तमिलनाडु के राज्यपाल ने असम, पश्चिम बंगाल समेत देश के कुछ हिस्सों में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने इसे ‘टाइम बम’ की तरह बताया।
असम और पश्चिम बंगाल की बदलती जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) को लेकर एक बार फिर गंभीर चिंता जताई गई है। इस बार यह चिंता किसी राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन से नहीं, बल्कि राज्यपाल स्तर के संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की ओर से आई है। असम और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों ने हाल ही में जनसंख्या संतुलन में आ रहे बदलाव को “समय बम” (टाइम बम) की संज्ञा देते हुए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा बताया है।

क्या है डेमोग्राफिक बदलाव?
जनसंख्या में तब बदलाव कहा जाता है जब किसी क्षेत्र विशेष में विभिन्न समुदायों, धर्मों या जातियों की जनसंख्या वृद्धि दर असमान रूप से बढ़ती है। असम और बंगाल के कई सीमावर्ती जिलों में पिछले दो दशकों में यह देखा गया है कि एक खास समुदाय की जनसंख्या दर अन्य समुदायों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही है। इस असंतुलन के कारण स्थानीय संस्कृति, भाषा, राजनीति और सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
गवर्नर की चिंता
असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने हाल ही में अपने-अपने राज्यों में हुए कार्यक्रमों और प्रेस ब्रीफिंग्स में इस मुद्दे पर खुलकर बात की।
गवर्नर कटारिया ने कहा:
“असम के सीमावर्ती जिलों में जनसंख्या का जो बदलता स्वरूप है, वह किसी साधारण सामाजिक परिवर्तन का संकेत नहीं देता। यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है, और अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया, तो यह भविष्य में समाज और राष्ट्र के लिए खतरा बन सकता है।“
वहीं बंगाल के गवर्नर बोस ने कहा:
“कुछ सीमाई क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है। यह केवल आंकड़ों का मामला नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है। इसे नजरअंदाज करना हमारी बड़ी भूल होगी।“
दोनों राज्यपालों ने इसे “टाइम बम” बताया जो समय के साथ और भी गंभीर रूप ले सकता है।
क्या कहता है डेटा?
- असम के कुछ जिलों जैसे बांगाईगांव, धुबरी, करीमगंज और गोलपाड़ा में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 60% के पार पहुंच चुका है।
- पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर जैसे जिलों में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है।
यह वृद्धि अवैध घुसपैठ, सीमावर्ती इलाकों में कमजोर निगरानी और तुष्टिकरण की राजनीति जैसे कारणों से हो रही है, ऐसा दावा कई विशेषज्ञ कर चुके हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्यपालों के बयानों का समर्थन करते हुए इसे गंभीर राष्ट्रीय मुद्दा बताया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पहले से ही इस मुद्दे को लेकर मुखर हैं और उन्होंने NRC (National Register of Citizens) और जनसंख्या नियंत्रण नीति को लागू करने की वकालत की है।
वहीं तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने राज्यपालों के बयानों को “राजनीति से प्रेरित और ध्रुवीकरण फैलाने वाला” करार दिया है। उनका कहना है कि राज्यपालों को संविधान के दायरे में रहकर काम करना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनना चाहिए।
सुरक्षा और सांस्कृतिक प्रभाव
डेमोग्राफिक बदलाव से सिर्फ राजनीतिक सत्ता समीकरण ही नहीं बदलते, बल्कि स्थानीय संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज और रोजगार पर भी असर पड़ता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इससे “मूल निवासी बनाम बाहरी” की मानसिकता पनपती है, जो सामाजिक संघर्ष का रूप ले सकती है।
निष्कर्ष
असम और पश्चिम बंगाल की बदलती जनसंख्या संरचना अब एक गंभीर राष्ट्रीय विमर्श का विषय बन चुकी है। राज्यपालों जैसे संवैधानिक पदधारकों द्वारा इस मुद्दे पर सार्वजनिक चिंता जताना बताता है कि समस्या सतही नहीं, बल्कि गहराई से जुड़ी हुई है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें इस पर क्या कदम उठाती हैं—क्या यह केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहेगा या नीतिगत स्तर पर भी कोई ठोस कार्रवाई होगी? यदि समय रहते इस ‘टाइम बम’ को निष्क्रिय नहीं किया गया, तो भविष्य में इसके सामाजिक और राष्ट्रीय प्रभाव बेहद व्यापक हो सकते हैं।