सावन की एकादशी बेहद खास मानी गई है, खासकर पुत्रदा एकादशी, इस एकादशी पर भगवान विष्णु से संतान के सुख की कामना की जाती है।
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है और श्रावण माह में आने वाली पुत्रदा एकादशी का स्थान तो अत्यंत पवित्र माना गया है। इस एकादशी का व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति की कामना से किया जाता है, लेकिन मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धालु इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके जीवन में सुख, समृद्धि, संतान सुख और पारिवारिक आनंद का वास होता है।

क्या है पुत्रदा एकादशी का महत्व?
पुत्रदा एकादशी वर्ष में दो बार आती है — पहली पौष माह में (जनवरी में) और दूसरी श्रावण माह में (अगस्त में)। श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी को विशेष फलदायक माना जाता है क्योंकि यह माह स्वयं भगवान शिव और विष्णु दोनों को प्रिय है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है और संतान यदि पहले से हो तो उसके जीवन में उन्नति, बुद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
पौराणिक कथा
स्कंद पुराण और पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भद्रावती नगरी के राजा सुखेतुमान और रानी शैव्या संतानहीन थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए घोर तप किया और पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें योग्य पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
कैसे करें व्रत और पूजा?

- व्रत की तैयारी – व्रत से एक दिन पहले सात्विक आहार लें और व्रत का संकल्प लें। रात्रि में भगवान विष्णु का नामजप करें।
- स्नान और पूजा – पुत्रदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान पर पीले कपड़े बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- पूजन सामग्री – तुलसी के पत्ते, पंचामृत, पीला पुष्प, पीला वस्त्र, चावल, घी का दीपक, फल और मिष्ठान।
- भगवान विष्णु की आराधना – विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
- व्रत का नियम – दिनभर उपवास रखें, केवल फलाहार लें या निर्जल व्रत करें (शक्ति अनुसार)। रात में जागरण और भजन कीर्तन करें।
- द्वादशी पर पारण – अगले दिन द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
जरूर करें ये विशेष उपाय
- तुलसी में दीपक जलाएं – एकादशी की शाम को तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु से संतान सुख की प्रार्थना करें।
- पीली वस्तुओं का दान करें – बेसन के लड्डू, पीले वस्त्र, चने की दाल, हल्दी जैसे पीले रंग की चीजें ब्राह्मण या ज़रूरतमंदों को दान करें।
- शंख से जल अर्पण करें – विष्णु भगवान को शंख से जल चढ़ाएं और संतान की मंगलकामना करें।
- संतान गोपाल मंत्र का जाप करें –
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः॥” इस मंत्र का जाप संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा हेतु अत्यंत फलदायी माना गया है।
व्रत से मिलने वाले लाभ
- संतान सुख की प्राप्ति
- संतान की दीर्घायु, बुद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि
- गृह कलह से मुक्ति और पारिवारिक सुख-शांति
- पितृ दोष से मुक्ति
- मोक्ष की प्राप्ति और विष्णु लोक की प्राप्ति
निष्कर्ष
पुत्रदा एकादशी केवल व्रत नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा, धैर्य और आस्था का प्रतीक है। इस दिन किए गए पूजन और उपायों से केवल संतान सुख ही नहीं, जीवन में सुख-शांति, ऐश्वर्य और समृद्धि भी प्राप्त होती है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्तों की झोली खुशियों से भर जाती है। इसलिए, श्रद्धा और नियमपूर्वक यह व्रत अवश्य करें और अपने जीवन को दिव्यता और आनंद से भरें।
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