क्या है पापमोचनी एकादशी ? जाने सही तिथि और पारण का समय !

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार पापमोचिनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा |

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बेहद महत्वपूर्ण तिथियों में से एक माना जाता है. ये दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. वहीं, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और उनकी हर इच्छा पूरी होती है. ऐसे में पापमोचिनी एकादशी पर भक्त श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी के नाम का उपवास रखते हैं और उनकी भक्ति में लीन रहते हैं.

कब है पापमोचिनी एकादशी ?

बता दें कि इस बार पापमोचनी एकादशी 25 व 26 मार्च, दोनों दिन मनाई जाएगी. पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 मार्च की सुबह 5 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर 26 मार्च को तड़के 3 बजकर 45 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर एकादशी तिथि मंगलवार, 25 मार्च को है.

क्या है पापमोचनी एकादशी ? जाने सही तिथि और पारण का समय !
क्या है पापमोचनी एकादशी ? जाने सही तिथि और पारण का समय !

पापमोचिनी एकादशी पारण का समय

जो लोग 25 मार्च का एकादशी का उपवास रखने वाले हैं, उनके लिए पारण का समय 26 मार्च दोपहर 01 बजकर 56 मिनट से शाम 04 बजकर 23 मिनट तक रहने वाला है.

वैष्णव पापमोचिनी एकादशी व्रत का पारण 27 मार्च को किया जाएगा, पारण का समय सुबह 6 बजकर 17 मिनट से लेकर 8 बजकर 45 मिनट तक रहेगा.

पापमोचनी एकादशी का महत्व

शास्त्रों में पापमोचनी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में चली आ रही समस्याएं समाप्त हो सकती है। व्यक्ति को धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है और घर मे मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं, जिससे पैसों की तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है। इसके साथ ही जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है।

पापमोचनी एकादशी का महत्व
पापमोचनी एकादशी का महत्व

पापमोचनी एकादशी पूजन मंत्र

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुतः पुरुत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसी।

  • ॐ ह्रीं कार्तवीर्यअर्जुनो नाम राजा बाहु सहस्न्वान्। यस्य स्मरेण मात्रेण हृतं नष्टं च लभ्यते।

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