सावन में शिवलिंग को छूना सही या गलत? जानें धार्मिक मान्यताएं !

भगवान शिव के कई भक्त पूजा के दौरान शिवलिंग को स्पर्श भी करते हैं। ऐसा करना धर्म शास्त्रों के अनुसार सही है या गलत इसके बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।

सावन का महीना हिन्दू धर्म में भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे पावन माना जाता है। इस महीने में लाखों श्रद्धालु व्रत रखते हैं, शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करते हैं। परंतु इस दौरान एक प्रश्न अक्सर लोगों के मन में आता है — क्या शिवलिंग को छूना सही है या गलत? विशेषकर महिलाओं के संदर्भ में इस विषय को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं और मतभेद हैं। आइए जानें, धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र इस विषय में क्या कहते हैं।

सावन में शिवलिंग को छूना सही या गलत? जानें धार्मिक मान्यताएं !
सावन में शिवलिंग को छूना सही या गलत? जानें धार्मिक मान्यताएं !

शिवलिंग को क्यों अर्पित की जाती है पूजा?

शिवलिंग को क्यों अर्पित की जाती है पूजा?
शिवलिंग को क्यों अर्पित की जाती है पूजा?

शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। यह ‘निर्गुण ब्रह्म’ का प्रतीक है, अर्थात् शिव का वह रूप जो निराकार, अजन्मा और अविनाशी है। शिवलिंग की पूजा से व्यक्ति के पापों का नाश होता है, मन शांत रहता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।

शिवलिंग को छूने को लेकर शास्त्रीय मत

शिवलिंग को छूना एक धार्मिक क्रिया मानी जाती है, लेकिन इसे लेकर कुछ स्पष्ट नियम भी शास्त्रों में बताए गए हैं।

पुरुषों के लिए:

पुरुषों को विधिपूर्वक शिवलिंग का स्पर्श करने की अनुमति है, विशेषकर जल, दूध या पंचामृत अर्पण के समय। वे अंगूठा छोड़कर अन्य उंगलियों से जल अर्पण करते हुए शिवलिंग को स्पर्श कर सकते हैं। यह भावनात्मक भक्ति का प्रतीक होता है।

महिलाओं के लिए:

महिलाओं द्वारा शिवलिंग को छूने को लेकर दो प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं:

  1. परंपरागत दृष्टिकोण:
    अधिकतर परंपरागत मान्यताओं में कहा गया है कि महिलाओं को शिवलिंग को सीधे स्पर्श नहीं करना चाहिए। खासकर रजस्वला अवस्था में या गर्भवती होने पर शिवलिंग का स्पर्श निषिद्ध माना गया है। यह निषेध शुद्धता और ऊर्जा संतुलन के कारणों से जुड़ा है।
  2. आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
    कई आधुनिक संत और विद्वान यह मानते हैं कि भगवान शिव अर्पण में भावना को प्राथमिकता देते हैं। यदि कोई महिला पूरी श्रद्धा और शुद्ध मन से पूजा करती है तो शिवलिंग को छूने में कोई दोष नहीं होता। भावना की पवित्रता सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी गई है।

पौराणिक संदर्भ

पुराणों में पार्वती जी द्वारा शिवलिंग की पूजा का उल्लेख मिलता है। यह बताता है कि महिलाएं भी शिव की आराधना में सक्रिय रही हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि शिव और शक्ति एक ही तत्त्व हैं, इसलिए शिवलिंग पर महिला का स्पर्श ऊर्जा का संतुलन बनाए रखता है। परंतु पारंपरिक विधियों में यह अधिकतर वर्जित ही रहा है, और यही कारण है कि मंदिरों में विशेष रूप से महिलाएं केवल जल अर्पण करती हैं लेकिन शिवलिंग को नहीं छूतीं।

मंदिरों में क्या है परंपरा?

भारत के विभिन्न शिव मंदिरों में स्थानीय परंपराओं के अनुसार अलग-अलग नियम हैं। काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, महाकालेश्वर जैसे प्रमुख मंदिरों में आमतौर पर महिलाओं को शिवलिंग का स्पर्श करने की अनुमति नहीं होती। वहीं कुछ दक्षिण भारतीय मंदिरों या आध्यात्मिक संस्थानों में यह छूट दी जाती है।

इसलिए यह जरूरी है कि आप जिस मंदिर में जा रहे हैं, वहां की परंपरा और नियमों का सम्मान करें।

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