‘तेहरान’ ओटीटी पर आज रिलीज हो गई है। लगभग 2 घंटे 5 मिनट के रनटाइम वाली इस फिल्म को जी5 पर देख सकते हैं, जो अब स्ट्रीम हो रही है, लेकिन उससे पहले पढ़ें पूरा रिव्यू।
बॉलीवुड में जब भी देशभक्ति या जासूसी थ्रिलर फिल्मों की बात होती है तो जॉन अब्राहम का नाम सबसे आगे आता है। उनकी फिल्मोग्राफी में मद्रास कैफ़े, परमाणु और बाटला हाउस जैसी फ़िल्में शामिल हैं, जिन्होंने दर्शकों के दिलों में देशप्रेम की लहर जगा दी थी। अब इसी कड़ी में जॉन की नई फिल्म तेहरान रिलीज हुई है, जो सिर्फ एक ब्लास्ट की कहानी नहीं बल्कि दिल को झकझोर देने वाला अनुभव है। यह फिल्म बिना शोर-शराबे के गहरी देशभक्ति की भावना जगाने में सफल होती है।

कहानी और प्लॉट
तेहरान की कहानी की शुरुआत एक दर्दनाक ब्लास्ट से होती है। यह घटना न सिर्फ मासूम जिंदगियों को निगल जाती है बल्कि भारत की सुरक्षा एजेंसियों को भी चौकन्ना कर देती है। जॉन अब्राहम इस फिल्म में एक खुफिया अधिकारी बने हैं, जो न सिर्फ इस ब्लास्ट के पीछे की सच्चाई का पता लगाते हैं बल्कि इसके जरिए सामने आने वाले बड़े षड्यंत्र को भी उजागर करते हैं। फिल्म की कहानी दर्शकों को भारत से ईरान और फिर मिडिल ईस्ट के कई इलाकों तक ले जाती है।
यह सिर्फ एक मिशन की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस दर्द को भी सामने लाती है, जो आतंकवादी हमलों के बाद आम लोगों की जिंदगी में घर कर जाता है। फिल्म दिखाती है कि कैसे एक घटना पूरे समाज और देश की दिशा बदल सकती है।
जॉन अब्राहम का दमदार अभिनय

जॉन अब्राहम अपनी गंभीर और सख्त छवि के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म में उनका किरदार बेहद रियल और इमोशनल है। उन्होंने यहां सिर्फ एक एक्शन हीरो नहीं बल्कि एक इंसान की तरह काम किया है, जो अपने देश के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है। उनके चेहरे के हावभाव और आंखों की गहराई कई जगह शब्दों से ज्यादा असर छोड़ती है। खासकर उन दृश्यों में जहां वे अपने परिवार और ड्यूटी के बीच फंसे दिखते हैं, दर्शक खुद को उनसे जोड़ पाते हैं।
निर्देशन और स्क्रीनप्ले
फिल्म का निर्देशन कसा हुआ है। निर्देशक ने कहानी को तेज रफ्तार रखने के साथ-साथ भावनात्मक पहलू पर भी बराबर ध्यान दिया है। स्क्रीनप्ले ऐसा है कि हर कुछ मिनट बाद कोई नया मोड़ सामने आता है, जिससे दर्शकों की उत्सुकता बनी रहती है। फिल्म में दिखाए गए लोकेशंस वास्तविकता का एहसास कराते हैं और यह साबित करते हैं कि कहानी सिर्फ कल्पना नहीं बल्कि हकीकत से भी जुड़ी हुई है।
एक्शन और तकनीकी पक्ष

जॉन अब्राहम की फिल्मों में एक्शन सीक्वेंस हमेशा खास होते हैं और तेहरान भी इसमें पीछे नहीं है। हालांकि यहां एक्शन ओवर-द-टॉप नहीं है बल्कि रियलिस्टिक और परिस्थितियों के हिसाब से है। कैमरा वर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक दर्शकों को कुर्सी से बांधे रखते हैं। खासकर ब्लास्ट और पीछा करने वाले सीन में एडिटिंग और साउंड डिज़ाइन जबरदस्त है।
देशभक्ति का अलग अंदाज
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है इसकी देशभक्ति की प्रस्तुति। यहां आपको ऊंची आवाज़ में बजते गानों या बड़े-बड़े संवादों से भरी देशभक्ति नहीं मिलेगी, बल्कि संवेदनाओं और किरदारों के संघर्ष से देश के प्रति प्रेम झलकता है। यही वजह है कि फिल्म के अंत तक दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं और दिल में देशभक्ति की नई ऊर्जा पैदा होती है।
कमजोरियां
फिल्म की लंबाई थोड़ी कम हो सकती थी। बीच के कुछ हिस्से थोड़े खिंचे हुए लगते हैं, जहां कहानी धीमी हो जाती है। इसके अलावा कुछ सीन ऐसे हैं जहां और गहराई लाई जा सकती थी। लेकिन ये छोटी कमजोरियां फिल्म के प्रभाव को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचातीं।
निष्कर्ष
तेहरान सिर्फ एक ब्लास्ट की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन असंख्य जिंदगियों की दास्तान है जो आतंकवाद और हिंसा की आग में झुलस जाती हैं। जॉन अब्राहम का अभिनय, मजबूत निर्देशन और संवेदनशील स्क्रीनप्ले इस फिल्म को खास बनाते हैं। यह फिल्म बिना दिखावे और बिना ऊंचे-ऊंचे नारों के देशभक्ति की भावना जगाती है।
अगर आप एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो रोमांचक भी हो और भावुक भी, तो तेहरान आपके लिए सही चुनाव है।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
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