चुनाव आयोग ने उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी है। आयोग ने इस संबंध में प्रेस नोट जारी किया है।
भारत के उच्च संवैधानिक पदों में से एक उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रक्रिया का आगाज़ हो चुका है। मौजूदा उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का कार्यकाल समाप्त होने के बाद इस प्रतिष्ठित पद के लिए नई नियुक्ति की तैयारी शुरू हो गई है। चुनाव आयोग जल्द ही इस चुनाव की तारीख की घोषणा करने वाला है। ऐसे में राजनीतिक हलचलों का दौर तेज हो गया है और सभी प्रमुख दल संभावित उम्मीदवारों की रणनीति में जुट गए हैं।
उपराष्ट्रपति पद का महत्व

भारत के उपराष्ट्रपति न केवल राज्यसभा के सभापति होते हैं, बल्कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या असमर्थता की स्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका भी निभाते हैं। यह पद देश की संवैधानिक व्यवस्था का अहम स्तंभ है। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, और उनका चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से सांसदों द्वारा किया जाता है।
चुनाव प्रक्रिया कैसे होती है?
उपराष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष प्रकार की निर्वाचन प्रणाली द्वारा होता है जिसे प्रो-पोर्टनल रिप्रजेंटेशन द्वारा सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली कहा जाता है। इस चुनाव में केवल संसद के दोनों सदनों — लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित और नामित सदस्य मतदान करते हैं। राज्य विधानसभाएं इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होतीं।
मतदाता एक क्रम में अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवारों को वोट देते हैं, और जिस उम्मीदवार को बहुमत मिलता है, वह उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होता है।
चुनाव आयोग की तैयारी
चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 66 के तहत संचालित की जाएगी। आयोग ने सभी संबंधित अधिकारियों और संसदीय प्रतिनिधियों को चुनाव की तैयारियों के संबंध में आवश्यक निर्देश भी भेज दिए हैं। आयोग द्वारा एक नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि, जांच की तिथि, नाम वापसी की समय सीमा, और मतदान व मतगणना की तारीख जल्द घोषित की जाएगी।
कौन-कौन हो सकते हैं उम्मीदवार?
अब तक किसी भी दल ने आधिकारिक रूप से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार भाजपा और एनडीए गठबंधन एक ऐसे चेहरे की तलाश में है जो अनुभव और प्रतिनिधित्व के लिहाज से संतुलित हो। वहीं, विपक्षी दलों के बीच एक संयुक्त उम्मीदवार को लेकर भी बातचीत चल रही है, ताकि एकजुट होकर मुकाबला किया जा सके।
2022 के राष्ट्रपति चुनाव में जहां एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को भारी बहुमत मिला था, वहीं विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया था। अब उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष ज्यादा संगठित रणनीति बना रहा है।
संभावित नामों की चर्चा
एनडीए खेमे से जिन नामों की चर्चा हो रही है, उनमें पूर्व राज्यपाल, वरिष्ठ सांसद, और सामाजिक रूप से प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। वहीं विपक्ष की ओर से पूर्व नौकरशाहों, शिक्षाविदों या अनुभवी सांसदों पर विचार किया जा रहा है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक बन सकें।
राजनीतिक दलों की सक्रियता
सभी प्रमुख दलों ने अपने सांसदों को सचेत कर दिया है कि चुनाव आयोग की अधिसूचना के बाद आवश्यक समर्थन और रणनीति सुनिश्चित की जाए। एनडीए के पास संसद में बहुमत है, जिससे उनके उम्मीदवार के जीतने की संभावना अधिक मानी जा रही है। फिर भी, विपक्ष इस चुनाव को प्रतीकात्मक लड़ाई के रूप में देख रहा है और इसे लोकतंत्र की रक्षा से जोड़ रहा है।
निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति पद का चुनाव केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक संरचना का दर्पण भी है। यह चुनाव दर्शाता है कि विभिन्न विचारधाराओं के बीच कैसे संतुलन स्थापित किया जाता है और एक ऐसा व्यक्ति चुना जाता है जो राष्ट्र की संसद को गरिमा और निष्पक्षता से संचालित कर सके। अब जब चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, देश की निगाहें इस पर टिकी हैं कि “राष्ट्रपति भवन का अगला मेहमान कौन होगा?” — इसका उत्तर आगामी हफ्तों में स्पष्ट हो जाएगा।
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