बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे एनडीए (NDA) गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। अब यह खींचतान खुले तौर पर सामने आने लगी है।
इस बार एनडीए के वरिष्ठ सहयोगी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने दो टूक कह दिया है कि उनकी पार्टी 15 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगी।
मांझी ने कहा कि “अब और अपमान नहीं सहेंगे”, और इसके साथ ही उन्होंने 10 अक्टूबर को पार्टी की अहम बैठक बुला ली है, जिसमें आगे की रणनीति पर बड़ा फैसला लिया जा सकता है।

NDA में बढ़ती खींचतान
सूत्रों के मुताबिक, एनडीए के भीतर सीट बंटवारे पर पिछले कुछ दिनों से तीखी बातचीत चल रही है। बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा गुट— इन सभी के बीच सीटों का संतुलन बनाना बेहद मुश्किल हो गया है।
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि छोटे दलों के लिए कुल मिलाकर 60-65 सीटें रखी गई हैं, लेकिन सभी सहयोगी दल मिलकर करीब 100 से अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं।
इसी वजह से बातचीत बार-बार अटक रही है।
मांझी का बयान बना सियासी तूफान

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी ने सोमवार को मीडिया से बात करते हुए कहा,
“हमने एनडीए के साथ हमेशा ईमानदारी से काम किया है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि हमारी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। हम 15 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेंगे। कितना सहेंगे अपमान? अब हमारी पार्टी का धैर्य जवाब दे रहा है।”
मांझी के इस बयान ने ना सिर्फ एनडीए के भीतर हलचल मचा दी है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठने लगा है कि क्या वे गठबंधन से बाहर निकलने की तैयारी कर रहे हैं?
उन्होंने कहा कि “हमारा जनाधार कई इलाकों में मजबूत है। हमें बराबरी का सम्मान मिलना चाहिए, सिर्फ सहयोगी दल की तरह नहीं, बल्कि साझेदार की तरह।”
10 अक्टूबर को अहम बैठक
मांझी ने अपनी पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक 10 अक्टूबर को पटना में बुलाई है। इस बैठक में सभी जिला अध्यक्षों, कोर कमेटी के सदस्यों और वरिष्ठ नेताओं को बुलाया गया है।
सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में अगर बीजेपी और जेडीयू के साथ सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनती, तो मांझी कोई बड़ा राजनीतिक फैसला ले सकते हैं।
संभावना यह भी जताई जा रही है कि हम (सेक्युलर) पार्टी कुछ सीटों पर स्वतंत्र रूप से उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर सकती है।
2020 में भी हुआ था विवाद
यह पहली बार नहीं है जब मांझी और एनडीए के बीच सीट शेयरिंग को लेकर मतभेद सामने आए हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में भी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को केवल 7 सीटें दी गई थीं, जिनमें से पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
तब भी मांझी ने कहा था कि “अगर हमें उचित सम्मान नहीं मिलेगा, तो हम अलग रास्ता चुन सकते हैं।”
अब 2025 के चुनाव में वह फिर उसी स्थिति में नजर आ रहे हैं।
बीजेपी और जेडीयू की रणनीति

बीजेपी सूत्रों के अनुसार, पार्टी छोटे सहयोगियों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश में है।
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा,
“मांझी जी एनडीए के सम्मानित नेता हैं। हम चाहते हैं कि सब मिलकर चुनाव लड़ें। सीटों को लेकर थोड़ी बातचीत चल रही है, लेकिन जल्द ही सब सुलझ जाएगा।”
वहीं, जेडीयू के नेताओं का कहना है कि सीट बंटवारा जनाधार और जीत की संभावना के आधार पर तय किया जाएगा, न कि मांग के आधार पर।
मांझी का राजनीतिक महत्व
जीतन राम मांझी भले ही सीमित सीटों पर प्रभाव रखते हों, लेकिन बिहार की राजनीति में उनका दलित और महादलित वोट बैंक अहम माना जाता है।
वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कई बार सरकार में रहे हैं और कभी उनके विरोधी भी बने।
उनका एनडीए में रहना दलित वोटों के लिए बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए जरूरी है।
क्या फिर बदलेंगे समीकरण?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर मांझी गठबंधन से अलग होते हैं, तो इससे एनडीए को प्रतीकात्मक नुकसान जरूर होगा।
हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि मांझी अपने बयानों से दबाव की राजनीति कर रहे हैं, ताकि सीटों का बेहतर सौदा मिल सके।
लेकिन अगर बातचीत विफल होती है और हम पार्टी अलग राह चुनती है, तो विपक्ष — खासकर आरजेडी — इसका फायदा उठाने में देर नहीं लगाएगा।
निष्कर्ष
बिहार की सियासत में जीतन राम मांझी भले ही संख्या बल से कमजोर हों, लेकिन राजनीतिक रूप से उनकी मोल-भाव की ताकत हमेशा बनी रहती है।
“15 सीट से कम पर नहीं लड़ेंगे” वाला उनका बयान इस बात का संकेत है कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।
अब सबकी नजरें 10 अक्टूबर की बैठक पर टिकी हैं — जहां से बिहार की राजनीति में एक नई दिशा या नया विवाद दोनों में से कुछ भी निकल सकता है।