आज यानी मंगलवार को संसद में हंगामे के कारण कार्यवाही पहले बार-बार बाधित हुई, लेकिन बाद में पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
संसद के मानसून सत्र के तीसरे दिन भी हंगामे ने कार्यवाही को पूरी तरह प्रभावित किया। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी नोकझोंक, आरोप-प्रत्यारोप और नारेबाजी के चलते दोनों सदनों की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई। लोकसभा और राज्यसभा में लगातार दूसरे दिन प्रश्नकाल और शून्यकाल बाधित रहे। संसद परिसर में सियासी तापमान चरम पर रहा।

क्या है हंगामे की वजह?
विपक्षी दलों की मुख्य मांग थी—हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे को लेकर सरकार की ओर से स्पष्ट जवाब और बहस। विपक्ष का आरोप है कि इस्तीफे के पीछे कोई गंभीर संवैधानिक या राजनीतिक कारण है जिसे सरकार छिपा रही है। कांग्रेस, टीएमसी, आप और अन्य दलों ने इसे “लोकतंत्र की पारदर्शिता पर हमला” बताया।
इसके अलावा महंगाई, बेरोजगारी, मणिपुर में कथित हिंसा और किसानों के मुद्दों पर भी विपक्ष सरकार को घेरने के लिए एकजुट हुआ।
लोकसभा का दृश्य
सुबह 11 बजे जैसे ही लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्षी सदस्य वेल में आकर नारेबाजी करने लगे। “धनखड़ इस्तीफे पर जवाब दो”, “जनता को सच्चाई बताओ”, जैसे नारे लगे। अध्यक्ष ओम बिड़ला ने शांति बनाए रखने की कई बार अपील की, लेकिन शोर-शराबा बढ़ता ही गया। इसके बाद अध्यक्ष ने कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे तक स्थगित की, और फिर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।
राज्यसभा में भी कुछ ऐसा ही माहौल
राज्यसभा में भी विरोध का सिलसिला जारी रहा। विपक्षी दलों ने कार्यवाही शुरू होते ही स्थगन प्रस्ताव की मांग की, जिसे सभापति पद का प्रभार संभाल रहे वरिष्ठतम सदस्य हरिवंश नारायण सिंह ने खारिज कर दिया। इसके विरोध में विपक्षी सांसद वेल में आ गए और नारेबाजी शुरू कर दी। स्थिति बिगड़ती देख सभापति ने पहले सदन को दोपहर 2 बजे तक स्थगित किया और बाद में पूरे दिन के लिए स्थगन की घोषणा कर दी।
सरकार का पक्ष
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विपक्ष सिर्फ ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहा है। “हम हर मुद्दे पर बहस के लिए तैयार हैं, लेकिन विपक्ष का मकसद केवल हंगामा करना है। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे को अनावश्यक राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।”
विपक्ष की एकजुटता
विपक्षी दलों ने संसद भवन के बाहर महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, आप के संजय सिंह, सपा के अखिलेश यादव सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल रहे। विपक्ष ने घोषणा की है कि जब तक सरकार उपराष्ट्रपति के इस्तीफे, महंगाई और किसानों पर विस्तार से चर्चा नहीं करती, तब तक वे सदन को नहीं चलने देंगे।
जनता पर असर
मानसून सत्र को लेकर देश भर में कई उम्मीदें थीं कि महंगाई, किसान आंदोलन, शिक्षा व्यवस्था और रोजगार जैसे मुद्दों पर सार्थक बहस होगी। लेकिन लगातार हंगामे और कार्यवाही स्थगित होने से संसदीय लोकतंत्र की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। देश के नागरिकों को अपनी बात रखने के लिए संसद को सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था माना जाता है, लेकिन वहां संवाद के बजाय शोर-शराबा निराशाजनक है।
अब आगे क्या?
संसद का मानसून सत्र 26 जुलाई तक चलना है, लेकिन अभी तक कोई ठोस विधायी काम नहीं हो सका है। सूत्रों के अनुसार, सरकार विपक्ष के साथ बातचीत कर गतिरोध खत्म करने की कोशिश कर रही है, लेकिन स्थिति अब भी तनावपूर्ण है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो मानसून सत्र पूरी तरह बेनतीजा रह सकता है।
निष्कर्ष:
संसद में लगातार तीसरे दिन हंगामे के चलते कार्यवाही स्थगित होना चिंताजनक है। जनता के मुद्दों पर चर्चा की बजाय राजनीतिक टकराव हावी है। लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों को संवाद का रास्ता अपनाना होगा, वरना इससे न सिर्फ संसदीय कार्य प्रभावित होंगे, बल्कि देश की लोकतांत्रिक छवि भी धूमिल होगी।