समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव लोकसभा में अपनी बात रख रहे हैं। उन्होंने लोकसभा में कहा कि किसके दबाव में सीजफायर किया गया, इसकी जानकारी सरकार को देनी चाहिए।
लोकसभा के मानसून सत्र में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत जारी किए गए सीजफायर (war pause) पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने मांग की कि आखिर इस सीजफायर के पीछे था कौन सा दबाव — क्या यह केवल रणनीतिक निर्णय था या कहीं राजनीतिक हितों या विदेशों का दबाव शामिल था? यादव ने कहा:
“जश्न तो जीत का होता है, सीजफायर का नहीं” — जिससे उन्होंने सरकार की जीत का जश्न मनाने की मानसिकता पर व्यंग्य किया और सवाल उठाया कि जनता को भ्रमित क्यों किया गया?

सरकार के राजनीतिक उद्देश्य पर सवाल

न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, अखिलेश ने पूछा कि क्या विधानसभा या लोकसभा चुनाव से पहले यह ऑपरेशन सिर्फ एक राजनीतिक फेरबदल था। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि यह ऑपरेशन चुनाव से पहले शुरू किया गया था, जिससे यह राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश जैसा प्रतीत हुआ।
“ऑपरेशन महादेव कल ही क्यों हुआ, कौन ले रहा राजनीति लाभ?” — उन्होंने खटास उठाते हुए कहा कि सुरक्षा को राजनीति से जोड़ना देशहित को कमजोर करने जैसा है।
रक्षा मंत्री का जवाब
विपक्षी आरोपों पर केंद्रीय रक्षा मंत्री रिज़भु (राजनाथ सिंह) ने संसद में सफाई दी कि यह ऑपरेशन पूरी तरह रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया था, न कि किसी बाहरी दबाव में आकर।
“भारत ने ऑपरेशन इसलिए रोका क्योंकि पूर्व निर्धारित राजनीतिक और सैन्य लक्ष्य पूरे हो गए थे। यह किसी दबाव में रोका गया, यह निराधार और गलत धारणा है।”
🇺🇸 विदेश हस्तक्षेप की ओर संकेत?
लोकसभा की बहस में विपक्ष ने यह भी सवाल उठाया कि क्या किसी विदेशी नेता जैसे (उदाहरण के लिए ट्रम्प) ने इस सीजफायर प्रक्रिया को प्रभावित किया? राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी इसी दिशा में सरकार की चुप्पी पर चिंता व्यक्त की। अखिलेश ने यह संकेत दिया कि भारत की संप्रभुता को किसी बाहरी दावे पर थोपना चिंताजनक संकेत है।
पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव
अखिलेश का यह कहना था कि ऑपरेशन संबंधी निर्णयो में पारदर्शिता का अभाव था। उन्होंने संसद में उठाए गए सवालों पर कहा:
- सरकार ने किस स्तर पर निर्णय लिया, कौन सी मंज़ूरी मिली, क्या रणनीतिक रूप से कोई बदलाव हुआ—इन बातों पर जनता को जानकारी नहीं दी गई।
- कौन जिम्मेदार है, कौन सी प्रक्रिया से निर्णय हुआ—इन सबका आडिट होना चाहिए था। इसे विपक्ष ने जवाबदेही की कमी माना।
व्यापक राजनीतिक और सुरक्षा संदर्भ
एसपी प्रमुख ने इस घटना को सिर्फ कूटनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतांत्रिक जवाबदेही का मसला बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि चीन से बढ़ते तनाव और सीमापार धमकियों के बीच, रक्षा बजट को कम से कम 3% GDP तक बढ़ाना चाहिए—ताकि रक्षा तैयारियों में मजबूती आए।
सरकार पर बढ़ते सार्वजनिक दबाव
- अखिलेश यादव ने लोकसभा में साफ सवाल किया—सीजफायर किसके दबाव में किया गया?
- उन्होंने ऑपरेशन की ताक्नीकी सीमाओं और राजनीतिक समयबद्धता को सामने रखा।
- विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने सार्वजनिक जवाबदेही को ताक पर रखकर विवाद को पारदर्शी संगठनात्मक दिशा नहीं दी।
- जबकि रक्षा मंत्री ने कहा कि ऑपरेशन पूरी तरह रणनीतिक था और इसमें किसी दबाव की भूमिका नहीं थी।
अब यह जनता, विशेषज्ञ और विपक्ष की मांग होगी कि सरकार इन सवालों के जवाब तब तक नष्ट न करे जब तक पूर्ण सफाई नहीं हो जाती। यह बहस केवल युद्ध विराम पर नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और नैतिक जिम्मेदारी की भी परीक्षा है।
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