संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस हो रही थी और पीएम मोदी ने कांग्रेस पर तंज कसा कि कुछ लोगों को बोलने नहीं दिया जाता है। थरूर ने पूरी बहस के दौरान चुप्पी साधे रखी। जानें इसके क्या हैं मायने?
संसद के मानसून सत्र के दौरान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में जबरदस्त बहस देखने को मिली। इस सैन्य और कूटनीतिक मिशन को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां विपक्ष की आलोचना करते हुए तीखा तंज कसा, वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर की चुप्पी ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।

क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा हाल ही में अंजाम दिया गया एक गोपनीय सीमापार मिशन है, जिसका उद्देश्य सीमा पार छिपे आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाना था। यह ऑपरेशन विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तानी आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए चलाया गया। इसके तहत कई आतंकी कैंपों को नष्ट करने और घुसपैठ के प्रयासों को विफल करने का दावा किया गया है।
संसद में गरमाया मुद्दा
संसद में इस ऑपरेशन पर चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष ने इसे भारत की सैन्य शक्ति और कूटनीतिक दृढ़ता का प्रतीक बताया, जबकि विपक्ष ने इसके पारदर्शिता और दीर्घकालिक प्रभावों पर सवाल उठाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा:
“जब देश पर संकट आता है, तो कुछ लोगों की राजनीति जाग जाती है। लेकिन भारत अब वो नहीं रहा जो पहले था। ऑपरेशन सिंदूर ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब मूकदर्शक नहीं, निर्णायक है।“
“जो लोग सबूत मांगते हैं, वे पहले देश की सेना पर भरोसा करना सीखें।“
यह तंज सीधे-सीधे विपक्षी नेताओं पर था, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय सरकार से सबूत मांगने की बात की थी।
थरूर की चुप्पी क्यों बनी मुद्दा?

इस तीखी बहस के दौरान कांग्रेस सांसद शशि थरूर, जो आमतौर पर विदेश नीति और सुरक्षा मामलों पर मुखर माने जाते हैं, पूरी बहस के दौरान चुपचाप बैठे रहे। न तो उन्होंने सरकार का समर्थन किया, न ही किसी तरह का विरोध दर्ज कराया।
उनकी यह चुप्पी राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है। कई विश्लेषकों का मानना है कि थरूर रणनीतिक रूप से चुप रहे ताकि पार्टी की लाइन से हटकर कोई टिप्पणी न करें, वहीं कुछ लोग इसे उनकी निजी असहमति या असहजता से भी जोड़कर देख रहे हैं।
कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कोई सीधा विरोध नहीं किया, लेकिन पार्टी प्रवक्ता ने यह जरूर कहा:
“हम भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को सर्वोच्च मानते हैं, लेकिन सरकार को पारदर्शिता के साथ देश को यह बताना चाहिए कि इस ऑपरेशन से क्या हासिल हुआ और इसकी रणनीति क्या है।“
हालांकि पार्टी के अंदर नेताओं की राय बंटी हुई दिखी। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने निजी तौर पर ऑपरेशन का समर्थन किया, तो कुछ ने इसे सरकार का “राजनीतिक शो” बताया।
जनता और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
सुरक्षा विशेषज्ञों ने ऑपरेशन सिंदूर को एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। उनका कहना है कि यह भारत की “प्रॉएक्टिव डिफेंस पॉलिसी” का हिस्सा है, जो अब केवल प्रतिक्रिया में नहीं, बल्कि संभावित खतरे को पहले ही निष्क्रिय करने पर आधारित है।
वहीं जनता में इस ऑपरेशन को लेकर राष्ट्रवाद की भावना देखने को मिली। सोशल मीडिया पर #OperationSindoor ट्रेंड कर रहा है और लोग सरकार की सराहना कर रहे हैं।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुआ संग्राम यह साफ दिखाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अब केवल सैन्य मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक विमर्श का भी बड़ा विषय बन चुका है। प्रधानमंत्री मोदी का तंज जहां विपक्ष पर दबाव बनाता है, वहीं शशि थरूर जैसे अनुभवी नेताओं की चुप्पी यह सवाल खड़ा करती है कि क्या कांग्रेस इस मुद्दे पर एकजुट और स्पष्ट रणनीति के साथ सामने आ पा रही है?
आने वाले समय में यह ऑपरेशन न केवल भारत की विदेश और रक्षा नीति में अहम भूमिका निभाएगा, बल्कि राजनीतिक रणनीतियों और चुनावी भाषणों का भी प्रमुख हिस्सा बनेगा।
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