‘मेट्रो…इन दिनों’: एक फिल्म, कई कहानियां, रिश्तों की म्यूजिकल बारिश !

‘मेट्रो… इन दिनों’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। 8 सितारों की टोली वाली इस फिल्म को अनुराग बसु ने निर्देशित किया है। इस रोमांटिक फिल्म की कहानी कैसी है और क्या इस फिल्म को देखना चाहिए, ये जानने के लिए नीचे स्क्रोल करें।

अनुराग बसु, जो हमेशा से ही मानवीय संवेदनाओं को छूने वाली कहानियां कहने के लिए जाने जाते हैं, इस बार ‘मेट्रो…इन दिनों’ के साथ लौटे हैं। यह फिल्म उनकी 2007 में आई बहुचर्चित फिल्म ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कही जा सकती है। फिल्म शहरी जीवन में उलझे रिश्तों, अधूरी इच्छाओं और भावनात्मक द्वंद्वों की बारीक तस्वीर पेश करती है — और वह भी संगीत की मोहक बारिश में भीगते हुए।

'मेट्रो...इन दिनों': एक फिल्म, कई कहानियां, रिश्तों की म्यूजिकल बारिश !
‘मेट्रो…इन दिनों’: एक फिल्म, कई कहानियां, रिश्तों की म्यूजिकल बारिश !

कहानी की बनावट: टुकड़ों में बुना एक सुंदर गलीचा

‘मेट्रो…इन दिनों’ एक मल्टी-स्टोरीलाइन फिल्म है, जिसमें मुंबई जैसे व्यस्त महानगर की पृष्ठभूमि में कई किरदारों की कहानियां समानांतर रूप से चलती हैं। हर कहानी अलग है, लेकिन अंततः ये सभी एक ही भावनात्मक धागे से जुड़ती हैं: रिश्तों की सच्चाई और भावनाओं की उलझन।

  • आदित्य रॉय कपूर और सारा अली खान की जोड़ी उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है जो करियर, प्यार और आत्म-परिभाषा के बीच जूझती है।
  • पंकज त्रिपाठी और कोंकणा सेन शर्मा की कहानी अधेड़ उम्र में पनपते अकेलेपन और अपनापन तलाशने की गहराई को छूती है।
  • फातिमा सना शेख और अली फजल अपने रिश्ते को लेकर असमंजस में हैं, जहां आधुनिकता और परंपरा आपस में टकराते हैं।
  • अनुपम खेर और नीतू कपूर अपनी भूमिका में पुराने संबंधों को नए मायनों में जीते हैं, यह दर्शाते हुए कि उम्र का प्यार भी उतना ही सच्चा हो सकता है।

हर कहानी में एक अजीब-सी उदासी और एक गहरी सच्चाई छिपी है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।

संगीत: फिल्म की आत्मा

संगीत: फिल्म की आत्मा
संगीत: फिल्म की आत्मा

फिल्म का संगीत प्रीतम ने दिया है, और यही इसकी असली जान है। गाने न केवल कहानियों को आगे बढ़ाते हैं बल्कि भावनाओं को भी संगीतमय रूप देते हैं। अरिजीत सिंह और शिल्पा राव जैसे गायकों की आवाज़ में दर्द और आशा की मिली-जुली अनुभूति सुनने वालों को भावुक कर देती है। गीत ‘दिल कहीं लगता नहीं’, ‘बारिशें इन दिनों’ और ‘ख्वाबों के पल’ दर्शकों के ज़हन में बस जाते हैं।

निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी

अनुराग बसु की खूबी यह है कि वह रोज़मर्रा के पात्रों को भी खास बना देते हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी में मेट्रो शहर का हलचल भरा जीवन, बारिश, लाइट्स और अकेलेपन को खूबसूरती से कैद किया गया है। हर फ्रेम में एक भावनात्मक गहराई है जो फिल्म की थीम को और भी मजबूत करती है।

अभिनय: हर किरदार अपनी छाप छोड़ता है

  • पंकज त्रिपाठी एक बार फिर अपने संजीदा अभिनय से दिल जीतते हैं।
  • कोंकणा सेन शर्मा की आंखों से भाव निकलते हैं, शब्दों की जरूरत ही नहीं।
  • सारा अली खान और आदित्य रॉय कपूर अपनी पीढ़ी की उलझनों को ईमानदारी से पेश करते हैं।
  • अनुपम खेर और नीतू कपूर अनुभव की परतों को बड़े सहज तरीके से सामने लाते हैं।

क्या है खास और क्या है कमज़ोर

खास:

  • अलग-अलग कहानियों में भावनाओं की गहराई
  • संगीत और विजुअल्स की शानदार संगति
  • संवेदनशील निर्देशन और बेहतरीन प्रदर्शन

कमज़ोर:

  • कुछ कहानियां अधूरी लग सकती हैं
  • धीमी गति के कारण कुछ दर्शकों को फिल्म लंबी लग सकती है

निष्कर्ष

‘मेट्रो…इन दिनों’ उन फिल्मों में से है जो आपके दिल को छूती हैं, आपको अपने रिश्तों और भावनाओं के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं। यह फिल्म एक साथ कई कहानियां कहती है, कई जज़्बात जगाती है और अंत में एक गहरा असर छोड़ जाती है।

रेटिंग: 🌟🌟🌟🌟 (4/5)

यदि आप रिश्तों की गहराई, संगीत की मिठास और शहरी जिंदगी की उलझनों को समझना चाहते हैं — तो ‘मेट्रो…इन दिनों’ एक बार जरूर देखिए।

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