुकानदारों ने मराठी बोर्ड लगाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन कुछ का कहना है कि ऐसे फैसले जबरदस्ती नहीं, बल्कि जागरूकता से लागू होने चाहिए।

एक दुकानदार ने कहा,
“हमें मराठी से कोई आपत्ति नहीं, लेकिन डर के माहौल में बोर्ड लगाना सही नहीं लगता। कानून हो, तो पालन करेंगे, लेकिन धमकी से नहीं।”

निष्कर्ष

मनसे की यह सक्रियता एक बार फिर मराठी अस्मिता की राजनीति को केंद्र में ला रही है। जहां एक ओर यह भाषा और संस्कृति के संरक्षण की बात है, वहीं दूसरी ओर यह एक राजनीतिक रणनीति भी प्रतीत होती है, जिसका मकसद है मनसे को पुनः प्रासंगिक बनाना

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इस मुहिम को कितना समर्थन देती है और आने वाले चुनावों में यह मुद्दा कितनी दूर तक असर दिखा पाता है।

एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ है – क्या मराठी अस्मिता के नाम पर राजनीति करने से वाकई जनता को फायदा होगा या यह केवल एक वोटबैंक साधने का प्रयास है?

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