बिहार चुनाव से पहले NDA में सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है, खासकर चिराग पासवान की पार्टी के साथ. चिराग 40-45 सीटें मांग रहे हैं, जबकि बीजेपी 25-28 देने को तैयार है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। जैसे-जैसे चुनावी तारीखें नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे सियासी सरगर्मियां तेज हो रही हैं। एनडीए गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अब तक तय नहीं हो सका है। सभी सहयोगी दल अपनी-अपनी डिमांड पर अड़े हुए हैं, लेकिन सबसे बड़ा पेच लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ फंसा हुआ है। चिराग पासवान ने इस बार बीजेपी और जेडीयू दोनों के सामने सख्त रुख अपनाया है, जिससे गठबंधन के भीतर तनातनी के हालात बनते दिख रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, एनडीए के अन्य सहयोगी दलों — हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और उपेंद्र कुशवाहा गुट — के बीच सीट बंटवारे को लेकर सहमति बन चुकी है। लेकिन एलजेपी (रामविलास) अभी भी अपनी मांग पर अड़ी है। चिराग पासवान ने बिहार की 243 सीटों में से 40 से 45 सीटों की मांग रखी है। उनका कहना है कि उनकी पार्टी का जनाधार कई इलाकों में मजबूत है और वे अपने दम पर कई सीटों पर जीत दर्ज कर सकते हैं।
हालांकि, बीजेपी और जेडीयू के सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि सहयोगी दलों की संख्या अधिक होने के कारण सीटों का समीकरण पहले से ही तंग है। बीजेपी नेताओं के अनुसार, चिराग पासवान को 25 से 28 सीटों से अधिक देना संभव नहीं है। इस प्रस्ताव से चिराग पासवान नाराज बताए जा रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने हाल के दिनों में कुछ ऐसे बयान दिए हैं, जिन्हें राजनीतिक गलियारों में एनडीए से दूरी के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
चिराग पासवान ने हाल ही में एक जनसभा में कहा था, “मैं अपने पिता रामविलास पासवान के रास्ते पर चल रहा हूं। बिहार के लोगों का हित मेरे लिए सबसे बड़ा है। अगर कोई हमारे साथ न्याय नहीं करेगा, तो जनता के दरबार में जाना ही सही रास्ता है।” उनके इस बयान को बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में भी चिराग पासवान ने अकेले मैदान में उतरकर जेडीयू के कई उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाया था। हालांकि तब उन्होंने खुलकर कहा था कि उनकी लड़ाई सिर्फ नीतीश कुमार से है, बीजेपी से नहीं। अब 2025 में एक बार फिर वही स्थिति बनती दिख रही है, जब चिराग की रणनीति जेडीयू के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सीट शेयरिंग पर एनडीए में सहमति नहीं बनती है, तो चिराग पासवान इस बार “एकला चलो” की राह भी चुन सकते हैं। वे यह भी जानते हैं कि बिहार में उनके पास युवा और दलित वोटरों का एक ठोस आधार है, जो उन्हें स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का आत्मविश्वास देता है।
बीजेपी के रणनीतिकार फिलहाल इस कोशिश में जुटे हैं कि चिराग को किसी तरह मनाया जाए ताकि गठबंधन में दरार न पड़े। बताया जा रहा है कि दिल्ली में जल्द ही एनडीए की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई जा सकती है, जिसमें चिराग पासवान की मांगों पर आखिरी फैसला लिया जाएगा।
हालांकि, सियासी जानकारों का कहना है कि अगर यह मतभेद सुलझा नहीं, तो बिहार में विपक्ष को इसका सीधा फायदा मिल सकता है। आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन पहले ही एनडीए की आंतरिक खींचतान पर नजर रखे हुए है और वे इसे चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
कुल मिलाकर, बिहार में एनडीए की सबसे बड़ी चुनौती अब केवल विपक्ष नहीं, बल्कि अपने ही सहयोगियों को साथ बनाए रखना है। और इस चुनौती के केंद्र में हैं — चिराग पासवान, जो एक बार फिर बिहार की राजनीति में “किंगमेकर” या “गठबंधन तोड़ने वाले” की भूमिका में नजर आ सकते हैं।
NDA को चुनौती देने के मूड में चिराग पासवान?
इसी बीच चिराग पासवान ने अपने हालिया एक्स पोस्ट में कुछ ऐसा लिख दिया है, जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि वे एनडीए और खास तौर पर नीतीश कुमार की जेडीयू को बड़ी चुनौती दे सकते हैं. चिराग ने अपने पोस्ट में पिता रामविलास पासवान की पांचवीं पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि दी. इसी के साथ यह भी लिखा, “पापा हमेशा कहा करते थे- जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत. जीना है तो मरना सीखो. कदम-कदम पर लड़ना सीखो.”
2020 वाला कदम दोहराएंगे चिराग पासवान?
चिराग पासवान का सोशल मीडिया पोस्ट एनडीए के लिए खतरे की घंटी जैसा माना जा रहा है. क्या वे एक बार फिर साल 2020 वाला कदम 2025 में भी उठाएंगे? अगर आपको याद हो तो चिराग पासवान ने बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया था, जिससे नीतीश कुमार की जेडीयू के लिए मुसीबत खड़ी हो गई थी.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह चिराग पासवान की प्रेशर पॉलिटिक्स है, जिसके जरिए वे अपनी पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें लाने की कोशिश कर रहे हैं. एक ओर धर्मेंद्र प्रधान चिराग पासवान से मिलने जाते हैं, तो दूसरी ओर जब भी चिराग से बात करने की कोशिश की जाती है, तो उनका फोन बंद आता है.
चिराग पासवान ने क्या कहा था?
दरअसल, चिराग पासवान ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लक्ष्य को मैंने कभी टूटने नहीं दिया. उनके जाने के बाद विपरीत परिस्थियां भी आईं. पार्टी को साल 2020 में अकेल चुनाव लड़ना पड़ा था. उस परिस्थिति का भी मैंने मजबूती से सामना किया. अकेले चुनाव लड़ा. जो परिणाम बिहार की जनता ने दिए, उन्हें सिर आंखों पर रखा. बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट की सोच को आगे बढ़ाता रहा.”
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