अखिलेश का बीजेपी पर सवालिया हमला !

मानसून सत्र के बीच में जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देना विपक्ष के नेताओं को समझ में नहीं आ रहा है। कई बड़े नेताओं ने इस मुद्दे पर सवाल किया है। वहीं, अब उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे पर सवाल किया है।

देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तबीयत को लेकर इन दिनों चर्चाएं जोरों पर हैं, और अब यह मामला राजनीतिक रंग भी पकड़ चुका है। समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर सवाल उठाते हुए कहा है कि “कुछ तो गड़बड़ है… अगर सब ठीक है तो बीजेपी का कोई बड़ा नेता उपराष्ट्रपति का हालचाल जानने क्यों नहीं गया?” उनके इस बयान से सियासी गलियारों में हलचल मच गई है।

अखिलेश का बीजेपी पर सवालिया हमला !
अखिलेश का बीजेपी पर सवालिया हमला !

क्या है मामला?

दरअसल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बीते कुछ समय से सार्वजनिक कार्यक्रमों से अनुपस्थित रहे हैं। उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर न तो उपराष्ट्रपति सचिवालय की ओर से कोई आधिकारिक बुलेटिन जारी किया गया और न ही सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जानकारी दी गई है। ऐसे में विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार की पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़े किए हैं।

अखिलेश यादव का तीखा बयान

अखिलेश यादव ने लखनऊ में एक पत्रकार वार्ता के दौरान कहा,

“जब किसी आम नेता की तबीयत खराब होती है तो बीजेपी के नेता फौरन उनके घर पहुंच जाते हैं, ट्वीट करते हैं, अस्पताल जाते हैं। लेकिन उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है — फिर भी बीजेपी की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आई? न हालचाल जानने कोई गया, न बयान आया। कुछ तो गड़बड़ जरूर है।”

अखिलेश ने इसे न सिर्फ राजनीतिक उदासीनता बताया, बल्कि संवैधानिक गरिमा की अनदेखी भी कहा। उनका कहना है कि सत्ता में बैठे लोगों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे देश के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की स्थिति के बारे में जनता को जानकारी दें।

विपक्ष में बढ़ती चिंता

अखिलेश यादव अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्होंने यह मुद्दा उठाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और डीएमके की ओर से भी इसी तरह के सवाल उठाए गए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि यदि उपराष्ट्रपति अस्वस्थ हैं, तो देश को जानकारी देना एक संवैधानिक जिम्मेदारी है।

हाल ही में ‘इंडिया गठबंधन’ की एक बैठक में यह विषय अनौपचारिक रूप से उठा, जिसमें कई नेताओं ने एक स्वर में मांग की कि उपराष्ट्रपति की स्थिति को लेकर सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए।

बीजेपी की चुप्पी पर सवाल

बीजेपी की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, पार्टी के कुछ नेताओं ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि “धनखड़ जी पूरी तरह स्वस्थ हैं और जल्द ही सार्वजनिक जीवन में सक्रिय दिखेंगे।” लेकिन ये बयान किसी आधिकारिक पुष्टि के रूप में नहीं देखे जा रहे हैं।

सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अगर उपराष्ट्रपति सच में बीमार हैं तो उनके स्वास्थ्य पर पारदर्शिता बनाए रखना बेहद जरूरी है। इससे न सिर्फ अटकलों पर विराम लगेगा, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली पर जनता का भरोसा भी बना रहेगा।

संवैधानिक पद और राजनीतिक शिष्टाचार

उपराष्ट्रपति न केवल राज्यसभा के सभापति होते हैं, बल्कि देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर आसीन होते हैं। ऐसे में उनकी तबीयत, उनकी सार्वजनिक उपस्थिति, और उनके कार्यभार की स्थिति पर देश की नजरें होना स्वाभाविक है। राजनीतिक मतभेदों से परे, यह उम्मीद की जाती है कि सभी दल ऐसे संवेदनशील विषयों पर एकजुटता और संवेदनशीलता दिखाएं।

निष्कर्ष

अखिलेश यादव का बयान केवल एक राजनीतिक हमला नहीं, बल्कि एक व्यापक चिंता का संकेत है जो देश के नागरिकों के मन में भी गूंज रहा है। उपराष्ट्रपति जैसे शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति की तबीयत को लेकर यदि अस्पष्टता बनी रहती है, तो वह न केवल अफवाहों को जन्म देती है, बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारियों की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करती है।

अब यह देखना होगा कि बीजेपी इस सवाल का जवाब किस तरह देती है — और क्या सरकार उपराष्ट्रपति की स्थिति को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी करती है या नहीं। देश की जनता और विपक्ष दोनों ही इस विषय पर स्पष्टता की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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