अंबादास दानवे ने कहा कि यह बात अब भी खटकती है कि बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना जैसा एक ‘‘मजबूत’’ संगठन टूट गया और इसलिए इसके दोनों गुटों को एक साथ आना चाहिए।
महाराष्ट्र की राजनीति में उस समय हलचल तेज़ हो गई जब शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट के एक वरिष्ठ नेता ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच फिर से सुलह की अपील की। इस बयान ने शिवसेना के भविष्य और राज्य की सत्ता की दिशा को लेकर चर्चाओं को एक बार फिर हवा दे दी है। क्या बिखरी हुई शिवसेना फिर एक हो सकती है? क्या सत्ता और विचारधारा के बीच कोई संतुलन संभव है? इन सवालों पर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज़ हो गया है।

कौन हैं वो नेता जिन्होंने की सुलह की अपील?
शिवसेना (UBT) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने हाल ही में एक बयान में कहा,
“अगर शिवसेना को अपनी असली पहचान बनाए रखनी है और महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पुरानी ताकत वापस पानी है, तो उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे को निजी मतभेदों से ऊपर उठकर फिर एक साथ आना होगा।”
राउत का यह बयान आश्चर्यजनक इसलिए भी है क्योंकि वे खुद शिंदे गुट के खिलाफ सबसे मुखर आलोचक रहे हैं। लेकिन उनके ताज़ा रुख से यह संकेत मिल रहा है कि शिवसेना (UBT) अब राजनीतिक व्यावहारिकता की दिशा में विचार कर रही है।
पिछली टूट की पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 40 से अधिक विधायकों को साथ लेकर बगावत कर दी थी और भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद शिवसेना दो हिस्सों में बंट गई – एक तरफ शिंदे की अगुवाई वाली “मूल” शिवसेना, जिसे चुनाव आयोग ने नाम और चिन्ह दे दिया, और दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे का गुट, जो शिवसेना (UBT) के नाम से विपक्ष की राजनीति कर रहा है।
क्या सुलह की संभावना है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संजय राउत का यह बयान सिर्फ एक भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत भी है। शिवसेना (UBT) को हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में निराशाजनक प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। पार्टी को कुछ सीटों पर नुकसान हुआ और मराठी वोट बैंक में भी सेंध लगती दिखी।
ऐसे में उद्धव गुट के सामने अब यह चुनौती है कि अगर उसे 2024 के विधानसभा चुनाव में प्रभावशाली भूमिका निभानी है, तो या तो गठबंधन को मज़बूत करना होगा या अपने पुराने साथियों से संबंध सुधारने की पहल करनी होगी।
शिंदे गुट की प्रतिक्रिया क्या रही?

एकनाथ शिंदे खेमे की ओर से अब तक कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार शिंदे गुट इस अपील को राजनीतिक मजबूरी मान रहा है। हालांकि, शिंदे खेमे के कई नेताओं का मानना है कि अब जब उन्हें चुनाव आयोग से शिवसेना का नाम और धनुष-बाण का चुनाव चिन्ह मिल चुका है, तो वे किसी भी तरह के “पुनर्मिलन” के पक्ष में नहीं हैं।
महाविकास आघाड़ी पर असर
अगर शिवसेना के दोनों धड़े एक साथ आते हैं, तो इसका सबसे बड़ा असर महाविकास आघाड़ी (MVA) गठबंधन पर पड़ सकता है, जिसमें फिलहाल शिवसेना (UBT), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) शामिल हैं। उद्धव ठाकरे का यह कदम कांग्रेस और एनसीपी को असहज कर सकता है, खासकर तब जब वे भाजपा और शिंदे खेमे को मुख्य विरोधी मानते हैं।
जनता की प्रतिक्रिया
मराठी मतदाताओं के बीच यह भावना रही है कि शिवसेना की बिखरी हुई स्थिति ने उसकी ताकत को कमजोर कर दिया है। अगर दोनों गुट साथ आते हैं, तो यह वोट बैंक की पुनः गोलबंदी में सहायक हो सकता है। सोशल मीडिया पर भी कई समर्थकों ने इस बयान का स्वागत किया है और दोनों नेताओं से “एकता” की दिशा में सोचने की अपील की है।
निष्कर्ष
संजय राउत की यह अपील निश्चित रूप से शिवसेना की राजनीति में नया मोड़ ला सकती है, लेकिन सुलह की राह आसान नहीं है। सत्ता, स्वाभिमान और सिद्धांत के त्रिकोण में फंसी शिवसेना के दोनों धड़ों को अब यह तय करना होगा कि वे भविष्य की राजनीति में किस रास्ते पर आगे बढ़ना चाहते हैं – टकराव का या सहयोग का। आने वाले हफ्ते इस दिशा में कोई बड़ा संकेत दे सकते हैं।
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