बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन बना सियासी रणभूमि – दलों में आरोप-प्रत्यारोप तेज !

बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सरकार और विपक्ष में तीखी बहस जारी है। इस मुद्दे पर बुधवार को पटना से लेकर दिल्ली तक संग्राम देखने को मिला है।

बिहार में आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के संशोधन (वोटर लिस्ट रिवीजन) को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। जहां निर्वाचन आयोग मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया में जुटा है, वहीं राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रक्रिया पर सवाल उठाने लगे हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही एक-दूसरे पर धांधली, भेदभाव और मतदाता अधिकारों से खिलवाड़ करने के आरोप लगा रहे हैं।

बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन बना सियासी रणभूमि – दलों में आरोप-प्रत्यारोप तेज !
बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन बना सियासी रणभूमि – दलों में आरोप-प्रत्यारोप तेज !

क्या है मामला?

निर्वाचन आयोग द्वारा हर वर्ष की तरह इस बार भी मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू की गई है। इस प्रक्रिया के तहत 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नए मतदाताओं का नाम जोड़ा जा रहा है और मृत, स्थानांतरित या दोहराए गए नाम हटाए जा रहे हैं। आयोग ने इस बार ऑनलाइन सिस्टम को भी ज्यादा प्रभावी बनाया है, ताकि नागरिक अपने घर से ही आवेदन कर सकें।

हालांकि इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक दलों के बीच गहरी असहमति देखी जा रही है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वाम दलों ने चुनाव आयोग पर यह आरोप लगाया है कि वह सत्ताधारी दल भाजपा और जेडीयू के दबाव में काम कर रहा है, जिससे कुछ खास इलाकों में विपक्षी मतदाताओं के नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं।

विपक्ष के आरोप

राजद नेता तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा,
“हमारे पास साक्ष्य हैं कि कुछ जिलों में खास समुदायों के नाम बड़ी संख्या में वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। यह लोकतंत्र के खिलाफ है और चुनावी निष्पक्षता को खतरे में डालता है।”

वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजीत शर्मा ने भी इस प्रक्रिया को “राजनीतिक चाल” बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग को सत्तापक्ष के प्रभाव से मुक्त रहकर काम करना चाहिए, वरना यह पूरी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देगा।

सत्तापक्ष की सफाई

भाजपा और जेडीयू ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा,
“विपक्ष चुनाव से पहले हार का बहाना ढूंढ़ रहा है। निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और वह निष्पक्ष रूप से काम कर रही है। यदि किसी को आपत्ति है तो वह कानूनी प्रक्रिया अपनाए।”

भाजपा नेता संजय जायसवाल ने भी विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि जब नाम हटाने की प्रक्रिया पूरे राज्य में समान रूप से हो रही है, तब केवल कुछ खास दलों को क्यों परेशानी हो रही है?

निर्वाचन आयोग का रुख

निर्वाचन आयोग का रुख

इस पूरे विवाद के बीच निर्वाचन आयोग ने बयान जारी कर स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण पूरी पारदर्शिता के साथ किया जा रहा है। आयोग ने दावा किया कि प्रत्येक आवेदन और हटाने की प्रक्रिया को डिजिटल ट्रैकिंग के जरिये रिकॉर्ड किया जा रहा है, ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पर तत्काल कार्रवाई की जा सके।

आयोग ने यह भी कहा कि यदि किसी मतदाता को लगता है कि उसका नाम अनुचित रूप से हटाया गया है, तो वह फॉर्म-6 या फॉर्म-7 के माध्यम से आवेदन कर सकता है और निर्धारित समय में उसका समाधान किया जाएगा।

स्थानीय स्तर पर विरोध और प्रदर्शन

बिहार के कई जिलों में स्थानीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। खासकर सीमांचल और कोसी क्षेत्र में लोग वोटर लिस्ट से नाम कटने को लेकर शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। कुछ जिलों में प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हल्की झड़पें भी हुईं।

निष्कर्ष

बिहार में मतदाता सूची संशोधन का मुद्दा अब महज एक प्रशासनिक प्रक्रिया न रहकर राजनीतिक संग्राम का केंद्र बन गया है। जहां आयोग निष्पक्षता का दावा कर रहा है, वहीं दलों के बीच अविश्वास की खाई लगातार गहरी हो रही है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आयोग कैसे इस संकट को पार करता है और मतदाताओं का भरोसा बहाल कर पाता है। चुनावी वर्ष में यह विवाद राजनीतिक तापमान को और भी अधिक गर्म कर सकता है।

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