प्रेमानंद महाराज के सत्संग और प्रवचन आध्यात्मिक गहराई के लिए प्रसिद्ध हैं। वह भक्तों के सवालों का सरलता से जवाब देते हैं। प्रेमानंद महाराज ने ‘माया’ के बारे में अपने भक्तों को बहुत ही साधारण तरीके समझाया है।
प्रेमानंद महाराज अपने गहरे आध्यात्मिक ज्ञान और सहज, सरल भाषा में दिए गए प्रवचनों के लिए जाने जाते हैं। उनके सत्संग न केवल भक्ति भाव से भरपूर होते हैं, बल्कि जीवन के व्यवहारिक पक्ष पर भी प्रकाश डालते हैं। हाल ही में एक सत्संग के दौरान उन्होंने ‘माया’ के विषय पर विस्तार से चर्चा की और भक्तों को इसे समझने का आसान तरीका बताया।

सत्संग का माहौल
सत्संग में देशभर से आए सैकड़ों भक्त उपस्थित थे। शांत और पवित्र वातावरण में प्रेमानंद महाराज मंच पर विराजमान हुए और उन्होंने अपने प्रवचन की शुरुआत एक छोटी सी कथा से की। इस कथा के माध्यम से उन्होंने ‘माया’ की परिभाषा को सरल शब्दों में समझाया, जिससे हर कोई आसानी से जुड़ सका।
माया की सरल व्याख्या
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि माया कोई रहस्यमय या जादुई शक्ति नहीं, बल्कि हमारे मन की वह स्थिति है, जो हमें असल सत्य से दूर ले जाती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “जिस तरह एक व्यक्ति रात्रि में अंधेरे में रस्सी को सांप समझ लेता है, उसी तरह हम भी अज्ञान के कारण असत्य को सत्य मान लेते हैं। यही माया है।”
उन्होंने बताया कि माया के कारण ही इंसान भौतिक सुख-सुविधाओं को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य समझ बैठता है, जबकि वास्तविक सुख आत्मज्ञान और ईश्वर भक्ति में है।
गंदे आचरण पर सख्त संदेश
प्रवचन के दौरान प्रेमानंद महाराज ने एक और महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति गंदा आचरण करता है और आप उसे सही उपदेश दें, तो उसे बुरा लग सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप सच कहना बंद कर दें। सच कभी-कभी कड़वा होता है, लेकिन वही आत्मा के लिए औषधि का काम करता है।”
उन्होंने भक्तों को प्रेरित किया कि वे समाज में अच्छाई फैलाएं, चाहे इसके लिए उन्हें विरोध या आलोचना ही क्यों न झेलनी पड़े।
भक्ति का महत्व
महाराज ने समझाया कि माया से मुक्ति पाने का सबसे सरल तरीका ईश्वर की भक्ति है। उन्होंने कहा कि जब मन भगवान के नाम और गुणों में रमता है, तब माया की शक्ति कम हो जाती है।
उन्होंने श्रीकृष्ण का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे गोकुल के लोग भक्ति में इतने तल्लीन रहते थे कि माया उन्हें प्रभावित नहीं कर पाती थी।
प्रश्नोत्तर सत्र
सत्संग के अंत में भक्तों ने अपने-अपने प्रश्न पूछे। एक भक्त ने पूछा कि माया से पूरी तरह कैसे बचा जा सकता है? इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा, “माया से पूरी तरह बचना तभी संभव है, जब हम मन, वचन और कर्म से भगवान को समर्पित हो जाएं। भक्ति, सेवा और सत्संग – ये तीन साधन हमें माया के बंधन से मुक्त करते हैं।”
सामाजिक संदेश
महाराज ने अपने प्रवचन में समाज सुधार का भी संदेश दिया। उन्होंने कहा कि आज के समय में लोग बाहरी दिखावे और भौतिक दौड़ में इतने उलझ गए हैं कि जीवन के असली उद्देश्य को भूल बैठे हैं। माया का जाल तोड़ने के लिए जरूरी है कि हम अपने भीतर झांकें और सच्चाई को पहचानें।
भक्तों की प्रतिक्रिया
सत्संग में आए भक्त प्रेमानंद महाराज की इस सरल व्याख्या से बेहद प्रभावित हुए। कई भक्तों ने कहा कि उन्होंने पहली बार माया जैसे जटिल विषय को इतने आसान और व्यवहारिक तरीके से समझा। प्रवचन के बाद भक्तों में भक्ति और सेवा का उत्साह देखने को मिला।
निष्कर्ष
प्रेमानंद महाराज का यह प्रवचन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसमें जीवन जीने की कला का भी गहरा संदेश छिपा था। माया को समझना और उससे मुक्त होना हर साधक के लिए जरूरी है, और महाराज ने यह बात बड़े सहज और स्पष्ट रूप में सामने रखी। उनके अनुसार, माया से पार पाने का एकमात्र रास्ता है – भक्ति, सेवा और सत्संग में मन लगाना।
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