काजोल की ‘मां’ बनी थ्रिल और इमोशन की परफेक्ट जर्नी

काजोल की हॉरर फिल्म ‘मां’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। विशाल फुरिया के निर्देशन में बनी यह फिल्म इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि हॉरर फिल्म का मतलब क्या होता है और उसे कैसा होना चाहिए।

काजोल की नई फिल्म ‘मां’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है और यह फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरी उतरती है। यह केवल एक थ्रिलर नहीं, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा भी है, जिसमें डर, रहस्य और मातृत्व की गहराई को जबरदस्त तरीके से पिरोया गया है। फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसकी मुख्य अभिनेत्री काजोल हैं, जो अपने किरदार को न केवल जिंदा करती हैं, बल्कि दर्शकों को भावनाओं के भंवर में ले जाती हैं।

फिल्म की कहानी एक अकेली मां के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। एक शांत-सी दिखने वाली जिंदगी कैसे धीरे-धीरे सस्पेंस और डरावनी घटनाओं में बदलती है, यही फिल्म की मूल कहानी है। फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी कसी हुई है कि एक पल के लिए भी दर्शकों की नजरें स्क्रीन से हट नहीं पातीं।

काजोल की 'मां' बनी थ्रिल और इमोशन की परफेक्ट जर्नी
काजोल की ‘मां’ बनी थ्रिल और इमोशन की परफेक्ट जर्नी

लेखन और निर्देशन

साईविन क्वाड्रास की लेखनी फिल्म की रीढ़ है। ‘दैत्य उर्फ अम्सजा’ जैसे काल्पनिक किरदार को पौराणिक रक्तबीज और देवी काली-दुर्गा की अवधारणाओं से जोड़ना शानदार है। संवाद लेखन भी प्रभावशाली है – खासकर अजीत जगताप और आमिल कीन खान की कलम से निकले संवाद। निर्देशक विशाल फुरिया ने ‘छोरी 2’ के बाद इस बार ज्यादा सधा हुआ काम किया है। फिल्म में धार्मिक प्रतीकों, रंगों (विशेषकर लाल) और काली पूजा के दृश्य को बेहद प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया है। हालांकि, कुछ दृश्य जहां वीएफएक्स कमजोर हैं, वहां भी लेखन और भावनात्मक गहराई उसे संभाल लेते हैं।

काजोल ने अपने अभिनय से साबित कर दिया है कि वह हर किरदार में जान फूंकने का दम रखती हैं। उनकी आंखों की भाव-भंगिमा, डर, गुस्से और बेबसी को इतने असरदार ढंग से दर्शाती है कि हर सीन में उनकी मौजूदगी दिल दहला देती है। खासकर वह दृश्य जहां वह अपने बच्चे को बचाने के लिए आत्मबलिदान के करीब पहुंच जाती हैं — दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं।

फिल्म में बैकग्राउंड म्यूजिक और साउंड डिजाइन भी काबिल-ए-तारीफ है। हर डरावने दृश्य के साथ धड़कनें तेज हो जाती हैं, और यही फिल्म को एक शानदार थ्रिलर बनाता है। सिनेमैटोग्राफी भी शानदार है — अंधेरे गलियारे, भारी बारिश, और अचानक उभरते शैडो दृश्यों ने डर के माहौल को गहराई दी है।

निर्देशक ने कहानी को बहुत संतुलन के साथ पेश किया है — न तो सस्पेंस जल्दी टूटता है और न ही डर का असर कम होता है। फिल्म के अंत तक दर्शक यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि असली विलेन कौन था — हालात, इंसान या भावनाएं?

फिल्म ‘मां’ केवल एक हॉरर थ्रिलर नहीं, बल्कि एक मां की अडिग भावना, आत्मबलिदान और जज़्बे की कहानी है, जो सस्पेंस के साथ दिल को छू जाती है। अगर आप काजोल के फैन हैं या मजबूत स्क्रिप्ट और थ्रिलर फिल्में पसंद करते हैं, तो ‘मां’ आपके लिए जरूर देखने लायक है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐☆ (4/5)
प्लस पॉइंट्स: काजोल की परफॉर्मेंस, सस्पेंसफुल प्लॉट, इमोशनल कनेक्ट
माइनस: कुछ जगहों पर धीमा स्क्रीनप्ले, सीमित साइड कैरेक्टर डेवलपमेंट

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