ईयरफोन का ज्यादा इस्तेमाल सुनने की शक्ति को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। सरकार ने चेतावनी दी है कि तेज आवाज में लंबे समय तक संगीत सुनने से बहरापन हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाने और स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से जांच की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कहा है।
आपकी सुनने की शक्ति लंबे समय तक सही रहे तो आज से ही ईयरफोन का इस्तेमाल सीमित कर दें। कानों को आराम देना भी जरूरी है, वरना तेज म्यूजिक की आदत जिंदगी भर की खामोशी में बदल सकती है। अगर आप घंटों ईयरफोन या हेडफोन लगाकर तेज आवाज में गाने या वीडियो सुनते हैं, तो सतर्क हो जाइए। प्रदेश सरकार ने एक अहम चेतावनी जारी करते हुए बताया है कि लंबे समय तक ईयरफोन – हेडफोन का इस्तेमाल सुनने की क्षमता को स्थायी रूप से खराब कर सकता है।
शासन की जारी एडवाइजरी में बताया गया है कि तेज आवाज में लंबे समय तक संगीत सुनना, गेम खेलना या वीडियो देखना कानों को धीरे-धीरे इस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है कि इंसान पूरी तरह बहरा भी हो सकता है।
चिकित्सा के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा द्वारा सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को भेजे गए पत्र में यह अपील की गई है कि भारत सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक इस खतरनाक आदत से लोगों को जागरूक किया जाए।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, ईयरफोन या हेडफोन के अत्यधिक इस अत्यधिक इस्तेमाल से श्रवण हानि (बहरापन) और टिनिटस (कान में लगातार आवाज सुनाई देना) जैसी समस्याएं हों सकती है।

हेडफोन-ईयरफोन क्यों खतरनाक
इस गाइडलाइंस में बताया गया है कि अभी 12 से 35 साल तक के करीब 50 करोड़ लोग अलग-अलग कारणों से बहरेपन की चपेट में हैं. इनमें से 25% ईयरफोन, ईयरबड, हेडफोन पर ज्यादा तेज साउंड में लगातार कुछ सुनने वाले हैं. जबकि करीब 50% लोग लंबे समय तक आसपास बजने वाले तेज म्यूजिक, क्लब, डिस्कोथेक, सिनेमा, फिटनेस क्लासेज, बार या किसी अन्य तेज साउंड के संपर्क में रहते हैं. मतलब लाउड म्यूजिक सुनने का शौक या ईयरफोन का ज्यादा इस्तेमाल बहरा बना सकता है.
हेडफोन का कितना वॉल्यूम है सेफ
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पर्सनल डिवाइसों में वॉल्यूम का लेवल 75 डेसीबल से 136 डेसीबल तक रहता है. अलग-अलग देशों में इसका अलग लेवल भी हो सकता है. यूजर्स को इन डिवाइसेज का वॉल्यूम 75 db से 105 db ही रखना चाहिए. इसका इस्तेमाल भी लिमिटेड ही करना चाहिए. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कानों के लिए सबसे सेफ वॉल्यूम 20 से 30 डेसीबल है. इससे ज्यादा साउंड कानों की सेंसरी सेल्स को नुकसान पहुंचाते हैं.
बच्चों का स्क्रीन टाइम करें कमः जरूरी सुझाव

ईयरफोन या हेडफोन का अनावश्यक इस्तेमाल न करें खासकर वायर्ड या. ब्लूटूथ उपकरणों का। यदि जरूरी तो 50 डेसिबल से कम आवाज वाले डिवाइस का ही प्रयोग करें। शोर कम करने वाले और कान में अच्छे से फिट होने वाले हेड फोन का इस्तेमाल करें ताकि कम आवाज में भी स्पष्ट सुनाई दे। बच्चों की स्क्रीन टाइम कम करें। इससे मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ सकता है और सामाजिक व्यवहार भी प्रभावित हो सकता है।
बच्चों को आनलाइन गेमिंग से दूर रखें क्योंकि उसमें तेज आवाजें कानों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
सोशल मीडिया का उपयोग सीमित करें और परिवार व दोस्तों के साथ समय बिताने की आदत डालें। किसी भी कार्यक्रम या आयोजन स्थल पर ध्वनि का स्तर 100 डेसिबल से अधिक न होने दे। नियमित रूप से श्रवण जांच कराएं ताकि किसी भी समस्या की जल्द पहचान हो सके।
इस तरह के लक्षण भी हो जाते हैं
चिकित्सकों का भी मानना है कि एक बार कान की क्षमता क्षतिग्रस्त हो गई, तो उसे श्रवण यंत्र या कोक्लियर इम्प्लांट से भी पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। कम उम्र से यदि बच्चों में टिनिटस की समस्या शुरू हो जाए, तो इसका असर उनकी मानसिक सेहत पर भी पड़ता है। इससे अवसाद, चिड़चिड़ापन और सामाजिक व्यवहार में बदलाव जैसे लक्षण सामने आते हैं।
2 घंटे से अधिक इस्तेमाल न करें ईयरफोन, बीच-बीच में ब्रेक लेना है बेहद जरूरी
जागरूकता अभियान
इसे लेकर स्कूल-कालेजों में जागरूकता अभियान चलाने और स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से लोगों को जांच की सुविधा भी उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है
नहीं होता पूरी तरह ठीक
चिकित्सकों का भी मानना है कि एक बार कान की क्षमता क्षतिग्रस्त हो गई, तो उसे अवण यंत्र या कोक्लियर इम्प्लांट से भी पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। कम उम्र से यदि बच्चों में टिनिटस की समस्या शुरू हो जाए, तो इसका असर उनकी मानसिक सेहत पर भी पड़ता है। इससे अवसाद, चिड़चिड़ापन और सामाजिक व्यवहार में बदलाव जैसे लक्षण सामने आते हैं।
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