“दो वोटर आईडी विवाद: मुजफ्फरपुर मेयर पर तेजस्वी यादव का बड़ा आरोप”

बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इस बीच तेजस्वी यादव ने एक और बड़ा दावा किया है। तेजस्वी ने कहा है कि बीजेपी की मेयर निर्मला देवी के पास दो दो वोटर आईडी कार्ड है।

बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया विवाद सामने आया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुजफ्फरपुर की मेयर और उनके देवर पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया है कि दोनों के पास दो-दो वोटर आईडी कार्ड हैं। इस खुलासे के बाद न केवल स्थानीय राजनीति में हलचल मच गई है, बल्कि चुनावी नियमों और मतदाता सूची की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे हैं।

"दो वोटर आईडी विवाद: मुजफ्फरपुर मेयर पर तेजस्वी यादव का बड़ा आरोप"
“दो वोटर आईडी विवाद: मुजफ्फरपुर मेयर पर तेजस्वी यादव का बड़ा आरोप”

तेजस्वी यादव का आरोप

तेजस्वी यादव का आरोप
तेजस्वी यादव का आरोप


तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुजफ्फरपुर की मौजूदा मेयर और उनके देवर के पास अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में पंजीकृत दो-दो वोटर आईडी कार्ड हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह न केवल चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है, बल्कि यह आपराधिक कृत्य भी है, क्योंकि एक व्यक्ति का नाम एक ही समय पर दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में दर्ज नहीं हो सकता।

तेजस्वी ने कहा, “यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है। अगर सत्ता में बैठे लोग या जनप्रतिनिधि ही इस तरह के फर्जीवाड़े में शामिल पाए जाते हैं, तो आम जनता का सिस्टम पर भरोसा कैसे बनेगा?” उन्होंने चुनाव आयोग से तुरंत इस मामले में संज्ञान लेने और कड़ी कार्रवाई करने की मांग की।

सबूत पेश करने का दावा


तेजस्वी यादव ने मीडिया के सामने कुछ दस्तावेज भी दिखाए, जिनमें कथित तौर पर मेयर और उनके देवर के दो-दो वोटर आईडी के नंबर और पते दर्ज थे। एक आईडी उनके मौजूदा पते पर और दूसरा किसी अन्य इलाके के पते पर जारी बताया गया। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि नियमों का उल्लंघन हुआ है और संबंधित अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज किया।

मेयर का पक्ष


इस मामले पर मेयर ने सफाई देते हुए कहा कि यह राजनीतिक साजिश है और तेजस्वी यादव बिना पूरी जांच के आरोप लगा रहे हैं। मेयर का कहना है कि पुराने पते पर बना वोटर कार्ड अब निष्क्रिय हो चुका है, और नया कार्ड वर्तमान पते पर अपडेट किया गया है। उन्होंने दावा किया कि इसमें कोई अनियमितता नहीं है और चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार सब कुछ किया गया है।

चुनाव आयोग की भूमिका


तेजस्वी यादव ने बिहार राज्य चुनाव आयोग से मांग की कि इस मामले की तुरंत जांच की जाए और अगर आरोप सही पाए जाते हैं तो दोनों वोटर आईडी में से एक को रद्द किया जाए। साथ ही, अगर जानबूझकर यह गलती की गई है, तो संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने मीडिया को बताया कि इस तरह के मामलों में पहले प्रारंभिक जांच होती है, जिसमें दस्तावेजों की पुष्टि की जाती है। यदि पाया जाता है कि एक व्यक्ति का नाम दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में सक्रिय है, तो यह कानूनन गलत है और इसके लिए सजा का भी प्रावधान है।

कानूनी पहलू


जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 के तहत किसी भी व्यक्ति का नाम एक समय में केवल एक निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर दो अलग-अलग स्थानों पर वोटर के रूप में पंजीकरण कराता है, तो यह कानून का उल्लंघन है और इसके लिए जुर्माना व जेल, दोनों की सजा हो सकती है।

राजनीतिक असर


यह मामला बिहार की राजनीति में नया मुद्दा बन गया है। विपक्षी दल इसे सत्ता पक्ष की कथित लापरवाही और भ्रष्टाचार के उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं, जबकि सत्ता पक्ष इसे निराधार आरोप बताकर खारिज कर रहा है। आने वाले दिनों में यह विवाद और गरमा सकता है, क्योंकि तेजस्वी यादव ने संकेत दिया है कि वे इस मामले को विधानसभा से लेकर अदालत तक ले जाएंगे।

SIR पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई

बिहार वोटर्स लिस्ट रिवीजन पर सड़क से लेकर अदालत तक संग्राम छिड़ा है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई है। इससे पहले कल हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये माना कि आधार कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं माना सकता है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग की बात सही है कि आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसे वैरीफाई करना ज़रूरी है। सुनवाई के दौरान आरोप लगाया गया था कि एक करोड़ वोटर्स के नाम लिस्ट से काटे गए हैं। इस पर अदालत ने कहा कि एक करोड़ का आंकड़ा कहां से आया। सात करोड़ नब्बे लाख कुल वोटर थे जिनमें से 7 करोड़ 24 लाख के नाम ड्राफ्ट रोल में हैं।

कपिल सिब्बल ने क्या आरोप लगाया?

कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि बड़ी संख्या में लोगों को मृत बताकर उनके नाम काटे गए हैं। कई ऐसे लोगों को मृत बता दिया गया, जो जिंदा है। इस पर इलेक्शन कमीशन की तरफ से पेश हुए वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि ये सिर्फ ड्राफ्ट रोल है। छोटी-मोटी गलती हो सकती है लेकिन ये कहना कि जिन्हें मृत बताया गया, वो जीवित हैं, ये सही नहीं है।

निष्कर्ष


मुजफ्फरपुर की मेयर और उनके देवर के खिलाफ दो-दो वोटर आईडी रखने के आरोप ने चुनावी पारदर्शिता और कानून के पालन पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग की जांच में क्या निकलकर आता है और क्या यह मामला कानूनी कार्रवाई तक पहुंचता है या केवल राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित रह जाता है।

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