राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर गरमाई बहस – सुरक्षा रणनीति पर उठे सवाल !

राज्यसभा में आज ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहस हो रही है, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह जवाब देंगे। इससे पहले पीएम मोदी ने लोकसभा में स्पष्ट किया था कि ऑपरेशन अभी भी जारी है और भारत आतंकियों और उनके समर्थकों में कोई फर्क नहीं करेगा।

राज्यसभा में मंगलवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर जोरदार बहस देखने को मिली। इस अभियान को लेकर जहां सत्ता पक्ष ने सरकार की रणनीतिक दक्षता और कूटनीतिक सफलता की तारीफ की, वहीं विपक्ष ने इसके उद्देश्यों और प्रभावों पर सवाल उठाए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सदन में इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा और “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”— यह सरकार की स्पष्ट नीति है।

राज्यसभा में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर गरमाई बहस – सुरक्षा रणनीति पर उठे सवाल !
राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर गरमाई बहस – सुरक्षा रणनीति पर उठे सवाल !

क्या है ऑपरेशन सिंदूर?

क्या है ऑपरेशन सिंदूर?
क्या है ऑपरेशन सिंदूर?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक गुप्त सैन्य एवं कूटनीतिक मिशन है जिसे हाल ही में भारत सरकार ने सीमा पार आतंकी ठिकानों और उनके नेटवर्क को निष्क्रिय करने के लिए अंजाम दिया है। यह ऑपरेशन विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर और उसके आसपास के क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई करना और सीमावर्ती क्षेत्रों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

राज्यसभा में विपक्ष के सवाल

विपक्ष के कुछ सदस्यों ने इस ऑपरेशन की पारदर्शिता और दीर्घकालिक रणनीति पर सवाल खड़े किए। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूछा:

क्या इस ऑपरेशन से सीमावर्ती गांवों में रहने वाले नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाई है? क्या इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के साथ बातचीत की संभावना खत्म हो गई है?

इसके अलावा, TMC और DMK के सांसदों ने भी ऑपरेशन की प्रकृति, इसके राजनीतिक प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया को लेकर चिंता जताई।

जयशंकर का कड़ा जवाब

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बेहद स्पष्ट लहजे में जवाब देते हुए कहा:

भारत की सीमाओं की सुरक्षा सर्वोपरि है। ऑपरेशन सिंदूर, भारत की संप्रभुता और उसके नागरिकों की रक्षा के लिए उठाया गया एक अनिवार्य कदम था। यह कोई तात्कालिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक सोच-समझकर बनाई गई रणनीति थी।

उन्होंने कहा कि भारत अब “रणनीतिक धैर्य नहीं, बल्कि निर्णायक प्रतिक्रिया” की नीति पर काम कर रहा है। जयशंकर ने पाकिस्तानी हरकतों का हवाला देते हुए कहा कि जब सीमा पार से आतंकवाद को प्रोत्साहन दिया जाएगा, तो भारत शांत नहीं बैठ सकता।

हमने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत अब सिर्फ निंदा नहीं करता, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर जवाब भी देता है।
खून और पानी अब साथ-साथ नहीं बह सकते। यह संदेश हमने नीतिगत रूप से दिया है और इसे आगे भी बनाए रखेंगे।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत का पक्ष

जयशंकर ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने प्रमुख वैश्विक देशों को इस कार्रवाई के पीछे का कारण स्पष्ट रूप से बताया है। अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों ने भारत की आत्मरक्षा के अधिकार को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि भारत शांतिपूर्ण राष्ट्र है, लेकिन “शांति की कोई कीमत होनी चाहिए, और वह कीमत सुरक्षा है।”

सत्तापक्ष का समर्थन

भाजपा के कई नेताओं ने सरकार की कार्यवाही का समर्थन किया। गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपने संक्षिप्त बयान में कहा:

देश की सुरक्षा के लिए सरकार हर संभव कदम उठाएगी। ऑपरेशन सिंदूर इसका प्रमाण है कि हम केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कार्रवाई से जवाब देते हैं।

निष्कर्ष

राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर चली बहस ने यह साफ कर दिया है कि भारत अब अपनी रणनीतिक नीति को लेकर ज्यादा मुखर और निर्णायक हो चुका है। विदेश मंत्री जयशंकर का “खून और पानी एक साथ नहीं बहेंगे” वाला बयान इस बात का संकेत है कि भारत अब अपने पड़ोसियों से पुराने ढर्रे पर संबंध नहीं रखेगा। आने वाले समय में भारत की रणनीतिक नीति किस दिशा में जाएगी, यह इसी तरह के मजबूत फैसलों से तय होगा।

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