‘सरज़मीन’ में भावनाओं की जंग, इब्राहिम की दमदार शुरुआत !

कायोज ईरानी की डेब्यू फिल्म सरजमीन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है। फिल्म में इब्राहिम अली खान, काजोल और पृथ्वीराज लीड रोल में हैं। जानें कैसी है फिल्म।

बॉलीवुड की नई फिल्म ‘सरज़मीन’ देशभक्ति, पारिवारिक भावना और व्यक्तिगत मूल्यों के संघर्ष की कहानी है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से झकझोर देती है। इस फिल्म में जहां एक ओर अनुभवी कलाकार पृथ्वीराज सुकुमारन और काजोल अपने दमदार अभिनय से स्क्रीन पर गहराई लाते हैं, वहीं दूसरी ओर इब्राहिम अली खान ने अपनी पहली ही फिल्म में ऐसा प्रभाव छोड़ा है, जो आने वाले समय में उन्हें एक गंभीर कलाकार के रूप में स्थापित कर सकता है।

‘सरज़मीन’ में भावनाओं की जंग, इब्राहिम की दमदार शुरुआत !
‘सरज़मीन’ में भावनाओं की जंग, इब्राहिम की दमदार शुरुआत !

कहानी का सार

‘सरज़मीन’ की कहानी सेना में कार्यरत कर्नल आर. राठौर (पृथ्वीराज) की है, जो एक ईमानदार और सख्त अफसर हैं। उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से देशभक्ति और अनुशासन से बंधी है। वहीं दूसरी ओर उनकी पत्नी नंदिता (काजोल) एक भावुक लेकिन मजबूत महिला हैं, जो चाहती हैं कि उनके बेटे आर्यन (इब्राहिम अली खान) की परवरिश स्नेह और स्वतंत्रता के माहौल में हो।

 कहानी का सार
कहानी का सार

कहानी तब एक निर्णायक मोड़ लेती है जब आर्यन का सामना देश के खिलाफ साजिश में फंसी एक घटना से होता है, जहां वह अपने कर्तव्यों, परिवार और आत्म-परिचय के बीच फंसा दिखता है। पिता और बेटे की वैचारिक टकराहट फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है।

अभिनय: तीनों किरदारों का कमाल

  • पृथ्वीराज सुकुमारन ने कर्नल राठौर के किरदार को पूरी गंभीरता और परिपक्वता से निभाया है। उनकी आंखों में झलकती देशभक्ति, बेटे के प्रति कठोर प्रेम, और पत्नी से भावनात्मक दूरी फिल्म को एक अलग स्तर पर ले जाती है।
  • काजोल, जो पहले भी कई मजबूत महिला किरदार निभा चुकी हैं, इस फिल्म में एक संतुलनकारी शक्ति की भूमिका निभाती हैं। वह न केवल एक माँ के रूप में आर्यन के लिए ढाल हैं, बल्कि पति से वैचारिक मतभेद में भी अपनी गरिमा बनाए रखती हैं।
  • और बात करें इब्राहिम अली खान की तो कहना होगा कि उन्होंने अपने अभिनय की पहली परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया है। उन्होंने एक उलझे हुए, संवेदनशील और अपने स्थान को खोज रहे युवा का किरदार बेहद प्राकृतिक और सहजता से निभाया है। उनकी संवाद अदायगी, बॉडी लैंग्वेज और इमोशनल दृश्यों में परिपक्वता देखकर यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि यह उनकी डेब्यू फिल्म है।

कहानी और निर्देशन

फिल्म का निर्देशन किया है करण शर्मा ने, जो पहले कुछ शॉर्ट फिल्मों और वेब सीरीज से पहचान बना चुके हैं। उन्होंने ‘सरज़मीन’ को सिर्फ एक युद्ध या देशभक्ति पर आधारित फिल्म नहीं, बल्कि पारिवारिक मूल्यों, पहचान और बलिदान की कहानी के रूप में पेश किया है।

स्क्रीनप्ले कई जगहों पर थोड़ा धीमा ज़रूर होता है, लेकिन पिता-पुत्र के बीच के टकराव और माँ की भावनात्मक जद्दोजहद को जिस तरह से पिरोया गया है, वह सराहनीय है।

संगीत और तकनीकी पक्ष

फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर दृश्यों को और भी प्रभावशाली बनाता है। अमित त्रिवेदी द्वारा दिया गया संगीत भावनाओं को और गहराई देता है। “सरहद के उस पार” और “माँ की चिट्ठी” जैसे गाने लंबे समय तक याद रखे जाएंगे।

सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो युद्ध के दृश्य और घरेलू माहौल के बीच संतुलन बखूबी साधा गया है। कैमरा वर्क और सेट डिजाइन फिल्म को एक यथार्थपरक रूप देते हैं।

फिल्म की खास बातें

  • तीनों मुख्य कलाकारों का दमदार अभिनय
  • देशभक्ति और पारिवारिक भावना का संतुलन
  • डेब्यू एक्टर इब्राहिम का परिपक्व प्रदर्शन
  • भावनात्मक गहराई से भरा स्क्रीनप्ले

कुछ कमजोर पहलू

  • फिल्म की गति पहले हाफ में थोड़ी धीमी है
  • कुछ सबप्लॉट्स अधूरे रह जाते हैं
  • क्लाइमैक्स में और अधिक प्रभावशाली ट्विस्ट की गुंजाइश थी

निष्कर्ष

‘सरज़मीन’ सिर्फ एक देशभक्ति फिल्म नहीं है, यह उन रिश्तों की बात करती है जो कभी कर्तव्य के बोझ तले दब जाते हैं, तो कभी भावनाओं के सैलाब में बह जाते हैं। पृथ्वीराज और काजोल ने अपने अनुभव से इसे संजीदगी दी है, और इब्राहिम अली खान ने आश्चर्यजनक रूप से दिल जीत लिया है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
देखें या नहीं: ज़रूर देखें – खासकर अगर आप देशभक्ति और भावनात्मक रिश्तों से जुड़ी फिल्में पसंद करते हैं।

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